स्वास्थ्य संकट के बीच सैलरी का सियासी संकट !

बस बड़ी बड़ी बातें..कोरोना संकट के नाम पर ये काम..वो काम। काम गिनाते नहीं थक रही हैं सरकारें। किसी भी दल की सरकार हो, कही की भी हो। आज की तारीख में हर किसी के पास एक लंबी लिस्ट है सरोकारों की, जो उन्होंने इस कोरोना काल में जनता का ध्यान आकर्षित करने के लिए तैयार कर रखी है। ऐसा नहीं है कि कोई काम नहीं हो रहा या सरकारें जनता के हित में काम नहीं कर रही हैं। लेकिन जब कुछ ऐसा बुरा देखने को मिलता है जो सिर्फ सरकारों की सियासी खींचतान की वजह से घटित हो रहा है। और जिसकी चपेट में हजारों लोग आ रहे हैं, तो ऐसा लगने लगता है कि यह सोची समझी सियासी रणनीति का हिस्सा है। जिसकी चपेट में पीड़ित कर्मचारी और उनके परिवार आ रहे हैं। इस संकट की घड़ी में उनके साथ अच्छा करने की बजाए बुरा किया जा रहा है।

जानकार हैरानी होगी कि इस संकट की घड़ी में भी दिल्ली यूनिवर्सिटी के 12 कॉलेज जो दिल्ली सरकार के द्वारा संचालित हैं बुरे आर्थिक चुनौतियों का सामना करने के लिए बाध्य हैं। उन कॉलेजों के कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल पा रहा है। आसानी से समझा जा सकता है उनकी और उनके परिवार पीड़ा। कॉलेजों के फंड को रोक दिया गया है। जिसकी वजह से न सिर्फ टीचर्स बल्कि गरीब छात्र भी प्रभावित हो रहे हैं। अपने इन्ही मुद्दों को लेकर DUTA यानी दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन ने दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अनिल चौधरी से मुलाकात की। अपनी परेशानी साझा की। साथ ही बताया कि किस तरह इन कॉलेजों की गॉवर्निंग बॉडी केन्द्र की बीजेपी और राज्य की आम आदमी पार्टी के बीच सियासी अखाड़ा बनी हुई है। हर कोई अपना बंदा फिट करना चाहता है। इसी खींचतान की वजह से फंड रोकने से भी बाज नहीं आ रही सत्ता। जिसकी वजह से कॉलेजों पर आर्थिक संकट गहराता ही जा रहा है। डूटा के इस डेलीगेशन में एक्जीक्यूटिव कॉउन्सिल के सदस्य राजेश झा, वाइस प्रेसिडेंट आलोक पांडे, ज्वाइंट सेक्रेटरी प्रेमचंद जैसे लोग शामिल रहे।

गौरतलब है कि कमोबेश इसी तरह के सैलरी के सियासी संकट का सामना दिल्ली एमसीडी के कर्मचारी लंबे समय से करते आ रहे हैं। बीजेपी शासित एमसीडी और आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार की खींचतान खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही। जिसका खामियाजा उठाने को मजबूर हैं पीड़ित कर्मचारीगण। जिसमें सफाई कर्मचारियों के साथ साथ एमसीडी के स्कूलों के टीचर्स और अस्पतालों के डॉक्टर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मी शामिल हैं।

स्वास्थ्य संकट के बीच सत्ताधारी सियासी पार्टियों की सियासत साधने की कवायद हैरान करती है।