नेहरू विहार की मुख्य सड़क का बारिश के दिनों में जो रूप निकल कर सामने आता है वो बहुत कुछ बताता है..सोचा क्यों न देश को बताया जाए। आप सोचेंगे देश को इससे क्या मतलब सारा देश क्यों इसमें इंटरेस्ट लेगा। ऐसे में आपके लिए जानना जरूरी है कि मुखर्जी नगर विस्तार का यह सारा इलाका देश के प्रशासनिक ढांचे को चलाने के लिए थोक में अधिकारी और कर्मचारी तो देता ही है…साथ ही सही मायनों में राजधानी दिल्ली में पूर्वांचली सियासत की नर्सरी भी है। जहां से निकली पौध आज विकराल रूप ले चुकी है। जिसका लाभ मनोज तिवारी और दिलीप पांडे जैसे ना जाने कितने नेता ले रहे हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो दिल्ली की सियासत में पूर्वांचल का जो दबदबा कायम हुआ है इसके पीछे मुखर्जी नगर जोन के महत्व को बिल्कुल भी नकारा नहीं जा सकता।
कहीं आपके जहन में ये बात तो नही आ रही कि शायद इसीलिए यहां की सड़कों में पूर्वांचली टच जान-बूझकर दिया जा रहा है। ऐसा होना तो नहीं चाहिए लेकिन पता है ऐसी सोच कभी कभी आ जाती है। निराशा इस बात की है कि आज की तारीख में ये इलाका सिविल सर्विसेज के साथ साथ हर तरह की सरकारी नौकरी की तैयारी का हब बन गया है, पूरे देश में इसकी विशिष्ट पहचान है। देशभर से छात्र छात्रा यहां पढ़ने के लिए आते हैं, रहते हैं, कोचिंग करते हैं, तैयारी करते हैं। पास ही स्थित दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र और टीचर तो यहां रहते ही हैं। विशेषकर नेहरू विहार की 70-75 प्रतिशत आबादी स्टूडेंट्स की ही है। शायद यही सियासी नकारेपन की बड़ी वजह भी बनती गई। परेशान तो ये बात कर जाती है कि दिल्ली में केन्द्र और राज्य की क्रांतिकारी सियासत का दौर शुरू होने के पहले तक यहां की तस्वीर ऐसी बुरी नहीं.. बहुत बेहतर रही।
रही बात नेहरू विहार के सड़कों की..इनकी बदहाली की बात दो-तीन साल पुरानी है। ओवरऑल यहां हालात बिगड़ते ही जा रहे हैं। बार बार सांसद मनोज तिवारी का बस आश्वासन मिलता रहा। आप वाले पिछले पूर्वांचली विधायक पंकज पुष्कर ने भी खूब वादे किए, नए वाले विधायक इलाके के लिए अभी तक नए ही लगते हैं। सांसद जी के तो आश्वासन वाले कई वीडियो वायरल हो चुके हैं। लेकिन सड़क की हालत वैसी की वैसी ही बनी है। बारिश के दिनों में पानी और परेशानी ज्यादा बढ़ जरूर जाती है।
ऐसा नहीं है कि यह कहानी दिल्ली के किसी दूर कोने की है। प्रशासनिक तौर पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के बेहद अहम सिविल लाइंस इलाके में स्थित है नेहरू विहार। इसी इलाके में आता है दिल्ली विधानसभा भवन, दिल्ली के मुख्यमंत्री का आवास और दिल्ली के मुख्य प्रशासक उपराज्यपाल का निवास। आज की तारीख में बीजेपी के बेहद महत्वपूर्ण..मनोज तिवारी यहां के सांसद हैं, जो दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष तक रहे और आम आदमी पार्टी के दिल कहे जाने वाले..दिलीप पांडे यहां के विधायक हैं। जिक्र पार्षद का भी होना ही चाहिए, जिनकी जिम्मेदारी सबसे बड़ी है। बताते चलते हैं..पूजा मदान हैं यहां बीजेपी की पार्षद। जानकर हैरानी होगी, महानगरी दिल्ली में भी ऐसा सियासी मॉडल संभव है..पोस्टरों पर तो दिख जाती हैं मैडम…लेकिन क्षेत्र की सारी डिलिंग…सारा काम..उनके पति ही देखते हैं। जानकार बताते हैं कि आरएसएस की मेहरबानी से ही ऐसा संभव हो पाया। मतलब इलाके में सियासी प्रभाव का दम दिखाने में कोई कम नहीं।
एक और महत्वपूर्ण जानकारी है कि जब दिल्ली में अन्ना आंदोलन की लहर चली तो यह इलाका तेज सियासी उफान पर था। बड़ी संख्या में यहां रह रहे छात्रों ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। छात्रों की वजह से यहां के स्थानीय निवासी भी प्रभाव में आए। और प्रभाव आज तक कायम दिखता है। तभी तो विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस जितना भी जोर लगा ले..जीत आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी के हाथ ही लगती रही है। पिछले दो बार तो आप का विधायक बागी हो गया, किसी ने कोई काम नहीं किया, फिर भी तीसरी बार सियासी लाभ आप को ही मिला।
मतलब यहां की गलियों में बहने वाली हवाओं ने दिल्ली की सियासत का रुख भले ही बदल दिया हो…सियासी ताव में लहराते नेता जरूर दिए हों..लेकिन सब ने पीछे छोड़ा है तो बंद..बजबजाती नालियां..गंदी गलियां..बदहाल सड़कें…कानून की धज्जियां उड़ाती घटनाएं..उपेक्षित लाचार जनता..।