हाथरस की बेटी जख्मी हालत में जब थाने के बाहर चबूतरे पर पड़ी थी…देश नहीं देख सका। परिवार न्याय की गुहार लगा रहा था..देश नहीं सुन सका। हॉस्पिटल के आईसीयू में जब पीड़िता अपनी सहमी..जख्मी आवाज में अपना दर्द साझा कर रही थी तो उसकी गूंज किसी बड़े मीडिया हाउस तक नहीं पहुंच पाई। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने सब का घ्यान हाथरस की तरफ खींच लिया। तेजी से घटती घटनाएं…पहले दिल्ली में लड़की की मौत…फिर रात के अंधेरे में चिता का जलाया जाना। घटता बढ़ता सियासी उन्माद….सब तरफ हाथरस ही हाथरस..
क्या इसकी बकायदा प्लानिंग की गई थी ?
हर घटना के बाद प्रायोजित थी हर प्रतिक्रिया ?
किसी मास्टमाइंड की थी सारी करामात ?
सब संयोग या किया जा रहा कोई प्रयोग ?
जैसे जैसे जांच आगे बढ़ रही है सच सामने आता जा रहा है। अमेरिका की तर्ज पर ‘जस्टिस फॉर हाथरस’ मॉडल के मिल रहे हैं संकेत…यूपी को जातीय हिंसा में सुलगाने के मिल रहे हैं साक्ष्य। समय लगेगा सच सामने आएगा…
लेकिन बड़ा सवाल –
क्या योगी की नहीं मिल रही काट ?
मोदी से पस्त तो चलो योगी को करें परास्त
संवेदनाओं को सुलगाया जाए योगी को हराया जाए
क्या इसी नीति से हावी होगा विपक्ष?
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में देश के सबसे बड़े सूबे पर बीजेपी की प्रचंड जीत ने कई सियासी संदेश दिए। इस जीत ने बता दिया कि जाति धर्म की सियासत बीते दिनों की बात हो गई। अगड़ा-पिछड़ा सब एक साथ खड़ा हो जाता है जब बात देशहित की होती है। हिन्दू हित को नकारना किसी के लिए भी घातक हो सकता है। तुष्टिकरण की राजनीति अब नहीं चलने वाली।
बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने इसे समझा और आगे बढ़कर एक और बड़ा फैसला लिया जो अपने आप में मिसाल साबित हुई। सूबे की कमान एक योगी के हाथ में सौंप दी। जिसे न तो किसी जात में बांधा जा सकता था…न ही किसी जमात में समेटा जा सकता था। मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने भी शानदार शुरुआत की। सधे कदम से आगे बढ़ते चले। सियासी आरोप प्रत्यारोप का खेल चलता रहा। लेकिन सूबे को कई प्रशासनिक कीर्तिमान से नवाजने में सफल होते रहे योगी।
चाहे कोरोना काल में दृढ़ निश्चय से मजदूरों को घर वापस लाने का फैसला हो..कोटा में फंसे छात्रों को सकुशल उनके परिवार से मिलवाने का निर्णय हो…महामारी के दौर में मनरेगा में ज्यादा से ज्यादा लोगों को मजदूरी दिलवाने का कीर्तिमान हो…योगी सबको पछारते दिखे।
और तो और रोजगार के मुद्दे पर जब विपक्ष ने घेरा तो डिफेंस कॉरिडोर में रोजगार की संभावना का रोडमैप दिया। एमएसएमई सेक्टर को आर्थिक सहायता देकर नए रोजगार गढ़ने का काम किया। और तो और खुला ऐलान कर दिया कि जो भी मजदूर भाई यहां वापस आए हैं उन्हें काम देगी यूपी सरकार। बकायदा उनकी मैपिंग और फाइलिंग शुरू करवा दी।
विकास के साथ साथ योगी का हिन्दुत्व की सियासत में बेहतर विकल्प के रूप उभरना विपक्ष को परेशान करने वाला साबित हुआ। ऐसे में हाथरस का मुद्दा नई आस जगा गया। यूपी में बहुत पहले से हाथ पैर मार रही प्रियंका के लिए यह मुद्दा नई रौशनी लेकर आया। अपने साथ राहुल का कैरियर ग्राफ उपर करने का अवसर वो कैसे छोड़ सकती थीं। पूरे दल बल के साथ भाई बहन यूपी कूच कर गए। पहली ठोकर लगी गिरे…लेकिन फिर संभल कर आगे बढ़े। रुकना विराम लगा सकता था उनकी सियासी विस्तार को..मुद्दा गरम था..सब कुछ तो मिल रहा था..
दलित को बीजेपी से अलग करने का अवसर
ठाकुरों को योगी से नाराज करने का मौका
महिला विरोधी मानसिकता को नया विस्तार
विकास को परास्त करने का मौका
तमाम तरह के जद्दोजहद के बाद प्रियंका अपने भाई को लेकर हाथरस पहुंचीं। तस्वीरें देश ने देखी…पीड़िता की मां को गले लगाती प्रियंका…पिता को आश्वासन देते राहुल..संदेश साफ दिया – हम साथ हैं..।
अब तक तो निशाना सटीक बैठा है। बशर्ते मामले में पीएफआई की फंडिंग…या फिर पत्रकारों, परिवार और राजनेताओं की फोन टैपिंग का मसला कोई नई शक्ल न सामने ला दे।
इतना कुछ कांग्रेस हासिल कर रही थी तो दलितों के दूसरे हमदर्द कहां चुप बैठने वाले थे। मायावती तो कुछ खास नहीं करती दिखीं…लेकिन चंद्रशेखर रावण अपनी बिहार की सियासी सभाओं को विराम लगाते हुए फौरन हाथरस के सियासी रण में कूद पड़े। पूरी सेना हाथरस की सीमाओं पर तैनात कर दी। काफी टकराव के बाद प्रशासन ने दस लोगों को जाने की इजाजत दी। फिर क्या था चंद्रशेखर परिवार से मिले और परिवार यूपी में कितना असुरक्षित है देश को बताया।
समाजवादी पार्टी कहां पीछे हटने वाली थी। अपने उसी तीखे अंदाज में हाथरस की सीमाओं पर योगी सरकार की पुलिस से मोर्चा लेती दिखी। योगी मैजिक को धूमिल करने का इससे बेहतर मौका कहां मिलने वाला था। दलित लड़की के साथ अत्याचार…उसे न्याय दिलवाने के लिए लाठी खाने को तैयार समाजवादी सेना…यूपी की सियासत में नया अध्याय लिख रही थी। पता है कि मायावती का मैजिक घट रहा है तो फिर क्यों न दलित वोट को साधा जाए।
हाथरस गरम है..और चरम पर है सियासत। रोज नित नए नए एंगल सामने आ रहे हैं। और तो और भाजपा और एनडीए के नेताओं के बीच भी पूरे मसले को लेकर मतभेद सामने आ रहे हैं। सब योगी सरकार के साथ खड़े हो ऐसा नहीं है। जदयू के महासचिव केसी त्यागी और बीजेपी की वरिष्ठ नेता उमा भारती योगी सरकार के फैसलों पर असहमति जता चुके हैं।
आने वाले दिनों में कौन सा दल या कौन सा खेमा इसका क्या सियासी लाभ लेने में कितना सफल होता है..यह तो आने वाला समय बताएगा। लेकिन इतना तय है कि आगामी बेहद पेचीदा माने जाने वाले बिहार विधानसभा के चुनाव और अन्य 12 राज्यों की 56 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में हाथरस का मुद्दा जरूर असर दिखाएगा।