भगवान गणेश की ये मूर्ति 5th सेन्चुरी के आखिरी दौर की बताई जा रही है। जो अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से करीब 100 किलोमीटर दूर गार्डेज़ में मिली। जिसे बाद में काबुल में पामिर सिनेमा के पास पीर रत्तन नाथ दरगाह में शिफ्ट कर दिया गया।
खास बात ये है कि इस मूर्ति को उस वक्त स्थापित करने वाले राजा का रेफेरेंस कश्मीर के राजा ‘नरेंद्रादित्य’ की ओर इशारा करता है। 60 सेंटीमीटर ऊंची, 35 सेंटीमीटर चौड़ी गणेश प्रतिमा के नीचे इसे स्थापित करने वाले के बारे में लिखा है – “इस महान और सुंदर ‘महा-विनायक’ को जाने-माने शाही किंग, प्रसिद्ध शाही खिनगाला, जो परम भट्टारक, महा-राजाधिराज थे, उन्होंने अपने शासनकाल के 8 वें वर्ष में महा-ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, त्रयोदशी, विशाखा नक्षत्र और सिंह लग्न में इसे स्थापित करवाया।“
किंग खिनगाला के बारे में कोई ठोस जानकारी तो नहीं मिलती है। मगर कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में एक बहुत पुराने राजा ‘नरेंद्रादित्य’ का जिक्र मिलता है, जो खिनखिला नाम से भी जाने जाते थे।
(अफगानिस्तान में मिली 4th सेन्चुरी की ये गणेश प्रतिमा सबसे पुरानी मानी जाती है)
भगवान गणेश अनादि माने जाते हैं। दुनिया में गणेश पूजा के प्रमाण 5000 सालों पहले से मिलते हैं। सिंधु घाटी से लेकर माया संस्कृति तक गणेश पूजा के साक्ष्य मिलते हैं। गणपति की सदियों पुरानी मूर्तियां अफगानिस्तान, ईरान, इंडोनेशिया, चीन, जापान, मैक्सिको तक मिलती हैं। गणेश अलग-अलग रूपों मे विभिन्न संस्कृतियों में पूजे जाते रहे। जापान में उन्हें ‘कांगीतेन’ कहा जाता है।
इस लिहाज से भगवान गणेश को ‘अंतरराष्ट्रीय आदि देव’ कहना गलत नहीं होगा।