सुप्रीम कोर्ट के रेलवे ट्रैक के पास से झुग्गियों के हटाने के फैसले ने दिल्ली की सियासत में उबाल ला दिया है। हर सियासी पार्टी इन झुग्गी वालों के साथ खड़ी दिखना चाहती है। और ऐसा हो भी क्यों नहीं आखिर करीब पचास हजार झुग्गियों के हिसाब से देखा जाए तो बहुत ज्यादा वोट बैंक की ताकत वाला है यह मुद्दा। कोई भी पार्टी चांस नहीं लेना चाहेगी। भले ही फैसला सुप्रीम कोर्ट का हो, लेकिन जो भी पार्टी विलेन बनती दिखी या दिखाई गई उसे जबरदस्त चुनावी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
यही वजह है कि पार्टियों में हितैषी बनने की होड़ सी लगी है। कोई रैली लेकर मुख्यमंत्री आवास का घेराव करने निकल पड़ता है। तो सत्ताधारी पार्टी के मुखिया विधान सभा के विशेष सत्र में भावनात्मक अपील करते देखे जाते हैं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि उनके रहते झुग्गी वासियों को बेघर नहीं रहना पड़ेगा। पार्टी की तरफ से इस सारे मसले के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, जो कोरोना काल में भी लोगों को बेघर करने से बाज नहीं आ रही।
वही बीजेपी इस मामले के लिए केजरीवाल सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है। न तो पार्टी की तरफ से ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ पर काम करने दिया जा रहा है और न ही पार्टी अपने ‘झुग्गी के बदले पक्का मकान’ देने के वादा को पूरा करने की दिशा में कुछ काम कर रही है।
इन सब के बीच में मास्टर स्ट्रोक खेला है कांग्रेस ने। सबसे पहले तो पार्टी बड़ी पहल करते हुए सुप्रीम कोर्ट से स्टे लेकर आयी। फिर सियासी दांव खेलते हुए देश को यह बताने में सफल रही कि कांग्रेस की सरकार ने शहरी गरीबों के लिए साठ हजार पक्के मकान बनवा दिए थे। जिसका आवंटन तक केजरीवाल सरकार पिछले छह सालों में नही करवा सकी। केजरीवाल सरकार की बड़ी नाकामी को उजागर करने में कांग्रेस सफल रही।
साथ ही कांग्रेस ने आरोप लगाया कि केंद्र की मोदी सरकार ने दिल्ली के गरीब झुग्गी वालों की तरफ कभी ध्यान ही नहीं दिया। चुनावी घोषणा पत्र में दिए गए ‘जहां झुग्गी वहां मकान’ के नारे खोखला साबित हुए। और अब बीजेपी झुग्गी वालों को मोहरा बना कर दिल्ली में गंदी सियासत कर रही है। एक तरफ तो पार्टी उनकी हितैषी बनती है तो वहीं दूसरी तरफ किसी न किसी बहाने दिल्ली में कई जगह झुग्गियां उजाड़ी जा रही हैं।
संकेत तो यही मिल रहे हैं कि झुग्गी पर जारी सियासत दिल्ली में अभी थमने वाली नहीं है। लेकिन कोरोना काल में जब सब लोगों से घरों में रहने की अपील की जा रही है, वैसे समय में इतनी बड़ी तादाद में लोगों के घरों को ही तोड़ देना कहां की समझदारी है। सालों से बसी इन झुग्गियों को कुछ और महीने तो रहने दिया ही जा सकता है। कहीं ऐसा न हो कि इसकी वजह से कोरोना बेकाबू हो जाए, और फिर केंद्र और राज्य सरकार के लिए जवाब देना मुश्किल हो जाए।