नवरात्रों में सियासी बोध तो नहीं करा रहे प्याज के बढ़े दाम ?

देश में किसान बिल पर कोहराम मचा हुआ है। हर तरफ बस किसान हित को लेकर अलग अलग सियासी दलों की अपनी अपनी दलीलें हैं। सबसे बड़ा किसान हितैषी कौन, रेस सी चल रही है। सब किसानों को अधिक अधिक से अमीर बना देखना चाहते हैं। सब ठीक है, सब चलता है, कोई भी किसी को अमीर बनाए। लोकतंत्र है जिसको जिससे फायदा मिलता है समाज का वह खेमा उस दल के पीछे चल पड़ता है।

लेकिन समझ में जो बात आम आदमी के नहीं आ रही है वह यह है कि देश का किसान गरीब, सब्जियां खरीदने वाले आम आदमी की भी गिनती अमीरों में नहीं, फिर पैसा जाता कहां है? देश इस रहस्य को नहीं समझ पा रहा। और लगता है कि सिस्टम का फोकस भी इस ओर नहीं। सारी की सारी सब्जियों के दाम औसतन काफी बढ़ चुके हैं। अच्छी क्वालिटी के फल तो आम आदमी की पहुंच से पहले ही बाहर है, सब्जियों पर भी जब तब संकट खड़ा हो जाता है।

नवरात्र के दिन चल रहे हैं, इन दिनों देश के ज्यादातर लोग प्याज का त्याग कर बैठते हैं। फिर भी प्याज की कीमत पिछले एक हफ्ते में बेतहाशा बढ़ी है। दिल्ली में बस शतक लगाने ही वाली है। देश के दूसरे शहरों में भी प्याज के दाम अनियंत्रित तरीके से बढ़े हैं। मुंबई में प्याज 86 रुपए किलो, चेन्नई में 83 रुपए, कोलकाता में थोड़ी राहत है वहां 70 रुपए का दर चल रहा है।

फल, सब्जी और अन्य खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों के खिलाफ दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का जंतर मंतर पर प्रदर्शन

केंद्र सरकार प्याज की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए प्रयासरत है। सरकार ने प्याज के स्टॉक की सीमा तय कर दी है। थोक व्यापारी 25 मिट्रिक टन और खुदरा व्यापारी 2 मिट्रिक टन से अधिक प्याज जमा नहीं कर सकेगा। साथ ही केंद्र सरकार ने केंद्रीय सुरक्षित भंडार से प्याज देने का आदेश दिया है। जो सीधे राज्य सरकारें ले सकेंगी। नासिक बफर स्टॉक से 26 से 28 रुपए की दर से प्याज लेकर राज्य सरकारों को उपलब्ध करवाया जाएगा।

हैरानी इस बात की होती कि मुनाफाखोरी पर लगाम लगाने में बिल्कुल नाकाम दिखता है सरकारी तंत्र। उस दिशा में कोई बात तक नहीं। देश में प्याज की कमी है, ऐसा नहीं है। साफ दिखता है कि प्याज बेचने वाले मामूली सी वजह से जमकर मुनाफाखोरी कर रहे है। अगर आप इस कीमत वृद्धि का कारण जानना चाहेंगे तो एक्सर्ट का बताते है कि दक्षिण और पश्चिम क्षेत्रों में भारी बारिश की वजह से सप्लाई में रुकावट आ गई जिसकी वजह से कीमतें बढ़ी हैं।  

देश की सियासत का प्रमुख मुद्दा बना हुआ है किसान बिल। केंद्र सरकार के कहे अनुसार यह सारे के सारे कानून किसानों की कमाई बढ़ाने में सहायक होने जा रहे हैं। देश में कही का भी किसान किसी को भी अपनी फसल बेच सकेगा। सरकारी मंडी में बेचने की अनिवार्यता खत्म करता है नया किसान कानून। इसका मतलब तो यही निकलता है कि किसान की फसल पर किसी भी तरह का सरकारी अंकुश काम नहीं करेगा। साथ ही फसल जमा करने के लिए भी सरकार ने व्यापारियों को छूट दे दी है। एसेन्सियल कॉमोडिटी के जमा करने की सीमा खत्म कर दी गई है। देश में कहां किसके पास कौन सा कृषि उत्पाद कितना जमा है सरकार के पास कोई रिकॉर्ड ही नहीं होगा।

समझ में यह नहीं आ रहा है कि जैसी स्थिति प्याज को लेकर आज बनी है। इसमें जो भी कीमत नियंत्रित करने की कोशिश केंद्र सरकार की तरफ से की जा रही है उस पर गौर करें तो यह तय लगता है कि आने वाले दिनों में ऐसा करना किसी भी सरकार के लिए काफी मुश्किल भरा काम होगा। क्योंकि जो भी मौजूदा व्यवस्था है, चाहे वो सरकारी खरीद से जुड़ी मंडी की व्यवस्था हो, या फिर एमएसपी की व्यवस्था। भविष्य में इस स्थापित व्यवस्था का कमजोर हो जाना, जैसा कि विपक्ष बार बार कह भी रहा है, काफी घातक हो सकता है। जब सब कुछ निजी नियंत्रण में चला जाएगा तो फिर सरकार कितना और क्या कर पाएगी?

नवरात्रों में प्याज के साथ साथ आलू और दाल के बढ़े दाम कही देश को आगाह तो नहीं कर रहे कि विपक्ष की आवाज भी सुने और कृषि उत्पाद के पूरी तरह निजी नियंत्रण में चले जाने का विरोध आज ही दर्ज करवाए…कहीं देर न हो जाए!