पराली पर बने सख्त कानून रद्द होने के आसार
किसानों और केंद्र सरकार के बीच कई राउंड बैठक के बाद वुधवार को चार में से जिन दो मुद्दों पर सहमति होने की बात कही जा रही है उसमें एक पराली जलाने से जुड़ा कानून भी है। जिसे सरकार पराली से होने वाले वायु प्रदूषण की समस्या को नियंत्रित करने के लिए लेकर आयी थी। दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसान लगातार इन कानूनों को रद्द करने की मांग करते रहे हैं। अब जो ताजा हालात बन रहे हैं वे इसी ओर इशारा कर रहे है कि सरकार इन कानूनों के सख्त प्रावधानों को खत्म कर सकती है। मतलब पराली जलाने पर सख्ती नहीं होगी।
ऐसे में बड़ा सवाल यही कि शुद्ध हवा और पानी के नाम पर लगातार दिल्ली वालों के साथ छलावा क्यों किया जा रहा है?
सबसे पहले बात शुद्ध हवा की, दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या बड़ी है। इसके कई कारण गिनाए जाते रहे हैं। जिनमें सबसे मुख्य रही है पराली। विशेषकर सितंबर, अक्टूबर और नवंबर, लगभग इन तीन महीनों के दौरान ये बड़ी मुसीबत बन कर सामने आती है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में किसानों के द्वारा जलाई गई पराली का धुंआ दिल्ली की हवा को जहरीला बना देता है। सांस लेने में काफी कठिनाई होती है। ऐसा नहीं कि ये किसी एक साल की बात है। कई सालों से ये सिलसिला लगातार जारी है। हर बार जब धुंआ दिल्ली में पहुंचने लगता है तो सरकारें शोर मचाना शुरू कर देती है। केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच सियासी कुश्ती शुरू हो जाती है। जमकर बयानबाजी होने लगती है। दोनों ही एक दूसरे को लापरवाह बताते नहीं थकते। और फिर जैसे ही इसका असर घटने लगता है सारा सियासी शोर शांत होने लगता है।
लेकिन इस बार तो हद ही हो गई। पंजाब के किसान दिल्ली की सीमाओं पर आकर बता रहे कि पराली को लेकर जिस तरह की दंडात्मक कार्रवाई उनके उपर होती है उसे रोका जाए। पराली जलाने को लेकर को जो सख्त कानून सरकार ने बनाए हैं उसे खत्म किया जाए। हैरानी होती है कि जिस पराली के धुएं से दिल्ली का दम घुटता रहा है। उस पर बात करने की कोई भी पहल न तो दिल्ली सरकार की तरफ से की जा रही और न ही केंद्रीय पर्यावरण मंत्री इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया देते नजर आ रहे।
यही हालात शुद्ध पीने के पानी को लेकर भी देखने को मिल रहे हैं। आए दिन अमोनिया का बढ़ता जलस्तर दिल्ली वालों की मुसीबत बढ़ाता दिख रहा है। पीने के पानी की सप्लाई रोक दी जाती है। जैसे पराली के लिए पंजाब को जिम्मेदार बताती रही है दिल्ली सरकार ठीक वैसे ही अमोनिया के बढ़े स्तर के लिए हरियाणा को जिम्मेदार ठहरा रही है। दिल्ली तक पहुंचने वाला यमुना का पानी हरियाणा में फैक्टरियों और किसानों के द्वारा डाले गए केमिकल व खाद की वजह से जहरीला हो जाता है।
जबकि दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने खुलासा कर रहे हैं कि इसके लिए दिल्ली सरकार ही जिम्मेदार है। कुल 22 में से 14 नालों का गंदा पानी बिना साफ किए यमुना में मिल रहा है। मतलब 60 से 70 प्रतिशत गंदा पानी सीधा का सीधा यमुना नदी में जा रहा है। दिल्ली सरकार लंबे समय से 14 नए सीवर ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की बात कहती रही है, जिसमें से एक भी नहीं बन सका। जाहिर है गंदा पानी यमुना में मिलेगा तो दिल्ली वालों को पीने का साफ पानी कैसे मिल पाएगा? हरियाणा की लापरवाही एक वजह हो सकती है, लेकिन दिल्ली सरकार चाहे तो हालात सुधर सकते हैं। दिल्ली वालों को पीने का शुद्ध पानी बिना किसी बाधा के हर समय मिल सकता है।
ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि मसला चाहे सांस लेने के लिए शुद्ध हवा का हो या फिर पीने के साफ पानी का, मौजूदा हालात तो यही बताते हैं कि ठोस पहल की जगह दिल्ली के साथ सियासी छल जारी है।