प्रगति मैदान क्यों नहीं पहुंच रहे किसान?

World Food India 2023

जब से दिल्ली के प्रगति मैदान में फूड प्रोसेसिंग फेस्टिवल की जानकारी मिली..जाने की इच्छा जागी..लेकिन इसके पीछे ट्रेड फेयर वाला रोमांच नहीं था..कुछ गंभीर से सवाल दिलो दिमाग पर हावी होने लगे.. क्या भारत में फूड प्रोसेसिंग का धंधा इतना चमक गया है? आंकडें तो बहुत ही आकर्षक बताए जा रहे हैं.. पिछले 9 सालों में कृषि निर्यात में प्रोसेस्ड फूड आइटम की हिस्सेदारी 13 से बढ़कर 23 फीसदी हो गई है। प्रोसेसिंग फूड के निर्यात में 150 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। क्या वाकई ऐसा हो रहा है?

इसके साथ ही..जो सवाल सबसे ज्यादा परेशान कर रहा था..वो किसानों से जुड़ा था। अगर इतना कुछ हो रहा है तो इन सब में किसान कहां खड़ा है? इस उभरती चमकती कारोबारी दुनिया से वो दूर क्यों हैं? आखिर कब तक देश के किसानों को मजबूर, लाचार ही दिखाया जाता रहा है? बताया जाता रहेगा कि सरकार की नीतियों का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा है। चुनाव में किसानों की कर्ज माफी अभी भी सबसे बड़ा मुद्दा बनता है। हमेशा उनकी परेशानियों की ही चर्चा होती है। उन्हें मिलने वाले अवसरों पर बात क्यों नहीं होती? उन्हें इस ग्लोबल रेस का हिस्सा बनाने की कवायद क्यों नहीं दिखती?

यकीन मानिए..जैसे-जैसे वर्ल्ड फूड इंडिया-2023 को समझता गया.. अलग-अलग स्टॉल पर जाकर नई नई जानकारियां हासिल करता गया..बहुत कुछ सामने था..जिनमें कुछ को समझना जरा मुश्किल था, लेकिन बहुत कुछ ऐसा था जो बहुत सामान्य था। हमारे रोजमर्रा की आवश्यकताओं के बिल्कुल करीब..सब कुछ खेती किसानी से जुड़ा। सब कुछ अनाज, सब्जियों, फलों से जुड़ा। नई-नई तकनीक..इनोवेटिव तरीके से तैयार किए गए नए-नए फूड आइटम्स। स्वाद और आसान तकनीक की  एक नई दुनिया..जो हमारे मौजूदा जीवन को बेहतर और सेहतमंद बना सकती है। जिसमें असीम संभावनाएं हैं। जिसे जल्द से जल्द..ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है।  

सही बता रहा हूं.. सबसे ज्यादा किसानों वाले सवाल परेशान करने लगे। यहां किसान क्यों नहीं नजर आ रहे? उन्हें तो यहां जरूर होना चाहिए था। बेशक इवेंट फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के लिए हो..ज्यादातर वही लोग दिख भी रहे थे। लेकिन बेस में तो किसान ही हैं। उन्हें यहां जरूर आना चाहिए था।

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश से किसानों का जत्था दिल्ली जाम करने के लिए दूर-दूर से यहां आ सकता है। कभी कुछ, तो कभी कुछ..किसी न किसी वजह से गाड़ियों में भरकर किसानों के दिल्ली आने की बात आम है। किसान जंतर-मंतर पहुंच सकते हैं..तो प्रगति मैदान क्यों नहीं? उन्हें यहां जरूर लाया जाना चाहिए था। कुछ वैसे ही जैसे ट्रेड फेयर दिखाने के लिए बच्चों को बसों में भरकर लाया जाता है। यहां आते तो देखते.. कैसे उनकी ही चीजों पर आधारित करोड़ों का कारोबार किया जा रहा है। कितनी चमक-दमक..कितना उत्साह है? उनके सामने कितने सारे ऑपशन हैं? जो उनकी दुनिया बदल सकते हैं। उन्हें आर्थिक मजबूती दे सकते हैं। उनके काम को विस्तार देने के लिए..कितना कुछ किया जा रहा है। छोटे-बड़े सभी किसानों के जानने के लिए बहुत कुछ डिसप्ले में लगा है। सबकुछ समझाने के लिए प्रोफेशनल्स की पूरी टीम खड़ी है।

