मंदिर मिला..अब अस्पताल मांग लो !

Darbhanga Hospital
दरभंगा के सरकारी अस्पताल का उदाहरण - कब गिर जाए पता नहीं – इलाका बौद्धिकता में सबसे आगे, बीमारी के इलाज में सबसे पीछे

एक प्रतिशत अब और नहीं

अयोध्या में राम मंदिर बनेगा ऐसा कुछ साल पहले तक अंसभव सा लगता था। इसकी आवश्यकता पर बहस अब निरर्थक ही है। जिस देश में सबसे बड़े आराध्य श्री राम रहे, आध्यात्मिक और धार्मिक पहचान सदियों से जिनसे आयाम पाती रही, उस देश में लंबे समय से उनके भौतिक वजूद पर बहस हुई, कानूनी लड़ाई चली, फिर जाकर राम मंदिर का निर्माण प्रारंभ हो सका। समझना होगा ये इसलिए संभव हो सका क्योकि अयोध्या में राम मंदिर की आवश्यकता हिन्दू बहुल भारत के जनमानस के अंतर्मन ने इसे माना और चेतन मन से सत्ता की कमान एक ऐसे दल को सौंपी जिसने राम मंदिर के एजेंडे पर लंबा काम किया। राजनीतिक इच्छा शक्ति आधार बनी, सारी व्यवस्था ने सार्थकता के साथ अपना काम किया, जिसने मंदिर की सोच को साकार कर दिया।

यहां इस बात को जोड़ते चलना होगा कि इसका सबसे बेहतर समाधान तो यही होता कि देश का मुस्लिम समाज बजाए कानूनी लड़ाई के, अपनी तरफ से ही आगे बढ़ कर अयोध्या और राम के संबंधों की मर्यादा को मानते हुए मंदिर निर्माण की हामी देता। खैर ऐसा हो न सका, ये देश का दुर्भाग्य है कि उसके पास ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो बिना किसी इफ एंड बट के दोनों धर्मों में अपनी समान स्वीकार्यता रखता हो।

आज की तारीख में इस पर इससे ज्यादा चर्चा की आवश्यकता नहीं। लेकिन समझना ये होगा कि ऐसा दुभर काम तभी संभव हो सका जब देश के अंतर्मन से आवाज आई। एक ऐसी आवाज जिसने कही न कही सभी दूसरे सियासी दलों की नैतिक सीमाओं को कमजोर किया तभी जाकर आम जन की मांग साकार होने की दिशा में बढ़ सकी।

ऐसे ही अब एक बार फिर मन बनाने की आवश्यकता है कि देश के कोने कोने में एक अच्छा अस्पताल हो, इसकी मांग बुलंद हो। वक्त आ गया है कि राम मंदिर से आगे बढ़ा जाए और बेहतर स्वास्थ्य सेवा की आवश्यकता पर देश का अंतर्मन तैयार हो। अच्छा ये है कि इसमें किसी धर्म या जाति की बाधा नहीं आने वाली। इसका लाभ तो सबके लिए है। यकीन मानिए जो देश की आम जनता चाहती है देश में वही होता है। देश का प्रधान यानी राजा उसी दल का होता है। लोकतंत्र की यही ताकत है। माना की देश के नौकरशाह, सिस्टम से जुड़े तमाम लोग देश की नहीं अपने हितों को प्राथमिकता देते हैं। लेकिन जन बल से तैयार आत्मबल जिस सियासी पार्टी के नेतृत्व के पास होता है, बहुमत उसी का होता है, राजा उसी का होता है, परिवर्तन वैसा ही होता है, यही इस व्यवस्था का सच है।

कोरोना महामारी से इतना सबक तो देश सीख ही सकता है। देश की सबसे बड़ी आवश्यकता की बात को आगे बढ़ा सकता है। देश के धन का महज एक प्रतिशत के करीब स्वास्थ्य सेवा पर खर्च अब आगे ना हो, इस बात को आगे बढ़ा सकता है। अमेरिका 15 से उपर तो चीन 5 से उपर खर्च करता है। आबादी के लिहाज से तो हमारे यहां ये आंकड़ा बहुत ही कम है। मतलब जनता की ये मांग देश के नेताओं को महान बनने का नया मंत्र तो दे ही सकती है। बस इतनी सी बात है। ना तो किसी पुराने ढांचे को गिराना है, और ना ही कुछ नया महंगा निर्माण करना है, बस एक लाइन में कुछ आंकड़ों को जोड़ना है। कुछ बाबुओं को काम पर लगाना है। उन्हें अपनी जिम्मेदारी का एहसास करवाना है।

लोकतांत्रिक व्यवस्था में बात घूम फिर कर राजनीतिक इच्छा शक्ति पर ही आ जाती है। इसलिए राजनेताओं को समझाना है कि वोट बैंक के छद्म आकर्षण में लूटा दो जहां जितना लूटाना है जनता का पैसा, लेकिन जनता की स्वास्थ्य सेवा पर एक प्रतिशत अब और नहीं !