राष्ट्रीय मुद्दे की तलाश ने आज राष्ट्रीय और परम भारतीय न्यूज चैनलों को ट्विटर के पीछे खड़ा कर दिया है। फील्ड में रिपोर्टर मर्जी से जा नहीं रहे। जमीनी स्तर का कोई काम हो नहीं पा रहा। ऐसे में 24 घंटे के कंटेंट भरने की चुनौती। काम हो तो..हो कैसे..बड़ा सपोर्ट पाकिस्तान और चीन के नाम पर यूट्यूब से मिल जाता है। लेकिन लोगों को कितना डराएंगे…आखिर जज्बातों को झकझोर देने वाला मुद्दा भी तो चाहिए..।
हाथ में मोबाइल है ही..देखना है बस ट्विटर पर जा कर कि…बकवास आखिर किस बात पर सबसे ज्यादा हो रहा है। लीजिए आसानी से मुद्दा मिल गया..चटक काम भी निकल गया। रही सही कसर..एंकर ब्रिगेड तो पूरी कर ही देगी। सपोर्ट के लिए बस रिपोर्टरों को निकाल देना है। कुछ खोजी तो करना है नहीं..वहां भी एंकरों ने मोर्चा संभाल लेना है।
फिर क्या…ग्राफिक्स वाली आग तेजी से फैलती है..शाम होते होते सारे के सारे स्क्रीन सुलग पड़ते हैं। कौन देखे दिखाए बाढ़…कोरोना में तड़पते मरीज..परेशानी में परेशानी कौन बढ़ाए..चलो सुशांत केस में ही दिमाग लगाएं। इसमें संसपेंस है…हॉट है..गॉसिप है..ग्लैमर है..बॉलीवुड की चकाचौंध है..अब तो ड्रग्स है..अंडरवर्ल्ड भी है। और तो और संवेदना है..सदमा है..सच-झूठ का चटक रंगीला कॉकटेल भी है। सब तो है..समझें तो समाजिक सरोकार भी है। देश देख ही रहा है कि यहां आम आदमी को तो कुछ मिल नहीं पा रहा…चलो किसी खास के लिए ही सही..न्याय की लड़ाई लड़ ली जाए। सड़क पर जाना नहीं है..मशाल उठाना नहीं है…घर में सोफे पर बैठ कर बस रिमोट ही तो उठाना है। ऐसे सिस्टम कहां किसी की सुनता है..चलो कैमरे से ही हौंकवाया जाए।
भरमा गए बेचारे ‘तक’ वाले..अपनी लाइन लेंथ छोड़ दी। अपने अच्छे..सच्चे दर्शकों की सच्ची सूचनाओं वाली तड़प छोड़..ट्विटर वाली गैंग के पीछे हो लिए। अच्छे भले स्काइप पर ही सही मुद्दे तो उठा रहे थे। सारे अधिकारी घर बैठे मुफ्त की टीआरपी तो ला रहे थे। लाल भारत के चक्कर में अपनी स्क्रीन तो लाल कर ली। लेकिन एक्स्ट्रीम लाउड लहजा कहां से लाते..? आखिर कैसे और कितना..अपनी सॉफिस्टिकेटेड पर्दे की परियों से चिल्लम चिल्ला करवा पाते..? लीजिए निकल गई न हाथ से टीआरपी..। देश भी मानो बता रहा हो..उसे आगे पीछे रखने वाला नहीं..लाज लिहाज वाला नहीं…तमतमाता लाल वाला मीडिया चाहिए..।