‘दिल्ली अध्यादेश बिल’ मतलब दिल्ली की बर्बादी!

दिल्ली की ‘सुपारी’ सियासत

कोई सुनी सुनाई बात नहीं अपने अनुभव के आधार पर बताना चाहता हूं। 20-25 सालों से मैं दिल्ली में पत्रकारिता कर रहा हूं। कई न्यूज़ चैनलों से जुड़ा रहा हूं। दावे के साथ कह सकता हूं..प्रशासनिक तौर पर दिल्ली के हालात दिन ब दिन बिगड़ते चले जा रहे हैं। जिसके लिए मैं आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी की सियासी लड़ाई को जिम्मेदार मानता हूं। दिल्ली पुलिस हो या फिर कोई और सरकारी विभाग, ज्यादातर अधिकारियों ने मानों तय कर लिया हो दिल्ली वालों को परेशान करना है ताकि दोनों पार्टियों से अपने हिसाब से लाभ लिया जा सके। ये प्रशासनिक परंपरा आप और बीजेपी के बीच ‘सुपारी’ सियासत के लिए खाद-पानी का काम करती है। विशेषकर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को समझना होगा दिल्ली अध्यादेश बिल का आना मतलब स्थाई तौर पर दिल्ली को बर्बादी की ओर धकेलना।

उदाहरण के तौर पर मैं आपको दिल्ली परिवहन विभाग के साथ अपना पिछले करीब तीन महीने का अनुभव बताना चाहता हूं। पिछले तीन महीने से मैं अपनी एक बीस साल पुरानी कबाड़ा बाइक को छुड़वाने के लिए चक्कर लगा रहा हूं। दिल्ली परिवहन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को समझाने में जुटा हूं..आपका काम सड़कों पर से कबाड़ उठाने का नहीं है। मेरी सालों पुरानी सड़ी-गली बाइक को दिल्ली परिवहन विभाग ने बिना बताए मेरे घर के सामने से उठा लिया। एनजीटी के आदेश के बारे मुझे पता था। लेकिन मुझे उम्मीद थी कोई बात तो करेगा। मैंने अपने चैनल के रिपोर्टर से जब बात की, उसने दिल्ली के परिवहन मंत्री के पीए का नंबर दिया। मंत्री के पीए के जरिए मुझे पता चला दिल्ली में गाड़ियों को उठाने की कार्रवाई को दिल्ली परिवहन विभाग के स्पेशल कमीश्नर शहजाद आलम अंजाम दे रहे हैं।

मैं शहजाद आलम से मिला, उन्हें बताया बाइक कबाड़ में तब्दील हो चुकी है। चलेगी ही नहीं तो प्रदूषण कहां से फैलाएगी? मैं बाइक का इस्तेमाल अपनी गाड़ी की पार्किंग की जगह आरक्षित करने के लिए करता हूं। अपने मोहल्ले में मैं सबसे देर से घर लौटता हूं तब तक पार्किंग फुल हो चुकी होती है। शहजाद आलम के लिए ये बिल्कुल नई बात थी। उन्हें ये भी समझाया दिल्ली में पार्किंग बहुत बड़ी समस्या है। उन्होंने मुझसे अप्लीकेशन लिया। एक युवा आईएएस की पहली प्रतिक्रिया से एक उम्मीद सी जगी। इस बीच ये भी पता चला ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर कैलाश गहलोत परिवहन विभाग के इस रवैये से नाराज चल रहे हैं। उन्हें भी काफी शिकायतें मिल रही हैं। उन्होंने विभाग से इस प्रक्रिया को दुरुस्त करने के लिए कहा है।

कुछ ही दिनों बाद दिल्ली परिवहन विभाग का लेटर मिला। जिसमें वही सामान्य बातें लिखी थीं..एनजीटी के आदेश से बाइक को उठा लिया गया है। अब बाइक वापस नहीं की जा सकती है। बड़ी निराशा हुई एक सामान्य सी परेशानी एक युवा आईएएस अधिकारी नहीं समझ सका।

