आखिरकार देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या एक करोड़ के पार पहुंच ही गई। शनिवार की सुबह यह अशुभ संदेश लेकर आई। हमने दुनिया में दूसरा स्थान हासिल कर ही लिया। कोरोना से मौत मामले में भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर है। पहले नंबर पर अमेरिका है। कोरोना को लेकर अब एक बात तो समझ में सबके आ गई है कि इसका संबंध लोगों की इम्यूनिटी और रहन-सहन से बहुत ज्यादा है। अमेरिका या यूरोप जैसे विकसित देशों के लोगों का रहन-सहन ज्यादा साफ-सफाई वाला रहा है। खान-पान में मसाले भी न के बराबर इस्तेमाल किए जाते हैं। मोटे पर कहा जा रहा है कि इसी वजह से अमेरिका या यूरोप में अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था होने के बावजूद कोरोना अधिक तेजी से, और घातक तरीके से फैला।
लेकिन भारत में इसकी रफ्तार के इतने तेज होने की वजह केवल हमारी लापरवाही ही लगती है। हमने इसकी रफ्तार तेज करने में अपनी तरफ से कोई कसर नही छोड़ी। इसे समझने के लिए जरा सा बस लॉकडाउन के बाद के भारत की तस्वीर जहन में लाने भर की देरी है। एक होड़ सी लगी दिखी, ऐसा लगा कि सभी को मानों सारा काम अभी निपटा लेना है। लगातार चुनाव होते रहे। चुनावों में सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ती रही। कोरोना का रोना चलता रहा लेकिन कोई भी राजनीतिक दल पीछे हटने को तैयार नहीं दिखा। सभी अपनी सियासी हैसियत दिखाने के चक्कर में कोरोना को नजरअंदाज करते दिखे। तकरीबन हर दल के कई सारे नेता इस चक्कर में कोरोना की चपेट में आए। कार्यकर्ताओं की तो गिनती ही नहीं।
ऐसे ही हालात धरना-प्रदर्शनों और हड़तालों को लेकर रही। क्या क्या हड़ताल नहीं देखे देश ने इस बीच। जहां जो सियासी दल सत्ता में है बस वहीं वो दल कोरोना को लेकर संयम बरतता दिखा, वही दल दूसरी जगह विपक्ष की भूमिका में है तो वो कोरोना के वजूद को ही मानने को तैयार नहीं दिखता। जैसे दिल्ली में केंद्र की सत्ता पर बीजेपी है तो राष्ट्रीय स्तर के विवादित मुद्दों पर कोरोना का भय केवल बीजेपी ने देखा और दिखाया। कांग्रेस या आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए कोरोना दिल्ली में गुम सा हो गया। जमकर धरना प्रदर्शन चलते ही रहे। और दिल्ली की सत्ता पर आम आदमी पार्टी काबिज है तो उसके खिलाफ यदि किसी मुद्दे पर सियासी बढ़त हासिल करनी है तो बीजेपी के लिए कोरोना खत्म। ये सिलसिला थम ही नहीं रहा।
कोरोना एक करोड़ के पार पहुंच गया है। लेकिन अभी भी अगर किसी ने किसान आंदोलन के बारे में कुछ कह दिया तो अन्नदाता का अपमान मान लिया जाता है। पंजाब से बड़ी संख्या में किसान जब दिल्ली में घुसने को आमदा थे। उस वक्त दिल्ली में कोरोना का तीसरा सबसे घातक चरण चल रहा था। रोजाना तकरीबन सौ लोगों की मौत हो रही थी। बड़ी मुश्किल से किसानों को दिल्ली की सीमाओं पर ही रोक कर कोरोना की रफ्तार पर काबू पाया जा सका। लेकिन इतने बड़े खतरे के बावजूद प्रदर्शन और हड़ताल जमकर जारी है। कृषि कानून को लेकर सियासी भूचाल थमने का नाम नहीं ले रहा।
केंद्र सरकार ने कृषि कानून पास करने की जल्दी दिखाई और अब किसान इसे खत्म करने की जल्दी में जुटे हैं। जबकि दोनों ही हालातों को टाला जा सकता था।
पीछे त्योहार भी लगातार रहे। लोग बेतहाशा बाजारों की तरफ भागे। ऐसा लगा मानों पिजड़ा खुला। लोग दुकानों पर टूट पड़े। लगा दूकान ही खाली कर देनी है। दिल्ली में तो तकरीबन सारे बाजारों में भीड़ देखने लायक रही। मिलना जुलना भी खूब हुआ। मौत के आंकड़े त्योहारों के बाद एकदम से बढ़े।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कोरोना संक्रमण के आंकड़े को एक करोड़ पहुंचाने में हमलोगों ने कोई कोर कसर न छोड़ी और न अभी भी पीछने हटने को तैयार हैं। दुखद पक्ष ये है कि सियासी दल जो कि देश चलाने का दम भरते हैं वे भी संयम बरतने को तैयार नहीं। आम आदमी की बात तो उसके बाद होती है। जहान जरूरी है, काम काज भी जरूरी है, लेकिन कोरोना के खतरे को कमतर देखने वालों को ये जरूर समझना होगा कि जिस किसी को भी किसी तरह की गंभीर बीमारी है, या फिर उसे कोई अंदरुनी बीमारी रही है, उसके लिए कोरोना वायरस जानलेवा है। अभी तक के अनुभव यही बताते हैं कि जरा सी लापरवाही प्रियजनों की मौत का कारण बन जा रही है। इसलिए अपने उपर आत्मविश्वास होना बुरी बात नहीं, हो सकता है आपकी इम्यूनिटी बेहतर हो, लेकिन अपने परिवार या पास पड़ोस के लोगों की भी चिंता जरूर करें। क्या पता उनमें से किसी के लिए आपकी लापरवाही खतरनाक साबित हो।