प्रधान का सम्मान – प्रजातंत्र की पहली शर्त

जिस देश में अपने प्रधानमंत्री के प्रतीक पुतले को जलाया जाने लगे वो भी दशहरा के पावन अवसर पर..समझना होगा सभी को कि संकट बड़ा है..समझाना होगा सभी को कि यह प्रजातंत्र की पहली शर्त को ही समाप्त कर देने जैसा है। इसे किसी व्यक्ति के नापसंद होने या किसी नीति के विरोध से जोड़ कर बिल्कुल नहीं देखा जाना चाहिए। क्योंकि सरकार के विरोध की एक स्थापित परंपरा है..पूरी व्यवस्था है..जिसके इतर जाना न सिर्फ प्रधान का अपमान है बल्कि प्रजातंत्र की पूरी व्यवस्था को धता बताना है।

जिस तरह से पूरे पंजाब में जगह जगह पर बड़े ग्राउंड में बकायदा घोषणा करके रावण की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला दहन कार्यक्रम आयाजित किया गया..विचलित करने वाला है..इसकी जितनी निंदा की जाए कम है। यह देश को दुनिया की नजर में शर्मिंदा करने जैसा है। इससे भी ज्यादा यह पूरे पंजाब का अपमान है। कैसे कुछ गिने चुने उपद्रवियों के आगे नतमस्तक हो जाता है पूरा का पूरा सूबा? पहला विरोध तो वही की जनता के द्वारा होना चाहिए। कैसे वे देश ही नहीं दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेताओं में शुमार नरेंद्र मोदी का पुतला दहन करने की छूट दे सकते हैं?  

पंजाब में ही ऐसा क्यों देखने को मिलता है देश को…प्रधानमंत्री का निर्णय पसंद नहीं आया तो चंद चरमपंथियों ने प्रधानमंत्री को ही मार दिया। इसके बाद देश ने क्या झेला सारी दुनिया ने देखा। प्रधानमंत्री देश का गौरव होता है। वह देश को किसी राजवंश की देन नहीं है। करोड़ो लोगों की चाहत समेट कर ही वह प्रधान की गद्दी पर बैठा है। उसका अपमान उन करोड़ों लोगों की भावना पर लात मारने जैसा है, जिसके गंभीर परिणाम होते हैं।

किसी सामान्य जनआंदोलन, हड़ताल..प्रदर्शन आदि में पुतला दहन फिर भी समझ में आता है..लेकिन दशहरा के दिन रावण की जगह देश के प्रधानमंत्री का पुतला जलाना बौद्धिक दिवालिएपन को दिखलाता है। इस तरह से पुतला फूंकने वालों ने भारत की संस्कृति को भी दूषित करने का गुनाह किया है। यह गंभीर अपराध है।

बावजूद इसके प्रति जो प्रतिक्रिया सत्ता पक्ष या विपक्ष दोनों ही ओर को देखने को मिली बहुत ही निराश करने वाली रही। दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी के चहेते राजनेता का इतना बड़ा..न सिर्फ राजनैतिक..बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक अपमान हुआ। उसकी प्रतिक्रिया में पार्टी प्रमुख ट्विट करके खेद जताते हैं। समझ में तो यही आता है कि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा या तो इसकी गंभीरता नहीं समझ पा रहे या फिर इसका कोई सियासी लाभ साधने में लगे हैं।

कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी ने भी इस संदर्भ में ट्विट करना ही बेहतर समझा। जिसमें इस घटना को गलत तो बताया साथ ही मोदी सरकार को सलाह भी दे दी कि किसानों से बात करें। स्पष्ट नहीं कर पाए कि नाराजगी प्रधानमंत्री के पुतला दहन से है भी या नहीं। कायदे से तो उन्हें एक नसीहत पंजाब में अपनी कांग्रेस सरकार को भी देनी चाहिए कि इस तरह से सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन को गंदी राजनीति से दूषित न करे। और तो और छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में एनएसयूआई के जिला अध्यक्ष हिमांशु जायसवाल को तुरंत देश की सबसे पुरानी पार्टी से उन्हें बाहर कर देना चाहिए। जिसने वहां भी प्रधानमंत्री का पुतला दहन आयोजित किया। वहां भी सरकार कांग्रेस की ही है। माना यह संयोग है..फिर भी इस तरह के सियासी प्रयोग से परहेज करें। इसकी आग सबको जलाने वाली है..जो भी इस प्रजातांत्रिक व्यवस्था का कर्णधार बनने का दंभ भरता है।

यह किसी व्यक्ति विशेष का अपमान नहीं यह पूरी लोकतांत्रिक परंपरा का अपमान है। यह परंपरा गलत है। इसे किसी भी तरह से इसी समय रोकना होगा। पक्ष विपक्ष के लाभ हानि से ज्यादा यह देश के गणतांत्रिक गौरव पर आघात है।