हैरानी होती है कैसे महामारी के इस महासंकट काल में भी किसी को सियासत सूझ सकती है। जबकि बिना भेदभाव के कोरोना का ये नया संस्करण संहार की मुद्रा में दिख रहा है। बड़ा हो या छोटा, प्रभावशाली हो या, आम इंसान, कोई भी, कभी भी इसकी चपेट में आ जा रहा है। हालात दिनोंदिन बद से बदतर होते जा रहे हैं। बावजूद इसके दिल्ली में सियासी खींचतान खत्म होती नहीं दिख रही है।
पहले जब भी दिल्ली में हालात बिगड़े केंद्र सरकार ने आगे बढ़कर दिल्ली सरकार का हाथ थामा और परिस्थितियां संभलने लगी। बाद में दिल्ली सरकार ने बेशक श्रेय लेने की कोशिश की हो, विज्ञापनों से माहौल बदलना चाहा हो, लेकिन दिल्ली वालों के अंदर केंद्र सरकार की भूमिका को लेकर कभी भी किसी भी तरह का संशय भाव नहीं रहा।
लेकिन इस बार के हालात बदले से लग रहे हैं। एक ओर जहां कोविड ज्यादा खूंखार रूप में दिख रहा है। रोजाना 20 हजार के आंकड़े को पार कर रहे हैं मामले, केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच तालमेल का जबरदस्त अभाव डराने वाला है। बैठकें भी हो रही है, बातचीत भी हो रही है, लेकिन जमीन पर कुछ ठोस होता नहीं दिख रहा है। जिस तरह से पिछली बार गृहमंत्री अमित शाह ने मोर्चा संभाल लिया था। बेड्स की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी करके दिल्ली को लोगों को तुरंत राहत देने का काम किया था। इस बार उन्हें ऐसे गंभीर हालात में पश्चिम बंगाल में चुनावी रैलियां करते देख दिल्ली परेशान है।
इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी अपनी तैयारियों से ज्यादा केंद्र से अपनी अपेक्षाओं की चर्चा करते ज्यादा दिखते रहना चाहते हैं। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि जब कोरोना के नए वैरिएंट का खतरा देश में बढ़ रहा था दिल्ली सरकार नई शराब नीति के मंथन में जुटी थी। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने केंद्र के सरकारी अस्पतालों के 10 हजार बेड्स में से 7 हजार बेड्स की मांग बार बार दोहराई है। साथ ही ऑक्सीजन की सप्लाई बढ़ाने के लिए गुहार लगाई है।
इन सब के बीच सबसे बुरी खबर सामने आई एमसीडी के अस्पतालों से जुड़ी। माना कि दिल्ली सरकार के द्वारा एमसीडी का पैसा नहीं दिए जाने को लेकर लंबी सियासी खींचतान जारी रही है। लेकिन इस मुश्किल हालात में वक्त सियासी बदला लेने का बिल्कुल भी नहीं है। लेकिन जैसी जानकारी को लेकर आम आदमी पार्टी के एमसीडी प्रभारी दुर्गेश पाठक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की उससे तो ऐसा ही लग रहा है कि एमसीडी बिल्कुल भी सहयोग के मूड में नहीं दिख रही है। दुर्गेश पाठक ने एमसीडी के हर अस्पताल में उपलब्ध बेड्स के आंकड़ों के साथ बताया कि कुल 3127 बेड्स होने के बावजूद एमसीडी अपने अस्पतालों को कोविड मरीजों के लिए नहीं दे रही है। केवल नॉर्थ दिल्ली के सबसे बड़े एमसीडी अस्पताल हिन्दू राव के करीब 1000 बेड्स में से बस 200 बेड्स कोविड पेसेंट्स को देने का आश्वासन भर ही दे रखा है। अभी तक इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ है।
राजनबाबू अस्पताल – 700 बेड
महर्षि वाल्मिकी अस्पताल – 400
बालक राम – 200 बेड
कस्तूरबा गांधी – 250
गिरधारी लाल – 100
पूर्णिमा सेठी अस्पताल – 100
माता गुजरी अस्पताल – 100
स्वामी दयानंद अस्पताल – 200
जाहिर है कि आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच की इस खींचतान का खामियाजा दिल्ली के लोगों को ही भुगतना पर रहा है। लेकिन इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जिस स्तर पर एमसीडी के अस्पतालों के डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को सैलरी के लिए सताया गया, उसने न सिर्फ देश में बल्कि दुनिया में दिल्ली का नाम खराब किया। पिछली बार जब कोरोना चरम पर था उस वक्त हिन्दू राव अस्पताल के डॉक्टर अपना घर चलाने के लिए, अपनी सैलरी की मांग को लेकर दिल्ली की सड़कों पर प्रदर्शन करने को मजबूर हुए थे।
लेकिन ये वक्त सियासत का नहीं है, बदला लेने का नहीं है। हालात संभालने का है। इस बात को समझते हुए कि जब केंद्र और दिल्ली की सरकारों ने हाथ मिलाया है तभी हालात संभले हैं, आगे बढ़ने की जरूरत है।
हां, इस चर्चा में एक बात का जिक्र बेहद आवश्यक है कि जिस तरह से दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन ने अपनी सक्रियता बढ़ाई है, निसंदेह सराहनीय है।