भविष्य की चिंता – चिता पर वर्तमान

दिल्ली का दर्द

किसान आंदोलन का महीना पूरा हो ही गया। देश की राजधानी की सीमाएं बाधित हैं। आप दिल्ली से बाहर तो आसानी से जा सकते हैं, लेकिन वापस आने के रास्ते बड़ी मुश्किलों से भरे हैं। साइड की सड़कों से ट्रैफिक को डायवर्ट कर के आने दिया जा रहा है। विशेषकर नोएडा, गाजियाबाद की तरफ से वापस आने में काफी दिक्कत है। आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितनी बड़ी संख्या में लोग इसकी चपेट में हैं। एनसीआर की ज्यादातर निजी कंपनियां नोएडा में हैं। निजी कंपनियों की नौकरी का मतलब है टाइम से ज्यादा काम और मेहनत से कम पैसा। बावजूद इसके लोग रोजी-रोटी के चक्कर में इस कुचक्र में फंसे हैं, काम करते हैं। यकीन मानिए इनके शोषण को सुनने वाली सारी की सारी सरकारी मशीनरी कुंद पड़ी है। किसी को कोई समझ नहीं, कहीं कोई सुनवाई नहीं। सब चलता ही रहता है देश में कि अचानक कुछ ऐसा होने लगता है जो इन्हें अधिक बेचैन कर देता हैं। पिछले साल शाहीन बाग चला, इस साल किसानों का आंदोलन चल रहा है।

देश में बड़े-बड़े परिवर्तन की इच्छा में सालों बाद बनी फुल मेजोरिटी वाली सरकार नए-नए कानून बना रही है। पिछले साल देश के मुसलमानों को खतरा महसूस हुआ, इस साल देश के किसानों को खतरा महसूस हो रहा है। लोकतंत्र की व्यवस्था तो यही कहती है कि सबकी बात सुनी जानी चाहिए। सबका हित संरक्षित होना ही चाहिए। सरकार बात सुनने में समय लगाती है। जान दिल्ली वालों की मुसीबत में फंस जाती है। दिल्ली एनसीआर मिलाकर कुल तीन चार करोड़ की आबादी कम तो नहीं हुई। और तो और रोजाना लाखों की संख्या में अलग-अलग काम के सिलसिले में लोगों का दिल्ली आना-जाना लगा ही रहता है। जरा सोचिए कितनी बड़ी संख्या में लोग इस तरह के अव्यवस्थित आंदोलनों से प्रभावित होते हैं। इतने-इतने दिनों तक बंधक बना दी जा रही देश की राजधानी। लगता ही नहीं किसी को इस बात की फिक्र है।

दिल्ली वालों की परेशानी तो एक तरफ, दूसरी तरफ इससे होने वाले आर्थिक नुकसान का अंदाजा लगाइए। देश की राजधानी है, करोड़ों का कारोबार चलता है यहां से। इसकी सीमाएं बाधित होने से रोज के हिसाब से करोड़ों रुपए का नुकसान हो जाता है। भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल यानी एसोचैम के अनुसार इस किसान आंदोलन की वजह से देश को 3500 करोड़ रुपए का नुकसान रोज हो रहा है। इसका दायरा पंजाब और हरियाणा शामिल होने से ज्यादा बड़ा हो जाता है। कोरोना ने देश की अर्थव्यवस्था की कमर पहले ही तोड़ रखी है। ऐसे मुश्किल के वक्त जब देश कोरोना के दंश से उबरने की कोशिश कर रहा है। किसान आंदोलन ने परिस्थितियों को बेहद जटिल बना दिया है।

आवश्यकता है कि सरकार और किसान जल्द से जल्द इस गतिरोध को खत्म करें। इतनी बड़ी आबादी का शोषण बंद करें। मेट्रो की जिंदगी वैसे ही बहुत जटिल और बेहद अस्थिर होती है, इसे और दूभर न बनाएं। और तो और देश की आर्थिक सेहत और न बिगड़ने दें। करोड़ों की संख्या में लोग कोरोना संकट की वजह से बेरोजगार हो गए हैं, लोगों के काम-धंधे चौपट हो गए हैं। सब के सब बड़ी उम्मीद लगाए अर्थव्यवस्था के रफ्तार पकड़ने का इंतजार कर रहे हैं। ताकि फिर से जीवन पटरी पर लौट सके। बात बहुत वर्तमान के संकट की है। भविष्य की लड़ाई वर्तमान बिगाड़ रही है, चिंता इसकी भी जरूर करें।