जाति वाला जिन्न बाहर आ गया..अब जलवा देखिए

आखिरकार बिहार में जातिगत जनगणना की रिपोर्ट जारी कर दी गई। बिहार में किस जाति की कितनी आबादी है..राज्य में पिछड़ा कितना है..अति पिछड़ों का क्या हाल है..अगड़ों में किसका पलड़ा भारी है? चरम चुनावी माहौल में जातीय जनगणना के जिन्न को बोतल से बाहर निकाल दिया गया है। जिन्न को बाहर लाने की तारीख ने इसे और ऐतिहासिक बना दिया है। समाज को जोड़ने के लिए अपनी जान देने वाले महात्मा गांधी के जन्मदिन के मौके पर समाज को तोड़ने वाली सियासत का सूत्रपात किया गया है।  

जातीय जनगणना के जिन्न ने बोतल से बाहर आते है जलवा दिखाना शुरू कर दिया है। जब से रिपोर्ट सामने आई है..जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी वाला शोर उठने लगा है। जाति आधारित आबादी के आंकड़ें सामने हैं..आरक्षण के आंकड़ों पर सवाल उठने लगा है। जातियों के आर्थिक हालात के बारे में ज्यादा चर्चा नहीं है। जाति वाले आंकड़ों का सियासी लाभ लेने की होड़ सी लग गई है। जिस तरह हाथी के दांत खाने के अलग..दिखाने के अलग होते हैं.. कुछ वैसा ही आचरण जातीय जनगणना के मामले में नेताओं का देखने को मिल रहा है। आंकड़ों के सामने आते ही सामाजिक-आर्थिक सरोकार से ज्यादा चर्चा सियासी नफा-नुकसान पर होने लगी है। जातिगत जनगणना के मकसद के बारे में जो कुछ भी आधिकारिक मंचों पर बोला गया..कोर्ट में बढ़चढ़ कर बताया गया..उसमें यही तो कहा गया..जातियों का आंकड़ा इकट्ठा करने के पीछे सरकार का मकसद ये पता लगाना है कि कौन सी जाति आर्थिक रूप से पीछे छूट गई है। जातियों के आंकड़ों के साथ उनकी आर्थिक स्थिति के बारे में भी पता किया जाएगा। बार-बार यही कहा जाता रहा..जाति वाले आंकड़ों का सियासी इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।

लेकिन नेताओं की बयानबाजी साफ संकेत दे रही है..सियासत सुलगाने की कवायद तेज हो चली है। जाति आधारित राजनीति के नए नायक गढ़ने की होड़ सी लग गई है। सबसे आगे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चल रहे हैं। नीतीश कुमार के चाहने वाले अब उन्हें कर्पूरी ठाकुर, लालू यादव, वीपी सिंह वाली कतार में सबसे आगे खड़ा करने में जुटे हैं। बिहार की आबादी के आंकड़ों ने ये भी बता दिया है अतिपिछड़ा जातियों का 36 फीसदी आंकड़ा सबसे बड़ा है। जो नीतीश कुमार का कोर वोटर माना जाता है। पिछड़ी जातियों का 27 फीसदी मिल कर कुछ पिछड़ा वर्ग 63 फीसदी के पार जा रहा है। जो नीतीश-लालू गठजोड़ को काफी मजबूती दे सकते हैं।     

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जातीय जनगणना के आंकड़ों को आधार बना कर टॉप ब्यूरोक्रेसी में पिछड़ी जातियों की हिस्सेदारी वाली बात दोहराई है। राहुल गांधी ने कहा – “बिहार की जातिगत गणना से पता चला है कि वहां OBC+SC+ST 84 फीसदी हैं। केंद्र सरकार के 90 सचिवों में सिर्फ 3 OBC हैं..जो भारत का मात्र 5 फीसदी बजट संभालते हैं! इसलिए भारत के जातिगत आंकड़े जानना जरूरी है। जितनी आबादी, उतना हक – ये हमारा प्रण है।“  

इसी तरह बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा – “लगभग 85 फीसदी पिछड़े-अतिपिछड़े लोग हैं। सामाजिक आर्थिक न्याय की हमारी योजना है। अब हम विशेष योजनाएं लाकर लोगों की सेवा करेंगे। पूरे देश में जाति जनगणना होनी चाहिए।“ तेजस्वी के बयान में भी जोर पिछड़े-अतिपिछड़े लोगों को न्याय दिलवाने पर है। जबकि आर्थिक आंकड़ों में फर्क काफी प्रभावी होगा। पिछड़ी और अगड़ी जातियों में गरीबी का आंकड़ा सियासी गणित पर असर डाल सकता है।  

RJD प्रमुख लालू यादव ने अपने चिर-परिचित अंदाज में ही रिएक्शन दिया। लालू यादव ने कहा – “ये आंकड़े वंचितों, उपेक्षितों और गरीबों के समुचित विकास और तरक्की के लिए समग्र योजना बनाने और हाशिए पर रह रहे लोगों को अनुपात में प्रतिनिधित्व देने में देश के लिए नजीर पेश करेंगे। सरकार को अब सुनिश्चित करना चाहिए..जिसकी जिनती संख्या है उसकी उतनी हिस्सेदारी हो।“ लालू यादव ने लगे हाथ 2024 लोकसभा चुनाव के लिए भी माहौल बना दिया। लालू यादव ने ऐलान कर दिया केंद्र में जब उनकी सरकार बनेगी तब पूरे देश में जातिगत जनगणना करवाएंगे और दलित, मस्लिम, पिछड़ा-अतिपिछड़ा विरोधी बीजेपी को सत्ता से बेदखल करेंगे।

बिहार के जातिगत जनगणना पर आम आदमी पार्टी की तरफ से भी प्रतिक्रिया सामने आ रही है। आप सांसद संजय सिंह ने कहा है कि देश में जातीय जनगणना होनी चाहिए..ये पूरे देश का विषय है।  

बीजेपी की तरफ से केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इस मसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। गिरिराज सिंह ने इसे बिहार की गरीब जनता में भ्रम फैलाने का प्रयास बताया। उन्होंने कहा..बिहार सरकार को रिपोर्ट कार्ड देना चाहिए..33 साल, 18 साल नीतीश बाबू और 15 साल लालू यादव..दोनों ने मिलकर राज किया..गरीबों का कितना उद्धार किया?..कितने लोगों को नौकरी दी?..कितने लोगों की हालत सुधरी?

जातिगत जनगणना को लेकर जिस तरह से चुनावी माहौल गरमाने लगा है..ये बीजेपी की परेशानी बढ़ा सकता है। जाति आधारित गणना का खतरा हमेशा से ही सत्ताधारी दल के लिए दोधारी तलवार माना जाता रहा है। देखना होगा बीजेपी इस मंडल-2 वाले दांव का  मुकाबला कैसे करती है?