दिल्ली सरकार की गौरव गाथा का बड़ा अध्याय रहा है शिक्षा का उनका तथाकथित अतिविशिष्ट मॉडल। जिसकी चर्चा हर मंच पर आम आदमी पार्टी का हर आम और खास नेता करना नहीं भूलता। परीक्षा परिणामों के भी जिस तरह के आंकड़े सामने आए सरकार के दावों को पुख्ता करने वाले साबित हुए। इस पर कोई इस बेबाकी से अंगूली उठाए ऐसा आज तक तो संभव ही नहीं लग रहा था। लेकिन रविवार को पूरी तैयारी के साथ दिल्ली बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने दिल्ली सरकार की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल की। हालांकि परीक्षा परिणाम, जो कि शिक्षा व्यवस्था के दुरुस्त होने का बड़ा पैमाना होते हैं उस पर तो आदेश गुप्ता ने कुछ नहीं कहा लेकिन कई संस्थागत कमियों पर जबरदस्त तरीके से सरकार को घेरा।
सबसे पहले उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के उन 12 कॉलेजों के कर्मचारियों का दर्द साझा किया, जिन्हें पिछले 6 महीने से सैलरी नहीं मिली है। जिसमें चतुर्थ श्रेणी के स्टाफ के साथ साथ सभी टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ शामिल हैं। इन लोगों ने उन्हें एक ज्ञापन दिया है जो उनका दर्द बयां करता है। आज वे अपने बच्चों की फीस नहीं दे पा रहे हैं। मकान का किराया नहीं दे पा रहे हैं। और उस पर हद तो तब हो जाती है जब दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया कॉलेज प्रबंधन से कहते हैं कि स्टूडेंट वेलफेयर फंड से पैसा निकाल कर सैलरी दी जाए। यह कैसी सरकार है जो एक तरफ तो कहती है कि सरकारी फंड में पैसा बढ़ा है इस कोरोना काल में भी, लेकिन अपने ही शिक्षण संस्थानों में काम कर रहे कर्मचारियों को सैलरी नहीं दे रही है।
दूसरा हमला आदेश गुप्ता ने सरकारी स्कूलों मे टीचरों की भारी कमी की ओर इशारा करते हुए किया। आज की तारीख में दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 30 हजार शिक्षकों की कमी है। इस कोरोना काल में दिल्ली सरकार ने 5 हजार टीचरों को निकाल बाहर किया। 5600 शिक्षकों को उम्र के आधार पर हटाया जा चुका है। और इन सब के बावजूद एक भी नई भर्ती नहीं की गई है। इससे दिल्ली के शिक्षा मॉडल के अंदरूनी हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है।
तीसरी समस्या ईडब्ल्यूएस व्यवस्था के तहत प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब छात्रों से संबंधित है। दिल्ली सरकार ऐसे छात्रों को पिछले एक साल से वर्दी नहीं दे रही है। साथ ही इनका फीस भी नहीं जमा करवाया गया है। विशेषकर इस कोरोना संकट के समय में ऐसे बच्चों के पैरेन्ट्स किस बुरे दौर से गुजर रहे होंगे समझा जा सकता है। उनकी मुसीबत बढ़ाने का काम कर रही है सरकार। जबकि होना कुछ और चाहिए था। ऐसे गरीब बच्चों को सरकार की तरफ से स्मार्ट फोन दिए जाने चाहिए ताकि वे ऑनलाइन पढ़ाई कर सकें। लेकिन दिल्ली सरकार इस दिशा में सोच भी नहीं पा रही है।
चौथी सबसे बड़ी समस्या तो 10 वीं और 12 वीं क्लास में पढ़ने वाले छात्रों के सामने आ खड़ी हुई है। चुनाव के पहले तो दिल्ली सरकार ने ऐसे गरीब बच्चों की एक्जाम फी भरने का वादा किया था। लेकिन आज सरकार अपनी ही बातों पर कायम नहीं है। विशेषकर महामारी के बुरे वक्त में तो मदद जरूर करनी चाहिए। लेकिन इन बच्चों की परीक्षा फीस जमा नहीं हुई है। जिसकी वजह से करीब 3 लाख बच्चों का भविष्य अधर में लटका है। 31 अक्टूबर आखिरी तारीख है।
आदेश गुप्ता ने दिल्ली सरकार के शिक्षा मॉडल पर सवाल उठाते हुए कहा कि बस एक दो स्कूलों को अच्छा कर वाहवाही लूटने का काम हो रहा है। जबकि सरकार का काम सबके लिए समान होना चाहिए।