इजरायल-गाज़ा के बीच की जंग की शुरुआत एक बार फिर ऐलान कर रही है..राजनीति हार गई। ये दुखद है। इतने बड़े-बड़े नाम..बड़ी अंतरराष्ट्रीय पहचान वाले इतने सारे राजनेता..जो आज इस जंग का हिस्सा बनने के लिए तने खड़े हैं। लगता ही नहीं..उन्हें राजनीति की हार का मलाल भी है। राजनेता की पहचान उसकी राजनीति से होती है। जो राजनीति से समाधान न दे सके वो राजनेता कैसा? अपनी राजनीति से जो बड़ी समस्याओं को निपटा दे वही तो बड़ा राजनेता कहलाता है।
लगता ही नहीं..इन वैश्विक पहचान वाले नेताओं को राजनीति की हार का मलाल है। वो तो जुट गए हैं युद्ध की आग और भड़काने में..युद्ध की आग के लिए बम-बारूद की समिधा जुटाने में..जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारा जा सके। जिससे ज्यादा से ज्यादा आबादी को तबाह किया जा सके।
दुनिया एक बार फिर दो खेमों में बंटती नजर आ रही है। पहले से ही रूस-यूक्रेन युद्ध का दंश झेल रही दुनिया एक बार फिर अपने बीच बारूदी बरसात होती देख रही है। सबकुछ जानते समझते कि इस आग में झुलसने से कोई नहीं बचने वाला। आज नहीं तो कल सबका नंबर आने वाले हैं। जंग का बढ़ता दायरा मानवता को संकट में डालने वाला है।
बावजूद इसके सब मिलकर सारे पैतरें आजमा रहे हैं। कुल मिलाकर सच बस इतना है..दोनों ही पक्ष के लोग एक दूसरे को मार रहे हैं। किसी भी दलील के सहारे..किसी के भी पक्ष में कुछ भी कहा जाए..सच बस इतना है..ये मानवता तो बिल्कुल नहीं।