एक गरीबी से जूझता देश, जिसकी तकरीबन एक तिहाई आबादी गरीब है। दुनिया की कुल गरीब आबादी का तीसरा हिस्सा भारत में रहता है। जिसकी सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है। जहां विपक्ष का सबसे बड़ा सियासी हथियार ही ‘नौकरी का मुद्दा’ है। सरकार की सबसे बड़ी चुनौती रोजगार सृजन की है। सरकार छोटी, मछोली कंपनियों को आर्थिक और प्रशासनिक मदद से सींच कर बड़ा करने में जुटी है। ताकि वे ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार दे सकें। देश का आर्थिक आधार मजबूत करें। ऐसे में देश की सबसे बड़ी प्राइवेट कंपनी, जो लाखों लोगों को नौकरी दे रही है। सबसे ज्यादा धन सरकार के खजाने में टैक्स के रूप में डालने वाली कंपनी के मुखिया को कोई खुले आम धमकी देता है। उसके घर के बाहर बम बनाने का सारा सामान रखता और बकायदा पत्र लिखकर धमकाता है कि ‘ये तो ट्रेलर है’। दो दिन बीत जाते हैं मुंबई पुलिस को कोई सुराग तक नहीं मिलता है। वो भी तब, जब कि ये बात पता चल चुकी है कि धमकी देने वाले छिप-छिपाकर नहीं आए। बकायदा स्कोर्पियो और इनोवा जैसी महंगी और बड़ी गाड़ियों में आकर, किसी छोटी सी गुमनाम जगह पर नहीं बल्कि देश की आर्थिक राजधानी, महानगर मुंबई के बेहद पॉश इलाके में इस वारदात को अंजाम देकर चले गए। फिर एक नए नवेले से आंतकी संगठन ‘जैश उल हिंद’ का नाम सामने आता है, जो इसकी जिम्मेदारी लेता है।
देश को हैरान और परेशान कर रही है ये खबर। जब देश का सबसे अमीर आदमी और दुनिया के दस सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में शामिल एकमात्र भारतीय के साथ कोई ऐसा कर सकता है, तो आम आदमी की क्या औकात?
ये वारदात उस समय में हो रही है जब पैसे वालों के बीच देश छोड़ने की होड़ सी लगी है। साल 2020 में जब देश कोरोना से कराह रहा था। उस बीच देश के अमीर बाहर बसने के अवसर तलाश रहे थे। हाई नेटवर्थ इन्डीविजुअल यानी आर्थिक रूप से सक्षम लोगों ने दूसरे देश में निवेश के आधार पर वहां की नागरिकता लेने की सबसे ज्यादा कोशिश पिछले साल की। इस आंकड़े में 63 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। ज्यादातर लोग अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया जाने की तैयारी में हैं।
जाहिर है इन पैसे वालों के साथ देश का धन भी तो बाहर जा रहा है। ऐसे में देश का सबसे अमीर आदमी जो अपने परिवार के साथ मुंबई में रहता है, उसकी सुरक्षा राष्ट्रीय चिंता का विषय क्यों नहीं?
इस मसले को मुंबई पुलिस के नकारेपन के नाम पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए। फौरन इस काम में देश की श्रेष्ठ जांच और सुरक्षा एजेंसियों को जुट जाना चाहिए। गुनहगार जेल की सलाखों के पीछे दिखना चाहिए। अमीरों को गाली वाली सियासत पर तो पता नहीं कब और कैसे रोक लगेगी, देश के अमीरों को नुकसान वाली प्रवृति पर तुरंत लगाम लगाने की जरूरत है। तभी अमीरों का भरोसा बढ़ेगा और आम आदमी को तो अच्छा लगेगा ही। यकिन मानिए ये शुद्ध रूप से देशहित में होगा।