पाकिस्तान से भारत आए हिन्दू परिवारों का दर्द छलक पड़ा..केजरीवाल जी हमारी बिल्कुल नहीं सुनते..दिल्ली में रह रहे हैं..यहां के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं..चाहे अनचाहे उनसे उम्मीद जग ही जाती है..हमें राजनीति से क्या..पाकिस्तान में मिल रही नफरत ने घरबार छोड़ कर यहां आने को मजबूर किया..दुखी लोग हैं..लेकिन हमारा दुख कम करने की दिशा में दिल्ली सरकार का सहयोग नहीं मिलना निराश करता है। इतना तो अब तय है कि हमें नागरिकता मिलनी ही है। हम जल्द ही हिन्दुस्तान के नागरिक होने ही वाले हैं। बावजूद इसके हमारी इतनी उपेक्षा क्यों कर रही है दिल्ली सरकार। चार बार हमलोग मुख्यमंत्री जी से मिले..छोटी छोटी मांग उनके सामने रखी, जैसे बिजली की सही व्यवस्था कर दें..हम बिल देने के लिए तैयार हैं। पीने की पानी की व्यवस्था हो जाए। लेकिन गंभीरता से हमें कभी लिया ही नहीं गया। अभी अभी एसडीएम की कृपा से सीमित समय के लिए बिजली का एक अस्थाई समाधान मिला है। पानी की थोड़ी बहुत व्यवस्था हमें एक अनजाने दरियादिल इंसान के दान की वजह से ही संभव हो पाई। यह सब बयां किया ताराचंद के साथ साथ सोना दास ने भी जो पाकिस्तान से आए हिन्दुओं के दल के मुखिया हैं, जो पिछले आठ-नौ सालों से दिल्ली के मजनूं का टीला स्थित बस्ती में रह रहे हैं।
तमाम मुश्किलों के बावजूद इन्हें भारत में रहना बहुत अच्छा एहसास करवाने वाला है। सबसे बड़ी चिंता बहु बेटियों को लेकर दूर हुई है। यहां हिन्दुस्तान में उन पर किसी तरह का खतरे का नहीं होना सकून देने वाला है। देर रात तक कहीं आना जाना कर लेती हैं। जबरन परदे में नहीं रहना पड़ता है। पाकिस्तान में सबसे बड़ी समस्या महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा का ही रहता था।
दूसरी राहत शिक्षा को लेकर है। पाकिस्तान में शिक्षा के नाम पर सबसे पहले कुरान पढ़ाया जाता है। उसके बिना किसी भी तरह से शिक्षित होना संभव ही नहीं। तकरीबन 40 की उम्र के ताराचंद बताते हैं कि उनके उम्र के सभी लोग अनपढ़ ही रह गए, क्योंकि परिवार वालों ने धर्म की खातिर पढ़ने से ही मना कर दिया। यहां छोटे छोटे बच्चों को पढ़ते देख उन्हें बहुत सुकून मिलता है।
इसके अलावे जो बात सबसे ज्यादा इन पाकिस्तान से आए हिन्दू परिवारों को भाता है, वो है यहां आम हिन्दुस्तानियों से मिलने वाला प्यार। आते जाते हर कोई हमारा हाल चाल पूछ जाता है। कुछ न कुछ मदद दे ही जाता है। पिछले 8 – 9 सालों से यह सिलसिला जारी है। पाकिस्तान में उन्हें कभी भी नफरत के सिवा कुछ नहीं मिला। काफिर कहा जाता रहा। हमेशा ही धर्म परिवर्तन का दबाव बना रहता। ऐनकेन प्रकारेण धर्म बदल दिया जाता रहा। ताराचंद की आवाज में आक्रोश को महसूस किया जा सकता है जब वे सवाल उठाते हैं कि कहां गए पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दू…30 प्रतिशत से अधिक थे..आज डेढ़ प्रतिशत भी नहीं रहे। अब तो सभी के मन में बस एक ही तमन्ना है किसी भी तरह से हिन्दुस्तान आ जाएं।
सरकार से ताराचंद बस यही चाहते हैं कि वे मूलत: खेती किसानी करने वाले लोग हैं। कुछ ऐसी व्यवस्था हो जाए कि हमें अपना वही काम करने को मिल जाए। हम शहरों में नहीं रहना चाहते। हमारा मन यहां उबने लगता है। बच्चे भी गांव की जिंदगी पसंद करते हैं। अब हिन्दुस्तान के लिए अन्न, फल उपजाना चाहते हैं, यही हमारी सच्ची देश सेवा होगी। कोई बंजर जमीन का टुकड़ा भी हमे देकर देखे सरकार। यकीन मानिए हम मेहनतकश लोग हैं..हमारे हाथों में जादू है..बस मौका देकर चमत्कार देखिए।