बिहार का बेटा V/s महाराष्ट्र का बेटा

‘बिहार के बेटे को न्याय दिलवाने के लिए महाराष्ट्र के बेटे को बदनाम किया गया’..सुशांत सिंह सुसाइड मामले में एक बार फिर महाराष्ट्र की सत्ता पर आसीन शिवसेना शीर्ष की तरफ से निराश करने वाला बयान सामने आया। इस बार मोर्चा संभाला है मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने। उनका यह बयान दशहरा के मौके पर आयोजित होने वाली शिवसेना की पारंपरिक रैली में आया। सुशांत सिंह के मामले में अपने बेटे आदित्य ठाकरे का नाम घसीटे जाने को लेकर वे अपने कार्यकर्ताओं को सफाई दे रहे थे।

इस तरह से बार बार शिवसेना की तरफ से सुशांत सिंह की मौत पर गैरजिम्मेदाराना बयान संशय कम करने की बजाए बढ़ा ही देता है। इसे बिहार के बेटे और महाराष्ट्र के बेटे की बीच की लड़ाई बताने का क्या मतलब बनता है। समझ नहीं आता कि एक सफल और चर्चित अभिनेता की संदेहास्पद स्थिति में मौत हो जाती है। लेकिन मुंबई पुलिस एक एफआईआर तक दर्ज नहीं करती। मामले को बहुत ही हल्के तरीके से निपटाते हुए बिल्कुल साफ दिखती है। यह तो गनीमत है कि सुशांत के चाहने वाले, जो कि देश और विदेश में फैले हैं, उन्होंने मौत पर सवाल उठाना शुरू किया। इसकी शुरुआत किसी भी न्यूज चैनल या अखबार के माध्यम से नहीं किया गया। सबसे पहले यहा खबर सोशल मीडिया की सनसनी बनी। विशेषकर ट्विटर पर सुशांत के चाहने वालों ने बवाल मचाया। जिसे देखने के बाद ही टीवी चैनलों ने इस मामले में अपने अपने अंदाज में एंट्री मारी। रिपब्लिक भारत ने सबसे ज्यादा सक्रीयता के साथ बढ़त बना ली।

यह सब अपने आप हो रहा था। इसके पीछे कोई ताकत काम कर रही थी तो वो केवल और केवल सुशांत सिंह राजपूत के प्रति लोगों का प्यार। जो भी घालमेल हुआ..बाद में हुआ। सुशांत के चाहने वालों के इस भावनात्मक उबाल को कई लोगों ने अपने अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया। बाद में इस मामले में कई एंगल आए। बिहार चुनाव को भी बड़ी वजह बना कर दिखाया गया।

रिपब्लिक टीवी और कंगना का महाराष्ट्र सरकार के साथ रार तो अभी भी बरकारार है। निकट भविष्य में इसके थमने के आसार भी नहीं दिख रहे हैं। कोई माने या न माने इस मुद्दे के दम पर ही रिपब्लिक टीवी देश का नंबर वन न्यूज चैनल बन गया। कंगना की टीआरपी भी खूब बढ़ी। रिया लाई गई, ड्रग्स कनेक्शन ने भी खूब सुर्खियां बटोरी।

लेकिन इन सब के बीच पीछे रह गई सुशांत के लिए शुरू हुई न्याय की लड़ाई। और इसके लिए जिम्मेदार है तो बस महाराष्ट्र सरकार। जो हमेशा ही इस पूरी लड़ाई में विलेन की तरह समय समय पर सामने आती रही। एक बार फिर असत्य पर सत्य के विजयोत्सव के मौके पर उन्होंने नई बहस छेड़ दी। महाराष्ट्र का बेटा निर्दोष है, उसे बदनाम किया गया..बिहार के बेटे ने बेवजह ही अपनी जान दे दी..कुछ ऐसा ही संदेश वे दशहरा रैली में देते नजर आए। मतलब इतना कुछ होने के बाद भी..विशेषकर अभी सीबीआई का फाइनल वर्जन सामने आया भी नहीं..मानो उन्होंने कह दिया कि सुशांत केस में कोई जान नहीं। जबकि न्याय दिलवाने की सारी की सारी जिम्मेदारी महाराष्ट्र सरकार की ही बनती है। अगर इतनी बड़ी संख्या में लोगों को संशय है तो जांच करवाने में क्या दिक्कत है? बार बार सूबे की सरकार रोड़ा अटकाती क्यों नजर आती है?

आदित्य ठाकरे फिल्मी पार्टियों में जाने का शौक रखते हैं, यह बात अब तक कई लोगों ने कई बार साबित कर दिया है। फिल्मी पार्टियों में कई तरह के गलत काम होते हैं.. इससे भी किसी को इंकार नहीं हो सकता है। इन पार्टियों का कनेक्शन सुशांत मामले में सामने आना भी अचंभित नहीं करता। सब जांच के दायरे में है। अगर इसमें कुछ भी गलत है तो आदित्य सामने आकर इसे खारिज कर दें।

बेटे की बदनामी की चिंता तो है पिता को..लेकिन मुख्यमंत्री को न्याय की फिक्र है ऐसा दिखता तो नहीं। अगर ऐसा होता तो सुशांत की मौत पर मुंबई पुलिस की प्रारंभिक जांच को बेकार बताने वाला बयान सरकार की तरफ से इतनी जल्दी तो बिल्कुल नहीं आता। न ही सत्तासीन पार्टी के सबसे धारदार प्रवक्ता और सांसद, संजय राउत गैरजिम्मेदाराना बयान देते नजर आते। क्या नहीं कहा उन्होंने, सुशांत को मानसिक रोगी, लापरवाह और एय्याश बताया, उसके पिता का चरित्र हनन करने से भी नहीं चूके। यह सब शुरू संजय राउत ने ही किया। ऐसा बिना शिवसेना के मुख्यमंत्री की सहमति के हो रहा होगा मानना जरा मुश्किल है। बाद में सुशांत के चाहने वाले संजय राउत और शिवसेना के पीछे पड़े…और साथ ही आदित्य ठाकरे वाले एंगल पर चर्चा गर्म हुई।

समय रहते शिवसेना को समझना होगा कि यह लड़ाई न्याय की है, इसमें सत्ता साथ खड़ी ही अच्छी दिखती है। इसे किसी भी और तरीके से दिखाना, इसके बारे में कुछ भी गलत बतलाना..कम से कम सूबे के मुखिया को तो सूट नहीं करता।