प्रदूषण नहीं.. प्रकृति का ‘प्रकोप काल’

‘श्राद्ध’ के बाद इसकी शुरुआत

देश की राजधानी दिल्ली में प्रकृति के प्रकोप काल की शुरुआत हो चुकी है। इन विशेष दिनों में आप साक्षात महसूस करेंगे..मानों प्रकृति आपको सख्ती से एहसास करवा रही हो..वो आपसे नाराज है..आपने किन नकारा नेताओं, अधिकारियों को देश की व्यवस्था संभालने का जिम्मा दे रखा है..सोचिए..समझिए..घर में बैठकर चिंतन कीजिए..देश की राजधानी का आज ये हाल है..सोचिए कल देश का क्या हाल होगा..अभी ऐसा है..आगे कैसा होगा?

1 नवंबर से करीब 15 नवंबर तक..प्रकृति का ये प्रकोप काल चलता है। दिल्ली में रहने वालों लोगों के लिए बाहर निकलना मना होता है। बकायदा इस बात की घोषणा कर दी जाती है.. बहुत जरूरी न हो तो बाहर न निकलें, ऑफिस बिना जाए काम हो जाए तो इससे बेहतर कुछ नहीं, बच्चों को स्कूल न भेजें। कमाई-पढ़ाई की चिंता न करें। ज्यादा से ज्यादा घर में रहें। जान सलामत रहेगी तो कुछ भी कर लेंगे, कुछ भी करके कमा खा लेंगे।

देश की राजधानी की रफ्तार की चिंता आप बिल्कुल न करें। फिर कभी देश को विकसित बना लेंगे। घर में रहना ही बेहतर है..बाहर का माहौल डरावना बना रहता है। पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में धूल, धूंआ और धुंध की मटमैली चादर छाई रहती है। बाहर निकलने पर आंखों में चुभन सी होती रहती है..आंखों से पानी निकलता रहता है..सिर और सीने में भारीपन बना रहता है। मानों प्रकृति इंसानों को सजा देकर एहसास करवाना चाह रही हो..तुम मेरी उपेक्षा करोगे..ऐसे नकारा लोगों के जिम्मे मुझे छोड़ दोगे..तो भुगतो!

‘श्राद्ध’ के बाद इसके शुरुआत के संकेत स्पष्ट हैं..नहीं संभले..व्यवस्था नहीं बदली तो बहुत जल्द आपकी गिनती भी पूर्वजों में होने लगे..इसकी संभावना काफी बढ़ जाती है।