कांग्रेस का स्थापना दिवस कांग्रेस का कम बल्कि बीजेपी वाले राहुल गांधी के नाम ज्यादा रहा। देश की सबसे पुरानी पार्टी के लोग तो पार्टी के स्थापना दिवस मनाने में जुटे रहे। लेकिन देश की सबसे बड़ी पार्टी के दिन का सबसे बड़ा एजेंडा रहा राहुल की ननिहाल यात्रा। देश को भी इसी में उलझाए रखा। हैरानी हुई कांग्रेस की 135 साल की सियासत चर्चा के लिए जगह तक नहीं बना पाई। कहीं कोई सार्थक बहस आकार लेती दिखी ही नहीं। क्योंकि अभी राष्ट्रीय मीडिया को भी बीजेपी वाले राहुल ही पसंद आते हैं। दिन का राष्ट्रीय मुद्दा यही रहा कि राहुल आखिर ननिहाल गए क्यों?
समझ तो यही आया कि कांग्रेस में क्या बदला, कितना बदला इससे देश को कोई मतलब नहीं, बहस बस होती रही कि राहुल क्यों नहीं बदल रहे?
किसान किसी की नहीं सुन रहे ये देश जान रहा है, उनका सुनना भी सिर्फ सरकार को है, देश मान रहा है, फिर भी राहुल ननिहाल क्यों गए?
राहुल तो बकायदा पंजाब जाकर किसानों से मिल आए थे, दुख-दर्द साझा कर आए थे। अगर सरकार की तरफ से जब ये किसान पचास दिनों से पंजाब में बैठे थे तब कोई उन्हें वहीं सुन आया होता तो, शायद आज हालात ही ऐसे न होते। सवाल ये नहीं बन पाए, बात बस यही कि आज राहुल पूरब जाने की बजाए पश्चिम क्यों चले गए?
कांग्रेस और राहुल के साथ पर सवाल बड़े हैं, लेकिन पूछना तो ये भी चाहिए कि बीजेपी और राहुल का साथ कम क्यों नहीं। एक ओर कहते नहीं थकते कि कांग्रेस पार्टी को गांधी परिवार की गिरफ्त से बाहर निकलना होगा, खुद ही आवाज उठाते है कि कांग्रेस छोड़े गांधी परिवार का साथ, लेकिन कांग्रेस के स्थापना दिवस पर राहुल ननिहाल क्या चले गए कोहराम मचा दिया। कांगेस को लगे न लगे राहुल के बिना बीजेपी का मन तो नहीं लगता, इतना तो तय लगता है।
राहुल की नानी से बीजेपी को क्या मतलब, उनकी सेहत की फिक्र कोई करे या न करे, राहुल को तो करनी ही है, इतनी सी बात समझी ही क्यों जाए। स्क्रीन सुलगाने के लिए, सियासत चमकाने के लिए बीजेपी वाले राहुल ही बहुत हैं।