इजरायली दूतावास के पास ब्लास्ट की खबर जैसे ही फैली, पहले तो हर दिल्ली वाले की सांस अटक गई। लेकिन जब पता चला कि कोई भी इस धमाके की चपेट में नहीं आया है। किसी तरह के जान माल की खबर नहीं है। फिर क्या था लोगों ने इस बार अपने दर्द पर हंसना ही सही समझा। शायद तभी तनाव थोड़ा कम हो।
दो महीने से अधिक का समय हो गया किसान आंदोलन की वजह से परेशानी झेलते हुए। एमसीडी हड़ताल ने भी बड़ा सताया। दिल्ली का कोई ऐसा कोना नहीं छोड़ा जहां कूड़े की बदबू न फैली हो।
26 जनवरी को दिल्ली ने जो देखा, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। लाख शिकायत हो दिल्ली पुलिस से, लेकिन जवानों को सड़कों पर पीटते देख अच्छा नहीं लगा। लाल किला की बदरंग तस्वीर तो भुलाए न भुलेगी। यकीन नहीं हो रहा, क्या इतना आसान हो गया है देश की मान मर्यादा से खिलवाड़ करना?
हां 27 जनवरी को दिल्ली पुलिस को सड़क पर उपद्रवी नहीं मिले तो जगह-जगह बैरिकेडिंग लगा लगा कर दिल्ली वालों पर ही फिर धौंस जमाया, फिर क्या था फंसे रहे सारे दिन सारे के सारे जाम में।
गुरूवार की सुबह भूकंप के हल्के झटके भी झेल लिए। दिल्ली के राजनेताओं को बेशक दिल्ली वालों पर तरस न आया हो, भगवान ने रहम दिखाते हुए भूकंप की तीव्रता 2.8 तक ही सीमित रखा।
राहत की आस जगी ही थी कि शायद अब सीमाएं खुल जाएं, जीवन पटरी पर आ जाए, घर कुछ जल्दी पहुंच जाएं। लेकिन नहीं, दिल्ली की सीमाओं पर जले सियासी चुल्हे में आग अभी बाकी है, फूंक मार मार कर सुलगाने की कोशिशें जारी है।
कहते हैं न दर्द जब हद से गुजर जाता है तो गा लेते हैं। कुछ ऐसे ही हालात शुक्रवार की शाम सोशल मीडिया पर देखने को मिला। दिल्ली के लोगों ने अपने ही दर्द का मजाक बना कर खूब मजा लिया।