अभी अभी की बात है दिल्ली सरकार लोगों के घर तक राशन पहुंचाने के लिए संघर्षरत दिख रही थी। केंद्र सरकार से सीधी टक्कर ले रही थी। ऐसा लगने लगा था कि अगर देश में गरीबों की सबसे बड़ी हितैषी कोई है तो वो सिर्फ और सिर्फ आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार है। लेकिन अगस्त में एकदम नई कहानी सामने आ रही है। जो बता रही है कि महीना लगने को है लेकिन गरीबों के हिस्से का अनाज राशन की दुकानों तक नहीं पहुंच पा रहा है। जिसके लिए जिम्मेदार दिल्ली सरकार नजर आ रही है। मतलब लोगों के घर तक अनाज पहुंचाने का दावा करने वाली दिल्ली सरकार केंद्र के गोदामों से अनाज राशन की तकरीबन दो हजार दुकानों तक ही पहुंचाने में फेल होती दिख रही है। सोचिए 72 लाख राशन कार्ड धारकों के घर तक राशन पहुंचाने में क्या हालत होती। समय पर राशन नहीं मिलने से गरीब तो परेशान हो ही रहे हैं दुकान वाले भी परेशान हैं। रोज बड़ी संख्या में लोग राशन के बारे में जानकारी लेने आते हैं और निराश होकर लौट जाते हैं।
ऐसी ही एक राशन कार्डधारी रिन्दू देवी बताती हैं कि आमतौर पर दो से दस तारीख के बीच राशन मिल जाया करता था। लेकिन इस बार कुछ ज्यादा ही देर हो रही है। जिससे हमें काफी परेशानी हो रही है। बाहर से बहुत महंगा राशन खरीदना पड़ रहा है। त्योहारों की वजह से दिक्कत ज्यादा हुई।
मामला गरीबों से जुड़ा हो तो सियासत अपने आप जगह बना लेती है। एक तरफ जहां आम आदमी पार्टी के लोग इस समस्या से जुड़े सवालों से बचते नजर आए, तो वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के लोग इस समस्या के लिए सीधे तौर पर आम आदमी पार्टी को जिम्मेदार ठहरा रहे है। दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी है वो किसी भी तरह से राशन की दुकानों तक अनाज पहुंचाने का काम समय पर पूरा करे। ट्रांसपोर्टर्स की कोई परेशानी है तो और लोगों को टेंडर जारी करे। ज्यादा गाड़ियां उपलब्ध करवाए। लेकिन दिल्ली में किसी गरीब को भूखे पेट सोने के लिए मजबूर ना करे।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के मुखर्जी नगर मंडल के सह संयोजक सरदार अमरीक सिंह का कहना है कि जब से केंद्र सरकार की तरफ से फ्री राशन योजना शुरू की गई है तब से ही दिल्ली सरकार रोड़े अटकाने का काम कर रही है। गरीबों को परेशान कर रही है। लोग बार बार राशन की दुकानों के चक्कर लगाने के लिए बाध्य हैं। दिल्ली सरकार नहीं चाहती है कि गरीबों को केंद्र सरकार की मुफ्त राशन और वन नेशन वन कार्ड जैसी योजनाओं का लाभ मिल सके।
पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र कुमार का मानना है कि इस समस्या के पीछे वैसे तो ट्रांसपोर्टरों की मनमानी या मजबूरी ही नजर आती है, लेकिन पार्टियों के सियासी नफा नुकसान वाले गणित से इंकार नहीं किया जा सकता। ट्रांसपोर्टरों की समस्या का समाधान देने में दिल्ली सरकार असमर्थ नजर आती है। जब से केंद्र सरकार की तरफ से गरीबों को मुफ्त राशन वाली दो योजनाएं शुरू की गई हैं, गरीबों को डबल राशन मिल रहा है। जाहिर है ज्यादा राशन दुकानों तक पहुंचाना पड़ रहा है। ट्रांसपोर्टरों पर लोड ज्यादा पड़ रहा है। जिसकी वजह से समय पर राशन की डिलीवरी नहीं हो पा रही है। आमतौर पर राशन महीना शुरू होने के पहले ही दुकानों तक पहुंच जाया करता था। लेकिन इस महीने तो हद ही हो गई है। महीना खत्म होने को है लेकिन राशन का कुछ पता नहीं। ऐसा दिल्ली की तकरीबन सभी राशन की दुकानों के साथ हो रहा है। इस समस्या के लिए सीधे तौर पर दिल्ली सरकार की दिल्ली स्टेट सिविल सप्लाई कॉरपोरेशन जिम्मेदार है।
कुल मिलाकर कहना गलत नहीं होगा कि गरीबों के मुफ्त राशन पर सियासत का ग्रहण लग गया है। कोरोना संकट अस्त होने से पहले इस सियासी ग्रहण के खत्म होने की संभावना भी कम ही है।