इसी बीच ये भी पता चला विभाग ने एनजीटी से एक और आदेश जारी करवा लिया जिसमें पॉल्यूटिंग वेहिकल की जगह एंड लाइफ वेहिकल लिखवा लिया है। मतलब आपकी गाड़ी प्रदूषण करती है या नहीं इससे विभाग को कोई मतलब नहीं। सोचिए जिस एनजीटी के होने का अहसास दिल्ली वालों को बड़ी मुश्किल से होता है। 5 साल, 10 साल में जागने वाली एनजीटी महज 10 दिनों मे नया आदेश जारी कर देती है। निजी तौर पर बात करूं तो सिविल लाइंस इलाके में मेरे घर के बगल से बड़ा सा नाला गुजरता है, जिसकी गैस से एसी के पाइप गल जाते हैं। मुझे ऐसे लोग भी मिले जो ऑक्सीजन गैस के सहारे जी रहे हैं। घर के पास बिल्डिंग मैटेरियल वाले ने जीना मुहाल किया हुआ है। मोहल्ले के सारे बुजुर्ग मुझसे उसे हटवाने को कहते रहते हैं। सालों हो गए एनजीटी की तरफ से इस तरह के मामलों में कभी कोई सख्त आदेश या एक्शन नजर नहीं आया। एक मृतप्राय संस्था से परिवहन विभाग अपने हिसाब से बड़ी आसानी से आदेश में बदलाव लेता है। इससे अधिकारियों के बड़े नेक्सस का पता चलता है। जिसके आगे दिल्ली सरकार के मंत्री तक लाचार नजर आते हैं।  

दिल्ली परिवहन विभाग का लेटर मिलने के बाद से मैं पिछले डेढ़-दो महीने से शहजाद आलम से मिलने की कोशिश कर रहा हूं। उन्हें ये बकायदा लिखकर  समझाने की कोशिश कर रहा हूं..एनजीटी दिल्ली परिवहन विभाग से कबाड़ उठाने के लिए नहीं कह रहा है। एनजीटी साफतौर पर कहता है..गाड़ी चल रही हो या फिर चलने की स्थिति में हो..तभी उसे जब्त किया जाए।

दिल्ली परिवहन विभाग के स्पेशल कमीश्नर, एक युवा आईएएस से आप ऐसी नासमझी और अड़ियल रवैये की उम्मीद नहीं कर सकते। फिर पता चला शहजाद आलम को एलजी वीके सक्सेना लेकर आए हैं। फिर समझ आया वो एलजी साहब का हुक्म फॉलो कर रहे हैं। एलजी को खुश करना ही जब अधिकारी का मकसद बन जाए तो वो दिल्ली वालों की क्यों सुनेगा? जब एक सीनियर जर्नालिस्ट की इतनी छोटी सी बात नहीं सुन रहे अधिकारी, सोचिए एक सामान्य नागरिक का क्या हाल होगा?  

एलजी साहब की पूरी भूमिका ही संदिग्ध लगती है। 13 जुलाई को दिल्ली में बाढ़ आई, 12 तारीख को जब यमुना खतरे के निशान से ऊपर जा चुकी थी..एलजी साहब उस दिन दिल्ली परिवहन विभाग के अधिकारियों के साथ मैराथन बैठक कर रहे थे। ऐसा लगता है..दिल्ली की सियासत में दिल्ली वालों को परेशान करने की ‘ठेका’ प्रथा चल रही है।

बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से अनुरोध है आम आदमी पार्टी के साथ अपनी सियासी लड़ाई को संस्थागत स्वरूप न दें। किसी और तरीके पर विचार करें। दिल्ली अध्यादेश बिल लाने का मतलब होगा देश की राजधानी को स्थाई तौर पर..पद के लालची, भ्रष्ट, अति महत्वाकांक्षी अधिकारियों के सामने नोंच खाने के लिए फेंकना। ये दिल्ली की दो करोड़ जनता के भविष्य के साथ भयंकर खिलवाड़ होगा।