‘नेमप्लेट’ अभियान

ताकि जातिवादी सियासत की जरूरत ही न पड़े!  

एक बार फिर जातिवादी सियासत का जिन्न बोतल से बाहर आने के लिए जोर लगा रहा है। जिस तरह की तैयारी चल रही है, जिस तरह से जातिगत जनगणना को लेकर माहौल बनाया जा रहा है। जिस तरह से जातिगत जनगणना की मांग करने वालों का खेमा बढ़ता ही जा रहा है। एक बार फिर देश को जातिवादी सियासत की आग में झोंकने की पूरी तैयारी चल रही है। बहुत जल्द बिहार से उठने वाला जातिवादी सियासत का जहरीला तूफान पूरे देश को अपनी आगोश में ले सकता है। बिहार के बाद अलग-अलग राज्यों में भी जातिगत जनगणना करवाने की मांग उठने लगी है। आरजेडी, जदयू के बाद समाजवादी पार्टी और अब कांग्रेस भी जातिगत जनगणना वाले सुर में सुर मिलाने लगी है।

कुल मिलाकर देश का मौजूदा सियासी माहौल जातिवादी सियासी तूफान की ओर इशारा कर रहा है। विपक्षी एकजुटता जैसे-जैसे मजबूत होती जा रही है, जातिगत जनगणना का सियासी दबाव बढ़ता जा रहा है। सब हो रहा है..क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सियासी तोड़ विपक्ष के पास नहीं है। धर्म के आगे जाति ही एकमात्र एक ऐसा मसला है जिसे लेकर हर भारतीय जजबाती हो जाता है। भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर का कानूनी काम पूरा करके बड़ी बढ़त ले ली है। राम मंदिर के उद्घाटन की टाइमिंग विपक्ष को बेचैन कर रही है। एक दौर था जब कमंडल की आंधी को मंडल आंदोलन ने कमजोर किया, अब एक बार फिर मंडल-2 की तैयारी है। 2024 लोकसभा चुनाव में कमंडल के दबाव को कम करने के लिए मंडल-2 आजमाने की बड़ी तैयारी चल रही है।

ऐसे माहौल में जब एक बार फिर सामाजिक समरसता पर चोट होने वाली है। ऐसे दूसरे समाधान पर विचार करना बहुत जरूरी हो जाता है। जो जमीनी स्तर पर बड़ा बदलाव ला सकता है। इसी क्रम में ‘नेमप्लेट’ अभियान का आइडिया सामने आता है। जिसके तहत पिछड़े और दलित समाज के सफल लोग अपने गांव वाले घर के बाहर अपना नेमप्लेट लगवाएं। संभव हो तो इसे एक विशेष आयोजन की तरह लें। संभव नहीं हो तो भी बस अपने घर, मुहल्ले के आगे अपने पद, पहचान के साथ अपने नाम का बोर्ड लगवाएं। आपके पद, पहचान वाली तख्ती आपके समाज का आत्मसम्मान बढ़ाएगी। ये छोटा सा प्रयास आपकी आने वाली पीढ़ी की मानसिक ताकत कई गुना बढ़ाने का काम करेगी।    

यकीन मानिए ये छोटा सा प्रयास बड़ा क्रांतिकारी कदम साबित होगा। क्योंकि जाति आधारित भेदभाव शहरों में ज्यादा नहीं है। इसकी जड़ें गांवों में ज्यादा गहरी है। शायद यही वजह है..अच्छी नौकरी या कारोबारी सफलता हासिल करने के बाद पिछड़ी या दलित समाज के लोग वापस अपने गांव से कटते चले जाते हैं। क्योंकि उनके दिलो दिमाग में ये बात घर चुकी होती है..उनके लिए शहर वाला मान-सम्मान गांव में हासिल करना मुश्किल है। उनकी सोच पर ये बात इतनी हावी होती है..गांव में वैसा माहौल नहीं हो तो भी वो अपनी तरफ से पहल नहीं करते हैं। अपनी जड़ों से कटते चले जाते हैं। जबकि सच्चाई ये भी है..गांव के उनकी जाति-समाज के लोगों से ज्यादा उनके रुतबे का लाभ तथाकथित ऊंची जाति के लोग ज्यादा ले जा रहे होते हैं। गांव वाले घर के आगे पद-पहचान के साथ उनके नाम का प्लेट ग्रामीण परिवेश में उनके परिवार, उनके समाज की प्रतिष्ठा को स्थापित करेगा।

‘नेमप्लेट’ अभियान समाज के अंदर से किया जाने वाला सुधार होगा। इससे होने वाला सुधार किसी दूसरे को थोड़ी देर के लिए परेशान तो कर सकता है..उसके अंदर नुकसान का भाव नहीं जगाएगा। बहुत जरूरी है सामाजिक स्तर पर भी कुछ ऐसा किया जाए..बार-बार जाति आधारित सियासी दांवपेंच की जरूरत ही न पड़े। जाति की लड़ाई सियासत की बजाए स्वाभिमान से लड़ी जाए। जाति निजी विषय है..जाति निजी विषय ही रहे। सभी अपनी-अपनी जाति में खुश। जातिगत भेदभाव का मुकाबला संवैधानिक व्यवस्था के साथ स्वाभिमान के साथ किया जाए।

हर किसी को समझना होगा..राजनीतिक फैसले बड़ा बदलाव तो लाते हैं। लेकिन दरार छोड़ जाते हैं। ओबीसी आरक्षण से समाज के एक बड़े तबके को फायदा जरूर मिला। समाज का पिछड़ा तबका..जिसे कमतर दिखाने का एक ट्रेंड सा चल पड़ा था। जिसे नजरअंदाज किया जाता रहा। जिसे पीछे धकेला जाता रहा। उसने बाउंस बैक किया। पिछड़े समाज के अंदर भी बदलाव हुआ। पढ़ाई-लिखाई को लेकर चेतना जागी। लेकिन अब समझ आने लगा है..करीब 10 फीसदी वाले 50 फीसदी से ज्यादा का लाभ ले रहे हैं। जबकि करीब 50 फीसदी आबादी 27 फीसदी के टैप में फंस गई है। साथ ही जाति के आगे बैकवार्ड वाला ठप्पा अलग से परेशान करने लगा है। शायद यही सोच आगे जोर लगा रही है। पहले जातिगत जनगणना किया जाएगा, फिर संख्या आधारित हिस्सेदारी की बात की जाएगी। ये ऐसा चक्कर ऐसा है जो कभी खत्म नहीं होगा। बार-बार ये इनर सर्कल की ओर बढ़ता जाएगा। समाज को गहराई से टुकड़ों में बांटता जाएगा।

ऐसे में जरूरी है कि सरकारी व्यवस्था का लाभ ले चुके पिछड़ा-दलित समाज के लोग, अपनी काबिलियत से शहरों में अपनी विशिष्ट पहचान हासिल कर चुके लोग आगे आएं। अपने समाज का स्वाभिमान बढ़ाने की दिशा में छोटा सा प्रयास करें..’नेमप्लेट’ अभियान को आगे बढ़ाएं। देश और समाज की जातिवादी जड़ता को दूर करने के लिए जोर लगाएं।