टैक्स पेयर्स को खोखला सम्मान नहीं, कुछ विशिष्ट अधिकार दीजिए

समय आ गया है कि सरकार अब टैक्स देने वालों को विशिष्ट अधिकार देने की दिशा में काम करे। विविधताओं से भरे इस देश में हर कोई किसी न किसी विशिष्टता को लेकर सिस्टम और व्यवस्था पर हावी हो जाता है। कोई जाति की मलाई छक रहा है तो कोई जमात के नाम पर सरकारी सुविधाओं का लाभ ले रहा है। ‘राष्ट्रवाद’ सबसे भ्रमित कर देने वाला शब्द बनता जा रहा है। सबसे बड़ा राष्ट्रवादी कौन इसकी होड़ सी लगी है। स्तर देखिए जरा, गाय को बचाने वाला सबसे बड़ा राष्ट्रभक्त है कि गाय काटने वाले की संविधान की व्याख्या सबसे पुख्ता है, बहस जारी है। इस बहस में उलझी है देश की सारी की सारी संवैधानिक व्यवस्थाएं।

ऐसे भ्रम से भरे माहौल में एक बड़ी लाइन खींचने की जरूरत है। जो भी देश का नागरिक जितनी ही ज्यादा ईमानदारी से अपने टैक्स का भुगतान करता है, उसे देश का सबसे बड़ा देशभक्त करार दिया जाए। बस यही रूकने से बात नहीं बनने वाली है। इन टैक्स देनदारों की बकायदा रैंकिंग की जाए, कुछ विशेष कार्ड बगैरह बनाए जाएं। जिसके आधार पर उन्हें हर तरह की सरकारी सुविधाओं को हासिल करने में प्राथमिकता दी जाए। जैसे एक सांसद या विधायक बने व्यक्ति के साथ तमाम तरह की सुविधाएं स्वत: ही जुड़ जाती हैं। ट्रेन या हवाईयात्रा से जुड़ी रियायतें व सुविधाएं हो, पब्लिक प्लेस में मिलने वाला सुरक्षा कवर हो, हाई-वे पर मिलने वाली रियायतें हो या फिर किसी अन्य तरह की सरकारी सेवाएं लेने में उनकी वरियता का ध्यान रखा जाए। पुलिस या प्रशासन में इनकी शिकायतों को भी गंभीरता से लेने की बाध्यता हो। यहां तक कि व्यक्ति विशेष कभी किसी आर्थिक संकट में घिरता है तो सरकार का ये संवैधानिक उत्तरदायित्व हो कि उसे हर तरह से मदद मुहैया करवाए, चाहे लोन हो, सब्सिडी हो या सहायता राशि, उसे तत्काल मिले। यकीन मानिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को टैक्स देने और लोगों को ज्यादा से ज्यादा टैक्स देने के लिए मोटिवेट करने के लिए इससे अच्छी बात हो ही नहीं सकती।

 मौजूदा व्यवस्था में तो यहां तक गुंजाइश है कि अपनी जाति और जमात के दम पर हासिल सामाजिक हैसियत सत्ता के सामने साबित करते ही सरकारें उसे दर्जा प्राप्त मंत्री बनाने को बाध्य हो जाती हैं। फिर सच्चे और सशक्त टैक्स पेयर्स को इस तरह की सुविधाओं से वंचित रखना कहां तक उचित है। जबकि सही मायनों में सच्चा देश भक्त तो वही है। सवा सौ करोड़ से ज्यादा की आबादी में सिर्फ और सिर्फ डेढ़ करोड़ टैक्स देने वालों का आंकड़ा तो यही साबित करता है। क्योंकि उन्हीं के दिए पैसे तो देश की रौनक है। देश की गति है, गौरव है। फिर उन्हें सम्मान के साथ साथ विशिष्ट अधिकार क्यों नहीं..?

2 COMMENTS

  1. आदरणीय संवाददाता महोदय,
    आपका अखबार कैपिटल कम्यूनिटी न्यूज हम हमेशा पढ़ते हैं। हमें आस-पास की सारी ख़बरें पढ़ने को मिलता।
    हमारी शुभकामनाएं आपको।
    धन्यवाद

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