शहर में सियासत तेज है..केंद्र में फिर शाहीन बाग है। वही शाहीन बाग जहां से उस वक्त ऊंची ऊंची आवाजों में बीजेपी विरोध के नारे उठे। बताया जाता रहा कि देश में लोकतंत्र बस खत्म होने को है। नागरिकता संशोधन कानून को देश की मुस्लिम आबादी के लिए सबसे सरकारी षड्यंत्र करार दिया जाता रहा। लेकिन अचानक इतने दिनों के बाद जैसे ही शाहीन बाग आंदोलन से जुड़े कुछ अहम लोगों ने बीजेपी का दामन थामा। दिल्ली शहर का सियासी मिजाज तल्ख हो चला है। बिना चुनाव के दिल्ली में हिंदु मुसलमान हो चला है, लेकिन फर्क बड़ा है..मुसलमान हिंदू वाले सियासी खेमे में खड़ा है।
आम आदमी पार्टी चीख चीख कर दिल्ली के साथ साथ देश को बता रही है कि शाहीन बाग पूरी तरह से बीजेपी प्रायोजित था। तभी तो जो दिल्ली पुलिस बिजली, पानी, साफ-सफाई के मसले पर लोगों को तीन घंटे भी प्रदर्शन नहीं करने देती वो सौ दिन तक कैसे इंतजार कर सकती है? दिल्ली नोएडा सिक्स लेन की सड़क किसी आम आदमी को ऐसे पार करने में दिक्कत हो सकती है वो अचानक से शाहीन बाग की दस महिलाओं ने कैसे जाम कर दिया? उनका साथ देते हुए दिल्ली पुलिस ने बकायदा बाकि की सड़कों को भी बंद कर उससे दिल्ली के आम लोगों की परेशानी बढ़ाने का काम क्यों किया? हाई कोर्ट के कहने के बावजूद दिल्ली पुलिस अपनी लाचारी क्यों बताती रही? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब आज मिलते हैं। जब पता चलता है कि शाहीन बाग के आयोजन में जुटे शहजाद अली और अन्य अहम कार्यकर्ता और नेता बकायदा बीजेपी के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता और दिल्ली प्रभारी श्याम जाजू की उपस्थिति में रविवार 16 अगस्त को कमल थाम लेते हैं।
आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अमित शाह के उन बयानों की याद ताजा करवाई जिसमें उन्होंने दिल्ली की जनता को कमल के निशान वाला बटन दबा कर करंट शाहीन बाग तक पहुंचाने की बात की थी। सौरभ ने बड़े संशय के समाधान मिलने की बात कही, अब समझ आया कि बीजेपी के तार अंदर-अंदर शाहीन बाग तक जुड़े थे। तभी तो अमित शाह करंट पहुंचाने की बात कह रहे थे। सौरभ भारद्वाज ने अपने बयानों से साबित करने की कोशिश की कि शाहीन बाग की असली रचनाकार बीजेपी ही थी।