ऐसा बहुत कुछ था..जो मुझे आकर्षित कर रहा था..एक ‘सब्जी कोठी’ दिखी..जिसमें आप सब्जियों और फलों को 20 दिनों तक फ्रेश रख सकते हैं। बहुत ही आसान तरीके से..बिना किसी खर्चे के।

एक मोबाइल फूड प्रोसेसिंग यूनिट दिखी..जो एक घंटे में 40 किलो टमाटर, प्याज, लहसन या फिर अदरख की पेस्ट बना सकती है। जिसमें करीब 20 फीसदी की वेस्ट निकलती है। इस मोबाइल वैन को कहीं भी आसानी से ले जाया जा सकता है। आए दिन..किसानों के द्वारा प्याज, टमाटर फेंकने की ख़बर सुनने को मिलती है..ये मशीन वैन उस समस्या का आसान सा समाधान लगी।

एक ग्रेन पॉपिंग मशीन भी दिखी..जो बहुत ही आसान और हाइजेनिक तरीके से मुरमुरे तैयार कर रही थी। एक बकरी और ऊंठ के दूध के पाउडर का स्टॉल भी दिखा..पता चला वो कंपनी अपना बहुत सारा माल अमेरिका, चीन, जापान, कनाडा, UAE जैसे देशों में एक्सपोर्ट करती है। वेजिटेरियन लोगों के लिए पनीर, सोया की तरह का एक नया प्रोडक्ट भी दिखा। ‘इवोलव्ड’ ब्रांड के तहत तैयार ये प्रोडक्ट रेडी टू सर्व बताया गया..जो नॉन वेज कबाब बिरयानी को टक्कर दे सकता है।

एक अनोखा स्टॉल भी दिखा जहां दूध के साथ कई सारे फूड आइटम्स की क्वालिटी चेक करने वाला किट मौजूद था। पता चला ये बेहद जरूरी किट पब्लिक तक नहीं पहुंच पा रहा है। दो सालों से सरकारी फाइलों में अटका है..वहां से निकलने के बाद ही इसे बाजार में बेचा जा सकेगा।

‘ज्वापा’ नाम के स्टॉल पर चावल से तैयार बहुत सारे आइटम दिखे..जिनमें नूडल्स, सेवईं शामिल है। बहुत बड़ी कंपनियों के स्टॉल भी दिखे जो अपने खास इम्पैनल्ड किसानों से अच्छी कीमत पर क्वालिटी अनाज वगैरह खरीदते हैं। सबसे शानदार और जरूरत की चीज ‘इकोलास्टिक’ दिखी..जिसे प्लास्टिक का सबस्टिट्यूट बताया गया। जो 80 दिनों के अंदर डिकंपोज हो जाता है। इससे तैयार थैले, डस्टबिन बैग प्रकृति को नुकसान नहीं पहुंचाते। इसके विस्तार पर भी अभी काम चल ही रहा है।    

किसानों को सियासी और चुनावी भीड़ की तरह इस्तेमाल करने वाले किसान नेताओं की ये जिम्मेदारी बनती है..वो किसानों को फूड प्रोसेसिंग की इस उभरती कारोबारी दुनिया से जरूर रूबरू करवाएं। ये सरकारों की भी जिम्मेदारी बनती है..वो किसानों को सीधे तौर पर इस फूड प्रोसेसिंग सेक्टर से जोड़ने के लिए गंभीर प्रयास करे। ऐसे इवेंट में जाना उनका जीवन बदल सकता है। उनकी सोच में बड़ा और बेहतर बदलाव ला सकता है।