राजस्थान में सत्ता को केन्द्र में रखकर समूचे सियासी ड्रामे को देखें तो सारा कुछ ससुर दामाद वाले घरेलू झगड़े से ज्यादा कुछ और नहीं नजर आता। ऐसा लगता है कि सूबे की सयानी सत्ता की हालत उस बेटी की तरह हो गई है जिसके अति अधिकार जताने वाले पिता और प्यार में पगलाए पति के बीच खींचतान मची हो। शादी धूमधाम से हो गई..रिश्ते और रोल डिफाइन हो गए..लेकिन क्या हो जब डोमिनेटिंग..वर्चस्ववादी ससुर बेटी को कब्जियाए बैठ जाए। उसे दामाद के घर की रौनक बढ़ाने की खुली छूट ही न दे। बेचारा दामाद सत्ता सुख को तरसता रहे। आखिर उसने भी तो इस शादी के लिए इतने पापड़ बेले..इतनी मेहनत की..फेरे लिए..न जाने कैसी कैसी कसमें खाई। लेकिन ये क्या ससुर तो सत्ता की साझेदारी के लिए..बेटी की विदाई के लिए ही नहीं तैयार हो रहा। कैसे..कब..कितने दिन..किसके साथ रहेगी..कुछ बात ही नहीं कर रहा। मुंह फुलाए बैठे रहे दोनो ससुर दामाद। न मिलना-जुलना, न कोई बात-चीत। साल बीत गए।
लेकिन सत्ता की पायल उसके आंगन में भी छमके..कौन नहीं चाहता। आखिर कब तक कोई रूठ कर बैठे। थकहार कर दामाद साहब ने रिश्ता तोड़ने की धमकी दे ही डाली। फिर शुरू हुआ असली खेल। सारा दोस्त..दुश्मन समाज आमने सामने आ खड़ा हुआ। होनहार दामाद को फिर से ब्याहने वाले भी जोर आजमाइश में जुट गए। हाथ छोड़ बस फूल थामने भर की देर…अपनी बारातियों की फौज लेकर दरवाजे पर पहुंचे नहीं कि शहनाई से गुंज उठती महफिल। काफी खींचा-तानी हुआ। गाली-गलौज से लेकर मान-मनौवल की लंबी पारी चली।
लेकिन बाहर…फूल वालों की सारी की सारी तैयारी धरी की धरी रह गई…जब दमदार तरीके से एंट्री हो गई दिल्ली वाली दादी की…सयानी बुआ और कुंवारे ताऊ की…राजस्थान की सत्ता की मांग उजड़ने से बच गई…दामाद जी मान गए..तनतनाए ससुर जी समझाए गए। ससुराल का सम्मान फिलहाल बच गया लगता है। बकायदा फिर से बारातियों की गिनती करवाई जा चुकी है। अब सबको इंतजार है तो बस इस बात का कि सत्ता सयानी दामाद के घर की रौनक कब तक..कितने दिनों तक बनाए रख पाती है। ससुर जी किस हद तक..कितने नरम पर पाते हैं..सत्ता सुख की साझेदारी को लेकर। ये तो आने वाले दिनों में ही पता चल पाएगा..इंतजार कीजिए तब तक। उधर से तो अभी तक यही समाचार मिल पा रहा है कि..धौलपुर वाली रानी बुआ ने पैग बढ़ा दिए हैं..।