सच है कि सियासत को सीमाओं में बांध कर नहीं देखा जा सकता। लेकिन मर्यादा और सिद्धांत की सीमा रेखा अभी तक देश की सियासत की दशा और दिशा तय करती रही है, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता। पिछले कुछ दिनों में देश के सियासी आचरण में जो बदलाव देखा जा रहा है, उसे बीजेपी विरोध का क्लाइमेक्स कहना गलत नहीं होगा।
विशेषकर पिछले कुछ दिनों में पश्चिम बंगाल और दिल्ली की सियासत ने जिस तरह से करवट बदली है, वो आने वाले दिनों में भारत की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत दे रही है। बीजेपी की एग्रेसिव कैंपेन स्ट्रैटेजी विरोधी दल को कुछ ऐसा करने के लिए बाध्य कर दे रही है, जिसके नतीजे जनता को भ्रमित करने वाले हैं। इसे देख कर अभी तो यही लग रहा है कि इसका विस्तार आने वाले दिनों में देश के अन्य हिस्सों में भी देखने को मिल सकता है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चुनाव प्रचार के दौरान अपने रोड शो में, अपने ही लोगों के बीच, अपनी ही गाड़ी के दरवाजे से चोट लग गई। पहली प्रतिक्रिया में तो उन्होंने इसे हादसा बताया, लेकिन बस कुछ ही पलों के अंदर उन्होंने माहौल बदल दिया। इस घटना को बीजेपी की साजिश करार दिया। कहने लगीं कि चार-पांच लोगों ने जान-बूझकर उन्हें चोट पहुंचाने की कोशिश की, उन पर हमला किया। पर्याप्त संख्या में पुलिस बल की मौजूदगी नहीं थी। सियासी लाभ लेने के चक्कर में, रणनीतिकारों के बहकावे में आकर वो बहुत कुछ ऐसा बोल गईं, जो सूबे की जनता को यही संकेत दे रहे थे कि पश्चिम बंगाल में तो महिला मुख्यमंत्री भी सुरक्षित नहीं हैं। कभी भी, किसी के भी उपर हमला हो सकता है, जैसा कि बीजेपी बड़े आक्रामक अंदाज में लंबे समय से कहती आ रही है। ये कितनी विरोधाभासी बात है, लॉ एंड ऑर्डर राज्य सरकार की जिम्मेदारी होने के बावजूद प्रदेश का मुखिया खुद को लाचार दिखाने की कोशिश कर रहा है। और तो और जो उनके चाहने वाले थे, जो ज्यादा करीब जाकर अपनी आस्था उन्हें दिखाना चाह रहे थे। अब पुलिस जांच के दायरे में हैं। इस घटना की एफआईआर दर्ज हो चुकी है। तय है कि इलाके के लोगों के लिए ये अच्छा खासा सिरदर्द साबित होने जा रहा है। क्योंकि पूछताछ तो उन्हीं से होगी, जो लोग अपने चहेते नेता के ज्यादा करीब जाने की सामान्य सी कोशिश में लगे थे। जाहिर है ऐसे लोग अब अपना नाम जांच में आने से काफी चिंतित होंगे।
हालांकि राज्य सरकार की तरफ से चुनाव आयोग को भेजी जांच रिपोर्ट में इस पूरे मामले में लीपापोती करने की कोशिश की गई है। किसी भी कारण को स्पष्टता के साथ नहीं बताया गया है। बात को गोलमोल घुमाने की कोशिश की गई है। इसी वजह से आयोग अभी संतुष्ट नहीं हुआ है, फिर जवाब मांगा है।
घटना की तस्वीरों से साफ आभास होता है कि ये एक हादसा ही था। लेकिन बीजेपी की आक्रामक प्रचार शैली ने ममता बनर्जी को एक ऐसा रास्ता अख्तियार करने के लिए बाध्य कर दिया, जो नंदीग्राम की जनता की परेशानी बढ़ाने के साथ साथ सूबे की जनता को गुमराह करने वाला है।
ऐसा ही कुछ इन दिनों दिल्ली में देखने को मिल रहा है। लगातार बीजेपी की राजनैतिक शैली का विरोध करने वाले, उसमें लाख दोष बताने वाले आज की तारीख में उन्हीं सियासी फॉर्मूलों को अपनाते देखे जा सकते हैं। चाहे वो चांदनी चौक स्थित हनुमान मंदिर को फिर से स्थापित करने का मसला रहा हो या फिर एक कदम और आगे बढ़ते हुए आम आदमी पार्टी की सरकार का दिल्ली के स्कूलों में देशभक्ति पाठ्यक्रम की शुरुआत करने का फैसला। दिल्ली के कोने-कोने में तिरंगा लगाने का निर्णय भी कुछ ऐसा ही भ्रम पैदा करता है कि दिल्ली की सारी आवश्यकताएं पूरी हो गई हैं। सबसे बड़े रामभक्त को लेकर भी अनिर्णय की स्थिति बन गई है। जहां एक ओर बीजेपी अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए घूम घूमकर चंदा इकट्ठा कर रही है, तो वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री रामलला के दर्शन की मुफ्त व्यवस्था में जुटे हैं।
ऐसा लग रहा है मानो सबसे बड़ा देशभक्त और रामभक्त कौन की रेस चल रही है। और इसी को जनता का दिल जीतने का सबसे बड़ा पैमाना माना जा चुका है। अब इससे बीजेपी को कितना नुकसान होगा और उसके विरोधियों को कितना फायदा, इसके लिए अभी थोड़ा और इंतजार करना होगा।