राहुल गांधी का रावण वाला पोस्टर क्या जारी हुआ..पूरे कांग्रेस पार्टी में उबाल आ गया। कांग्रेस का बड़ा नेता हो या छोटा नेता या फिर सामान्य कार्यकर्ताओं ही क्यों न हो। हर किसी की तरफ से राहुल गांधी के रावण रूप पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। हर किसी ने अपने चहेते नेता की छवि बिगाड़ने की कोशिश को खारिज किया। भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ हर किसी ने सोशल मीडिया से लेकर सड़कों पर भड़ास निकाली। बीजेपी की तरफ से राहुल के रावण वाले पोस्टर के विरोध में कांग्रेस ने पूरे देश में जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। दिल्ली से लेकर लखनऊ, जयपुर, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, पंजाब, केरल तक कांग्रेस को आक्रोश देखने को मिला। कांग्रेस के छोटे-बड़े सभी नेता सड़कों पर उतरे। बीजेपी के खिलाफ नाराजगी जाहिर की।
ठीक दशहरा के पहले राहुल गांधी का रावण वाला पोस्टर जारी करके बीजेपी ने देश की राजनीति में उबाल ला दिया। बेशक इस पोस्टर वॉर की शुरुआत कांग्रेस की तरफ से की गई हो, कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अडानी की कठपुतली दिखाते हुए पोस्टर जारी किया। जिसके जवाब में बीजेपी ने राहुल गांधी को सात सिरों वाला रावण बना कर पेश कर दिया। साथ ही पोस्टर पर लिखा..भारत खतरे में है। तस्वीर के ठीक नीचे बड़े अक्षरों में ‘रावण’ लिखा हुआ है। इसके नीचे अंग्रेजी में लिखा है..ए कांग्रेस पार्टी प्रोडक्शन, डायरेक्टेड बाय जॉर्ज सोरोस। बीजेपी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर राहुल का रावण वाला पोस्टर जारी करते हुए उन्हें नए जमाने का रावण बताया। बीजेपी की तरफ लिखा गया कि नए जमाने का रावण यहां है। वो दुष्ट, धर्म और राम विरोधी है। जिसका एक मात्र उदेश्य देश को बर्बाद करना है।
इस मसले पर कांग्रेस की तरफ से जिस तरह का रिएक्शन देखने को मिल रहा है..संकेत साफ है..कांग्रेस को डर है दशहरा के माहौल में ये पोस्टर हिट न हो जाए। शायद इसी वजह से कांग्रेस ने राहुल के रावण वाले पोस्टर का बड़ी ही मुखरता के साथ विरोध किया। ताकी इसका विस्तार न हो। बीजेपी बैकफुट पर आ जाए। कोई और इस विवादित पोस्टर को शेयर करने से पहले से जरूर सोचे..इससे कांग्रेस की नाराजगी की सामना करना पड़ सकता है। होना भी यही चाहिए। अपने चहेते नेता की छवि के साथ ऐसा खिलवाड़ कतई बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। किसी भी पार्टी के नेता-कार्यकर्ता की तरफ से ऐसी ही नाराजगी देखने को मिलनी चाहिए।
लेकिन बड़ा सवाल है..क्या इससे कांग्रेस की सियासी संवेदनशीलता के सूचकांक में सुधार देखने को मिलेगा?
क्योंकि यही कांग्रेस तब मौन थी जब पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई रावण वाला पोस्टर नहीं छापा जा रहा था बल्कि इससे कई कदम आगे की घटना देखने को मिल रही थी। घटना साल 2020 की है..जब पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी और पंजाब के कई हिस्सों में प्रधानमंत्री मोदी का रावण रूप में पुतला लगाया जा रहा है। दशहरा के मौके पर उसे जलाया जा रहा था। तब मैंने इसी कैपिटल कम्यूनिटी न्यूज़ के मंच से इस मुद्दे का पुरजोर विरोध किया था। तब मैंने कहा था कि ये न सिर्फ देश के प्रधान का अपमान है..बल्कि हिन्दू संस्कृति के साथ खिलवाड़ है। दशहरा में रावण का पुतला जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इसका संदेश काफी बड़ा है। इस संदेश के साथ सियासी घालमेल कतई स्वीकार्य नहीं किया जा सकता। देश के प्रधान की छवि के साथ ऐसी छेड़छाड़ बहुत ही आपत्तिजनक है। ये लोकतंत्र का अपमान है। ये 140 करोड़ जनता का अपमान है..जिन्होंने नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री चुना है। इसका पुरजोर विरोध होना चाहिए।
लेकिन ये दुखद है कि तब कांग्रेस मौन रही। कांग्रेस की पंजाब सरकार की तरफ से उस वक्त ऐसे लोगों के खिलाफ कोई एक्शन देखने को नहीं मिला। कई मौकों पर ऐसा लगा कांग्रेस की तरफ से ऐसे लोगों को मौन सहमति मिली हुई है। उस वक्त राहुल गांधी की तरफ से बस एक ट्वीट किया गया। जिसमें उन्होंने इस घटना को गलत बताया..मगर साथ साथ नसीहत देते हुए कहा कि मोदी सरकार किसानों से बात करे। राहुल गांधी तब ये स्पष्ट नहीं कर पाए कि वो प्रधानमंत्री मोदी के पुतला दहन से नाराज है भी या नहीं? कायदे से उस वक्त उन्हें अपने राज्य सरकार को ऐसे लोगों पर सख्ती करने के आदेश देने चाहिए थे।
इतना ही नहीं छत्तीसगढ़ में भी ऐसी घटना देखने को मिली। जहां अंबिकापुर में एनएसयूआई के जिला अध्यक्ष हिमांशु जायसवाल ने ही पीएम मोदी का पुतला दहन का आयोजन किया। उस पर भी किसी तरह के सख्त एक्शन की बात सुनने को नहीं मिली।
सोचिए जो कांग्रेस प्रधानमंत्री मोदी के रावण रूपी पुतले के दहन पर मौन रही, वही कांग्रेस बस राहुल के रावण वाले पोस्टर पर बिलबिला गई। पूरे देश में हंगामा काट दिया।
ये किसी एक पार्टी के लिए संदेश नहीं है..इसे हर पार्टी को समझना होगा..ये नफरती आग हर किसी को जलाने वाली है। बस वक्त-वक्त की बात है। ये किसी व्यक्ति विशेष का अपमान नहीं है..ये भारतीय संस्कृति के साथ-साथ एक तरीके से लोकतांत्रिक सिस्टम का भी अपमान है। जिसमें एक नेता के साथ करोड़ों लोगों की भावनाएं जुड़ी होती हैं।