एक सवाल जो हर दिल्ली वालों को पिछले करीब 8 महीने से परेशान कर रहा है। मनीष सिसोदिया के पास से न तो बहुत सारा घोटाले का पैसा निकला, न हीं गलत तरीके से बनाई गई बहुत सारी प्रॉपर्टी मिली। जैसा आमतौर पर देश भर में भ्रष्टाचार के मामलों में देखने को मिलता है। भ्रष्टाचारी नेताओं के पास से बहुत सारा कैश मिलता है। उनकी बहुत सारी अवैध प्रॉपर्टी के बारे में पता चलता है। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया के केस में ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला। और तो और इस मामले में न हीं कोई मनी ट्रेल मिला, न ही घूस की मांग और लेने के कोई दस्तावेजी सबूत मिले। जबकि मनीष सिसोदिया आम आदमी पार्टी में भी नंबर दो की भूमिका में रहे। अगर शराब नीति मामले में इतना बड़ा भ्रष्टाचार हुआ। इतनी बड़ी रकम इधर से उधर गई। मनीष सिसोदिया चाहते तो अपने रसूख का इस्तेमाल करके मोटा पैसा कमा सकते थे। ऐसा कोई भी ठोस प्रमाण मनीष सिसोदिया के केस में सीबीआई-ईडी पेश नहीं कर सकी है।
बुधवार को सुनवाई के दौरान कुछ इसी ओर इशारा करता हुआ सवाल सुप्रीम कोर्ट की तरफ से ईडी से पूछा गया। सर्वोच्च अदालत ने पूछा..आपके केस के अनुसार जब शराब नीति से एक पार्टी को फायदा हुआ तो फिर पार्टी इस केस में शामिल क्यों नहीं? जांच एजेंसी का आरोप है कि रिश्वत का पैसा एक राजनीतिक दल तक पहुंचा..लेकिन अब तक राजनीतिक दल को आरोपी नहीं बनाया गया। सुप्रीम कोर्ट की तरफ पूछा गया ये सवाल कहीं न कहीं आम दिल्ली वालों के जहन में उठने वाला सवाल लगता है। जब लाभ पार्टी को मिला, फैसला आबकारी विभाग के तमाम अधिकारियों की कई राउंड की बैठक में लिया गया, फैसले पर फाइनल मुहर दिल्ली के उपराज्यपाल की ओर लगाया गया, तो फिर कानूनी शिकंजे में सिर्फ सिसोदिया ही क्यों?
बुधवार से सुप्रीम कोर्ट में मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई शुरू हुई है, जो अभी आगे जारी रहने वाली है। हाई कोर्ट में जमानत याचिका खारिज होने के बाद मनीष सिसोदिया सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। मनीष सिसोदिया के केस की पैरवी जाने माने वकील और कांग्रेस नेता मनु सिंघवी कर रहे हैं। मनीष सिसोदिया ने अपनी पत्नी की सेहत का हवाला देते हुए अंतरिम जमानत की मांग की थी। जिसे खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि मनीष सिसोदिया की पत्नी की सेहत स्थिर है इसलिए नियमित जमानत पर सुनवाई होगी। कोर्ट में मनु सिंघवी ने सिसोदिया का पक्ष रखते हुए कहा कि मनीष जमानत के ट्रिपल टेस्ट पर खड़े उतरते हैं। वो सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे, गवाहों को प्रभावित नहीं करेंगे, देश छोड़कर भागने की आशंका भी नहीं है। चार्जशीट फाइल होने के बाद ऐसी संभावना नहीं रह जाती है। इतना विश्वास तो एक प्रतिष्ठित जनप्रतिनिधि पर किया जा सकता है।
मनीष सिसोदिया का पक्ष मजबूती रखते हुए मनु सिंघवी ने कहा शराब नीति मामले में ये सिर्फ उनका फैसला नहीं है। ये सामूहिक फैसला है। कम से कम 7 बार जीओएम की मीटिंग हुई। दो सुझावों के बाद दिल्ली के उप राज्यपाल ने फैसले को मंजूरी दी। किसी भी पॉलिसी मेकिंग में सरकार इनवॉल्व होती है। सरकार के साथ बड़े अधिकारियों, पूरे प्रशासनिक अमले का रोल होता है। मंत्री के साथ कई लेवल पर और भी कई लोग इन्वॉल्व होते है तब जाकर कोई नीति पास होती है। और खास बात ये भी है कि नई शराब नीति का राजस्व पर बहुत पॉजिटिव असर देखने को मिला, रेवेन्यू में बढ़ावा हुआ..ऐसे में एक व्यक्ति को आरोपी बना देना, उसकी जमानत याचिका बार बार खारिज होना, सुप्रीम कोर्ट तक इस मामले का पहुंचना..साफ संकेत देता है कि मनीष सिसोदिया को पब्लिक लाइफ में होने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।