लीजिए एक रुपए में खिड़की खुली है और अब इसे दरवाजे में तब्दील करने की कवायद तेज हो चली है। स्वराज अभियान वाले योगेन्द्र यादव ने प्रशांत भूषण को साथ बैठा कर देश की मीडिया के सामने ऐलान कर ही दिया। देश भर से एक रुपया इकट्ठा किया जाएगा और भूषण साहब ने जो साहस दिखाते हुए..अपने अंहकार और अनुभव के दम पर..अथक प्रयास करके इतने सस्ते में सिस्टम के शीर्ष पर प्रहार करके दरार बनाई है उसे दरवाजा बनाने में जुटा जाएगा। मतलब तो यही निकलता है कि इस अवमानना के मसले को मिसाल बना दिया जाएगा। दरबार खुला है..जिसके भी अंदर सुप्रीम न्यायिक व्यवस्था के खिलाफ असंतोष है वो एक रुपए देकर अपनी भड़ास निकाल सकता है।
न्याय की ये छद्म लड़ाई देश के सबसे बड़े वकील और देश की सबसे बड़ी अदालत के बीच लड़ी गई। फैसला सबके सामने है। एक गलती कर के भी झुका नहीं..दूसरे में सामर्थ्य था लेकिन उसने सख्ती नहीं दिखाई, जबरन झुकाया नहीं। देश के स्थापित संस्कार तो यही कहते हैं कि सम्मान सुप्रीम सक्षम संस्था का ही बढ़ा है। लेकिन देश के आम नागरिकों का क्या..जिनकी उम्मीदें न्याय के श्रेष्ठ मंदिर में पहुंच कर आयाम और आराम पाती हैं। किसी भी फैसले पर बहस की गुंजाइश कभी खत्म नहीं होती..विशेष कर तब जब तैयारी के साथ तर्क रखने वाले पर बहुत कुछ निर्भर करता है। लेकिन आस्था के स्थान को मलीन करना किसी भी लिहाज से सही नहीं ठहराया जा सकता।
मेरे अपने कैरियर में दो बार न्यायाधीशों ने अपनी निजी समस्या के लिए संपर्क किया। एक बार किसी राज्य के हाईकोर्ट की महिला जज ने अपने शोषण की दास्तां सुनाई..तो दूसरी जज ने अपने आध्यात्मिक गुरू की संपत्ति पर छाए संकट के लिए सहायता मांगी। अफसोस कि दोनो की कोई मदद नहीं कर सका। क्योंकि तब सीनियर्स ने समझाया कि जजों के मामले में हम मीडिया वालों को नहीं पड़ना चाहिए। लेकिन एक बात जो समझ में आई कि वे भी इंसान हैं। हमारी आपकी तरह की परेशानी उन्हें भी परेशान करती है। साफ लगा कि सक्षम लोग हैं..थोड़ा दाएं-बाएं करके अपनी समस्या का समाधान निकाल सकते थे…लेकिन नहीं किया क्योंकि..सब संस्थागत मर्यादा में बंधे दिखे।
कुल मिलाकर कहा जाए..इन संस्थाओं पर टिकी हैं देश के नागरिकों की गहरी आस्था। इन पर किसी भी तरह का, किसी भी स्तर का आघात..किसी के भी द्वारा स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। ये किसी बड़े संकट की तरफ देश को धकेल सकता है।
देश के आम नागरिकों को इसे भी समझना होगा कि जिस तरह के वकील लोग ये लड़ाई लड़ रहे हैं..बड़े लोग हैं..बड़े आरोपों से घिरे रहते हैं..आम लोगों वाली परेशानी से परे हैं..उनकी फीस तक अफोर्ड करना हमारे आपके बस के बाहर की बात है। ऐसे में हमें ही मुखरता से इन विशिष्ट लोगों की बदनाम हरकतों का विरोध करना होगा। ताकि ये बड़े लोग हमारी गहरी आस्था..न्याय के मंदिर की गरिमा को तार तार न कर सकें..सालों से सहेजी इस पूंजी को बर्बाद न कर सकें।