शेखर..काश आप अमेरिका न गए होते !

9/11..अमेरिका में हुए दुनिया के सबसे बड़े आतंकी हमले की बरसी का दिन। साल बदल जाते हैं, लेकिन दिन नहीं बदलता..हर साल सितंबर का महीना आता है और फिर 9 वां दिन आ ही जाता है..और याद दिला जाता है खौफनाक मंजर..आतंक की वो खौफनाक वारदात..जिसने न सिर्फ दुनिया के सबसे ताकतवार मुल्क को दहला दिया..बल्कि उस दहशत के साए में आज भी सारी दुनिया है। इस हमले में करीब तीन हजार लोग मारे गए। जिनमें दो हवाई जहाज में शामिल सवारियों के साथ ट्विन टावर में उस वक्त काम कर रहे कुल 57 देशों के नागरिक भी शामिल थे। इन्हीं में से एक थे..शेखर मसकरा।

मुखर्जी नगर दाता दरबार गुरुद्वारे के ठीक सामने परमानंद कॉलोनी का पहला मकान जिसमें रहते थे शेखर। गोरे चिट्टे, थुलथुला भारी बदन। हाइट होगी 5 फुट 7..8 इंच के करीब। डीपीएस मथुरा रोड से स्कूलिंग कर रामजस कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरी कर रहे थे। चेहरे पर काले फ्रेम का चश्मा लगाए किसी बड़े सेठ के बड़े लड़के से लगते थे, बाद में पता चला कि वैसे थे भी वही..लेकिन अंदाज एकदम देसी। सामने के ढ़ाबे पर खुद ही सब्जी फ्राई करना, रोटी में खुद ही बटर लगाना। खाने को अच्छे से खाने में बड़ी दिलचस्पी रखते थे। कही भी जाने से, किसी के साथ भी घुलने मिलने में कोई परहेज नहीं। कही भी जाना हो कैसे भी जाना हो..बस के पीछे दौड़ लगा देना। फिर तेजी से हांफते हांफते अंदर भागकर सीट लपक लेना। जरा सी धक्का मुक्की हुई नहीं की उससे लड़ भिड़ जाना..कुल मिलाकर कहा जाए तो जैसे वे दिखते थे उसके ठीक विपरीत व्यक्तित्व था उनका..एकदम बिंदास टाइप।

एक चीज जो सबसे खास थी उनमें वो थी..सपनों का पूरे जी जान से पीछा करना। जो चाहिए उसे पाने के लिए तन मन धन सब झोंक देना। आज देखता हूं तो लगता है कि वैसे तो हर छोटी छोटी ख्वाहिशों के पीछे भी वो उसी तरह भागा करते थे। मिठाई खानी तो सदर बाजार के पास की किसी दुकान पर लेकर पहुंच जाते। बीयर पीनी है तो पीनी है..दिल्ली में नहीं मिल रही तो यूपी..लोनी से भाग कर ले आते। लेकिन यही जुनून उनके अंदर कैरियर को लेकर भी रहा। इंडियन फॉरेस्ट सर्विस में टॉप कर गए। लेकिन ज्वाइन नहीं किया। पूछने पर गोल मोल सी बात बता देते। बाद में आईएमटी गाजियाबाद से एमसीए किया। प्रतिष्ठित टीसीएस में कैंपस सलेक्शन हो गया। लेकिन नहीं ज्वाइन किया। वही गोल मोल सा जवाब। एक दिन नेहरू प्लेस की एक कंपनी में इंटरव्यू देने गए। ऑफिस अच्छा था लेकिन बहुत बड़ा नहीं। लेकिन वहां ज्वाइन कर के शेखर बहुत खुश लगे। पार्टी हुई..तब पता चला कि अमेरिका जाकर नौकरी करने का सपना उन्हें परेशान कर रहा है। उन्हें पता चला था कि यह कंपनी अपने कर्मचारियों को समय समय पर बाहर विदेश भेजती रहती है। इसके बाद शेखर से मिलना जुलना कम हो गया। एक दिन अचानक देर शाम पहुंच गए। बोले कल न्यूजीलैंड जाना है। पूछने पर समझाया कि न्यूजीलैंड से अमेरिका जाना आसान है। इसीलिए ये निर्णय लेना पड़ा। रात में ही उनका मन कर गया कि जेएनयू में किसी पुराने मित्र से मिलना है। फिर क्या था एक पुरानी से बाईक पर रात बारह बजे तक बड़ी मुश्किल से जेएनयू पहुंचे। वहीं देर रात पार्टी चली। लौटते वक्त आईटीओ ब्रिज के पास दिल्ली पुलिस ने पकड़ा। दिल्ली पुलिस से उनका बड़ा प्यारा नाता देखने को मिलता। इतने भले..सभ्य से दिखने वाले डिफॉल्टर को लेकर जाट पुलिस कांस्टेबल कंफ्यूज हो जाते..कि कैसे ट्रीट करें। इसका फायदा शेखर बखूबी उठाते। यकीन मानिए उस रात शेखर को दिल्ली पुलिस ने गाना गाने को कहा..बड़ी मुश्किल से उन्होंने गाना गाया..फिर जाने दिया।

खैर उसके बाद वे न्यूजीलैंड चले गए। कुछ ही समय के बाद वे वहां से अमेरिका भी पहुंच ही गए। ट्विन टावर में..106 वें फ्लोर पर..दुनिया की ऊंची और सबसे बेहतरीन लोकेशन पर ऑफिस। सपने तो शेखर ने पूरे कर लिए। पसंद के सारे रंग भी भर लिए। लेकिन आतंक के ग्रहण ने इतनी मेहनत..इतनी जद्दोजहद से पूरे किए गए सपने को काला कर दिया। गुस्सा बहुत आता है आतंक के आकाओं पर और दिल क्षोभ से भर जाता है…काश कि शेखर अमेरिका न गए होते..!!