हवा में नाइट्रोजन तो पानी में अमोनिया का बढ़ता स्तर दिल्ली वालों के लिए जानलेवा बना पड़ा है। दूषित हवा तो परेशान कर ही रही थी कि पीने के पानी में अमोनिया का खतरनाक स्तर डराने लगा। हालांकि ऐतिहात बरतते हुए दिल्ली के दक्षिण, पूर्व और उत्तर पूर्व के अधिकांश इलाकों में पेयजल की सप्लाई शुक्रवार सुबह से ही रोक दी गई है। लेकिन पीने के पानी में अमोनिया का खतरा बना ही रहता है। जानकार बताते हैं कि पेयजल में अमोनिया कई तरह की गंभीर बीमारियों को जन्म देता है। लिवर और किडनी इससे बुरी तरह प्रभावित होते हैं। बताया तो यह भी जाता है कि किसी भी तरह के आरओ और फिल्टर इससे निजात नहीं दिलवा पाते हैं।
इस सारी परेशानी की जड़ हैं दिल्ली के पड़ोसी राज्य। पंजाब जहरीला धूंआ देता है तो हरियाणा दूषित जल। इन दोनों की लापरवाही दिल्ली वालों की जान मुश्किल में डाल रही है।
तमाम सियासी और प्रशासनिक हल्ला हंगामा के बावजूद धरातल पर पराली जलाने की समस्या का ज्यों का त्यों बने रहना निराश करता है। पंजाब सरकार की उदासीनता और दिल्ली सरकार की सजगता की कमी हैरान करती है। जो भी शोर मचा..सब पराली का धुंआ दिल्ली पहुंचने के बाद ही सुनने को मिला। केंद्र सरकार की तरफ से समय रहते ठोस पहल की गई हो, ऐसा नहीं दिखता। बीते वुधवार को पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने के अब तक के सबसे ज्यादा 2,912 मामले सामने आए। उसी का नतीजा है कि वीरवार और शुक्रवार..दो दिनों से दिल्ली वालों को दमघोंटू हवा में सांस लेना पड़ रहा है। वायु गुणवत्ता सूचकांक गंभीर श्रेणी में 4 सौ से अधिक जा पहुंचा है।
यही हालात पीने के पानी को लेकर बने हुए हैं। दिल्ली तक पहुंचने वाला यमुना का पानी हरियाणा से गुजरता है। वहां मौजूद औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला केमिकल युक्त जहरीला पानी यमुना के पानी में मिल जाता है। यही पानी दिल्ली वालों को वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से साफ कर पीने के लिए मुहैया करवाया जाता है। बार बार कहने के बावजूद हरियाणा सरकार इन कंपनियों पर नकेल नहीं कस पा रही है। जिसका खामियाजा दिल्ली वालों को भुगतना पड़ता है।
कोरोना काल में दिल्ली को एक बड़ी राहत मिली थी, जुलाई महीने में हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर 70 फीसदी तक घट गया था। आंकड़ा जारी करते समय ही संयुक्त राष्ट्र की तरफ से आगाह किया गया था कि अगर वायु प्रदूषण को नियंत्रित करके नहीं रखा गया तो यह लाभ अस्थाई साबित होंगे। दूषित हवा कोरोना महामारी के संकट को बढ़ाने का काम करती है। हवा में नाइट्रोजन की अधिकता कई तरह सांस संबंधी बीमारियों को जन्म देती है।
अभी जिस तरह के हालात दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में बने हुए हैं साफ बता रहे हैं कि सरकारें राजधानी की जनता को साफ पानी और हवा देने में नाकाम रही है। चाहे केंद्र हो या राज्य की सरकार..इस मसले पर किसी भी तरह का ठोस रोडमैप किसी के पास नहीं दिखता। हर साल यही देखने को मिलता है कि जैसे ही समस्या विकराल रूप में सामने आती है सियासी शोर सा उठने लगता है..समस्या कम होते ही सब तरफ सन्नाटा पसर जाता है।