स्कूल वालों की जानलेवा जिद

कोरोना काल में हर दिन चुनौती भरा है। लोगों के काम धंधे बुरी तरह प्रभावित हैं। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रही है। कोरोना काल में सबकुछ ठप्प रहा। विशेषकर शुरूआत के तीन महीने किसी भी तरह की व्यवसायिक गतिविधि नहीं हुई। नतीजतन कई लोगों की नौकरी चली गई। ऐसे मुश्किल भरे दौर में भी निजी स्कूलों की मनमानी कम होने का नाम नहीं ले रही। कोई फीस कम नहीं कर रहा, कोई कम कर रहा है तो बीच बीच में कुछ न कुछ अतिरिक्त खर्चा जोड़ दे रहा है। और तो और कुछ स्कूल तो फीस बढ़ा भी रहे हैं। यूं तो इस मामले में दिल्ली एनसीआर के स्कूल पहले से ही बदनाम रहे हैं। लेकिन इस मुश्किल की घड़ी में भी ये नहीं मानेंगे ऐसा किसी ने सोचा नहीं था। तभी दिल्ली के प्रतिष्ठित संस्कृति स्कूल के मामले में दिल्ली सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा। शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया ने स्पष्ट कर दिया कि स्कूल किसी भी तरह से फीस बढ़ोतरी नहीं कर सकता है। सरकार द्वारा पहले मार्च महीने में दिए गए फीस बढ़ोतरी के ऑर्डर रद्द कर दिए गए। जिसका हवाला देकर स्कूल ने फीस तकरीबन डबल कर दी थी।

ऐसे ही हालात डीपीएस मथुरा रोड में भी देखने को मिला। वहां भी अभिवावक ज्यादा फीस के विरोध में सड़कों पर आंदोलन करते दिखे। स्कूल की तरफ से कोई सुनवाई नहीं किए जाने से निराश होकर पैरेंट्स दिल्ली सरकार से हस्तक्षेप के लिए गुहार लगा रहे हैं।

मॉडल टाउन स्थित नॉर्थ दिल्ली के सबसे पुराने प्रतिष्ठित एजीडीएवी स्कूल का प्रशासन भी ताक में रहता है कि किस तरह से ज्यादा फीस वसूला जाए। आए दिन स्कूल कोई न कोई तिकड़म के साथ सामने आता ही रहता है। लेकिन पैरेंट्स की जागरूकता काम कर जाती है। समय समय पर दिल्ली सरकार के द्वारा जारी फीस संबंधी गाइडलाइन पैरेन्ट्स के लिए बड़ी सहायक साबित होते रहे हैं। अगस्त महीने में स्कूल ज्यादा फीस वसूलने की तैयारी में था लेकिन उन्हें निर्णय बदलना पड़ा। ताजा विवाद लेट फाइन को लेकर है। सरकार के बार बार कहने के बावजूद स्कूल मजबूर पैरेंट्स से धड़ल्ले से लेट फाइन वसूल रहा है।

दिल्ली से सटे गाजियाबाद में तो हालात बहुत ही खराब दिख रहे हैं। वहां ‘नो स्कूल नो फीस’ के नाम से काफी दिनों से आंदोलन चलाया जा रहा है। मांग की जा रही है कि अप्रैल, मई और जून में जब स्कूल पूरी तरह से बंद रहे उसके लिए फीस नहीं लिया जाए। स्कूल अपने खर्चे के लिए जमापूंजी में से फंड निकाले। न कि रोजी रोटी संकट से गुजर रहे पैरेंट्स पर बोझ डाले। जब से ऑनलाइन क्लासेज शुरू की गई हैं उसके लिए भी ज्यादा फीस न वसूला जाए। लेकिन स्कूल प्रशासन मानने को तैयार नहीं। जबकि हाई कोर्ट की तरफ से भी अभिवावकों के पक्ष में फैसला आया। बावजूद इसके प्रशासन स्कूलों पर नकेल लगाने में नाकाम रहा है। इसके विपरित जो पैरेन्ट्स पिछले सात दिनों से भूख हड़ताल कर रहे थे उन्हें जबरन हटाया गया। गाजियाबाद प्रशासन का रवैया इस मामले में बेहद निराशाजनक रहा है।