- -पंडित चरनजीत-
यदि आप किसी प्रकार के बुरे फलों का बहुत अधिक अनुभव करते हैं तो इसका एक ही उपाय है, कि किसी भी प्रकार से शनि महाराज को प्रसन्न रखना एवं उनके दण्ड से बचना। शनि महाराज को कैसे प्रसन्न रखा जाए और कैसे अशुभ परिणामों से बचा जाए? इस के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय यहां प्रस्तुत हैं।
ऐसे करें शनिदेव को प्रसन्न
शनिदेव को प्रसन्न करना बहुत आसान है। उन्हें प्रसन्न करने के लिए सर्वप्रथम तो यह आवश्यक है कि आप अपना आचरण अच्छा रखें। सदाचारी व्यक्तियों पर शनि की कृपा स्वतः ही रहती है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित उपाय करने पर शनिकृत अशुभ फलों में कमी आती है। शनि अपने शुभ फल प्रदान करते हैं।
- शनि दीन दुखियों, गरीबों और मजदूरों के प्रतिनिधि होते हैं। यदि इनकी सेवा और सहायता की जाए तो शनिदेव प्रसन्न होते हैं।
- जो भी गलत कार्य या अपराध आपने किया है यदि हो सके तो उससे पीड़ित व्यक्ति की सहायता करें या अपने द्वारा किए गए दुष्कृत्य के लिए उससे क्षमा मांगे। यदि यह संभव नही हो सके तो प्रायश्चित स्वरुप कुछ दान पुण्य करें और मन्दिर में भगवान के समक्ष अपना अपराध स्वीकार कर ग्लानि का अनुभव करें।
- शनिवार का व्रत करें।
- जोड़ लगा हुआ लोहे का छल्ला शुक्ल पक्ष के शनिवार को मध्यमा अंगुली में धारण करें।
- प्रतिदिन अपने भोजन में से गाय, कुत्ता और कौओं के लिए तीन ग्रास (भोजन) निकालें।
- प्रत्येक शनिवार ग्यारह या अधिक भिखारियों या मजदूरों को भोजन करावाएं
- एक बांसुरी मे खाड़ भरकर या आंखों में लगने वाले सूरमें को भूमि में दबाएं।
- अपनी एक पुरानी कमीज या अन्य कोई पुराना वस्त्र लेकर शनिवार को शनि मन्दिर जाएं। वहां शनि महाराज के सामने काले तिल मिश्रित सरसों के तेल का दीपक जलाएं। फिर वह वस्त्र वहीं शनि महाराज के मंदिर में छोड़ कर आ जाएं और शनिदेव से प्रसन्न होने की प्रार्थना करें।
- एक लोहे की कड़ाही में शनिवार को सवा किलो तिल का तेल भरें। उसमें अपना मुंह देखकर उसे किसी मंदिर में, शनि का दान लेने वाले व्यक्ति को अथवा ब्राह्मण को दान कर दें।
- शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए हनुमान जी की उपासना करना भी लाभदायक रहता है। इसके लिए प्रत्येक शनिवार हनुमान जी के मंदिर में सिंदूर चढ़ाने के पश्चात शनि चालीसा या सुन्दर काण्ड का पाठ करना चाहिए।
यदि कोई व्यक्ति उपर्युक्त आचरण करता है तो देवताओं के न्यायाधीश शनि महाराज उस व्यक्ति पर कुपित हो ही नहीं सकते। उसे फिर और किसी देवता की उपासना की आवश्यकता नहीं रहती। सब देव उससे वैसे ही खुश रहते हैं और वह सदैव अच्छे फल प्राप्त होते हैं।
(पंडित चरनजीत के विचार)