अफगानिस्तान समस्या का सामाजिक विश्लेषण

मध्यम वर्ग का महत्व समझिए

अफगानिस्तान की अस्थिरता की सबसे बड़ी वजह है वहां की सामाजिक संरचना में मध्यम वर्ग की बेहद सीमित और कमजोर उपस्थिति। वहां या तो उपर वाला बहुत धनी तबका है या फिर नीचे मेहनत मजदूरी करने वाले लोग। बीच में मध्यम वर्ग की मौजूदगी नगण्य सी है। धनी लोगों के आचार व्यवहार में व्यवसायिक हित हावी रहते हैं। उनके परिवार के ज्यादातर लोग विदेशों में रहते हैं। देश में क्या चल रहा है, क्या नहीं, इन बातों से ये लोग ज्यादा मतलब नहीं रखते। कहना गलत नहीं होगा देशहित से ज्यादा उनकी नजर निजी और व्यावसायिक लाभ पर रहती है।

रही बात निचले तबके की, वो पेट की भूख में ही उलझा रहता है। उसके पास कहां समय है कि देश के बारे में सोचे। रोज मेहनत करता है तभी रोज पेट भर पाता है। ज्यादा परेशान होता है तो किसी न किसी वारलॉर्ड्स के पास बंदूक चलाने वाली नौकरी पकड़ लेता है।

इस तरह दो बिल्कुल अलग से रहने वाली धूरी में बंटा है अफगानिस्तान का पूरा समाज। शायद यही वजह है कि कभी रूस तो कभी अमेरिका जैसी बाहरी शक्तियां यहां अपनी मनमानी कर ले जाती हैं। तालिबान जैसी बर्बर ताकतें अपना वर्चस्व बना ले जाती हैं। सत्ता और संसाधनों की खुली लूट चलती ही रहती है।

अफगानिस्तान में पिछले तकरीबन दस सालों से समाज सेवा के काम से जुड़े प्रशांत पांडा वहां के समाज में मध्यम वर्ग के अभाव को इस अस्थिरता की बड़ी वजह मानते हैं। जाहिर सी बात है राजनीतिक अस्थिरता और लगातार जारी गृहयुद्ध सी स्थिति ने अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को कभी भी मजबूत बनने ही नहीं दिया। यही वजह रही कि वहां मध्यम वर्ग का वैसा विस्तार नहीं हो पाया जैसा हम बाकी के देशों में देखते हैं।

कहना गलत नहीं होगा मुखर मध्यम वर्ग का अभाव अफगानिस्तान के लिए मुसीबत बन गया है। एक ऐसा वर्ग जो देश में जो कुछ भी गलत चल रहा है उसका मुखरता से विरोध करे। देशहित में काम करने के लिए देश के नेताओं, नेतृत्व करने वालों और व्यापारी वर्ग को बाध्य कर सके। जैसा कि हम अपने देश में देखते हैं। शिकायत चाहे कितनी भी हो इस सुपर हाइपर मध्यम वर्ग से, लेकिन मान कर चलिए यही देश और लोकतंत्र की ताकत है।