दिल्ली सेवा बिल कानून बना
संसद से पास होने के बाद दिल्ली सेवा बिल पर राष्ट्रपति की मुहर लग गई है। अब एक बार फिर जोरशोर से ऐलान हो गया है। दिल्ली के असली बॉस उपराज्यपाल हैं। मतलब अब दिल्ली वालों को किसी भी समस्या का समाधान देने की जिम्मेदारी दिल्ली के उपराज्यपाल की है। उपराज्यपाल की कमान केंद्र सरकार के हाथों में है। आप कह सकते हैं..इसमें नया क्या है..ये व्यवस्था तो पहले से चली आ रही है। केंद्र सरकार ने तो इसे फिर से स्थापित किया है। आप कह सकते हैं..दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल नीति विरुद्ध काम कर रहे थे..उसी को मजबूती से स्थापित किया गया है। जानकार बता रहे हैं..अब दिल्ली के मुख्यमंत्री के अधिकार और भी सीमित हो गए है।
संसद में इस पर काफी चर्चा हुई। बीजेपी की तरफ से दिल्ली सेवा बिल की अनिवार्यता पर काफी कुछ कहा गया। आम आदमी पार्टी गुट की तरफ से बिल को दिल्ली की सरकार के काम काज को बाधित करने वाला बताया गया।
लेकिन इस चर्चा में दिल्ली की जनता की कोई बात किसी भी खेमे की तरफ से नही की गई। दिल्ली की जनता पिछले कुछ सालों से जिन परेशानियों का सामना कर रही है। उसकी तरफ किसी ने भी इशारा नहीं किया। दिल्ली का काम-काज संभालने वाला हर सरकारी विभाग सियासी अखाड़ा बन चुका है। जिसमें बैठे ज्यादातर बड़े अधिकारी गुपचुप तरीके से किसी न किसी सियासी खेमे को खुश करने में लगे हैं। ऊपर से पता नहीं चलता है। लेकिन जैसे ही कोई परेशानी लेकर आप उनके पास पहुंचते हैं। सियासी दांव-पेंच शुरू हो जाते हैं। अधिकारियों की समझ अपने विभाग के बारे में नेताओं से तो बेहतर होती ही हैं..दिल्ली वालों को परेशान करना है या दिल्ली वालों को राहत देना है..इस मसले पर सियासी खींचतान शुरू हो जाती है। सब कुछ इतने शातिराना तरीके से होता है..इसे आम दिल्ली वालों के लिए समझना बहुत ही मुश्किल है। अधिकारी अपने सियासी हित के हिसाब से इसे केंद्र सरकार या राज्य सरकार को भला-बुरा साबित करते रहते हैं। ये सब कुछ बहुत खुलकर नहीं होता है।
उदाहरण के तौर पर आप मुखर्जी नगर इलाके में जारी सीलिंग की कार्रवाई को ले सकते हैं। कुछ लोगों की लापरवाही से एक कॉमर्शियल बिल्डिंग में आग लगी। छात्रों की जान मुश्किल में फंसी। हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया। अब इलाके में हाहाकार मचा है। कुछ लोगों की लापरवाही हजारों..लाखों लोगों की परेशानी का कारण बनी हुई है। एमसीडी की तरफ से कोचिंग सेंटर सीज किए जा रहे हैं। दूकानों-ऑफिसों में ताला लगाया जा रहा है। आम आदमी पार्टी के पास एमसीडी की कमान अभी-अभी आई है। बताया तो यही जा रहा है कि उनकी समझ में ही नहीं आ रहा..एमसीडी की भ्रष्टतम व्यवस्था में समाधान कैसे निकाला जाए। ऐसी परिस्थितियों में आप अधिकारियों से समाधान की उम्मीद वैसे भी नहीं कर सकते। अभी तो अधिकारियों और आम आदमी पार्टी के बीच वैसे भी तलवार खींची है। इन सब के बीच बीजेपी, कांग्रेस और आप पार्टी के नेताओं के बीच सियासी घमासान भी जारी है। कुल मिलाकर इलाके के कारोबारियों को फिलहाल राहत की उम्मीद नहीं दिख रही है। मुखर्जी नगर के तमाम कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स बहुत पुराने हैं। इनमें सुधार के लिए सबको मिलकर, बहुत समझदारी से समाधान पर काम करना होगा। जो मौजूदा दौर में बहुत मुश्किल है।
बीजेपी-आप की सियासी खींचतान में दिल्ली पुलिस की कार्यशैली तो बहुत पहले से ही ..बहुत खराब हो चुकी है। जानकार तो यही बताते हैं..दिल्ली पुलिस ने अपना फोकस फंड कलेक्शन पर ज्यादा कर दिया है। तमाम विवादों से परे..तमाम व्यवस्था को संस्थागत रूप दे दिया गया है। पॉलिटिक्स नहीं..पैसों पर बात कीजिए..!
अब दिल्ली सेवा बिल के कानून बनने के बाद कुछ ऐसा ही दूसरे विभाग के अंदर भी देखने को मिल सकता है। नेता जो जनता के प्रति जिम्मेदार होता है..उसकी अफसर सुनेंगे नहीं। अफसर काम करेंगे नहीं तो ज्यूडिशियरी की दखल बढ़नी तय मानिए। इन सब के बीच जन अंकाक्षाओं का क्या होगा..उस लोकतांत्रिक उफान का क्या जिसने विधानसभा चुनावों के दौरान दिल्ली में नई मिसाल गढ़ दी। किसी के पास फिलहाल कोई जवाब नहीं..दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी जीत का जश्न मना रही है। दुनिया की सबसे सफल सियासी स्टार्टअप अभी सदमें में है। ऐसे में यही कहा जा सकता है..गुड लक दिल्ली..!!