मौत का इंतजार करता सिस्टम!
किसी की मौत होगी..तभी हादसा बड़ा होगा..तभी हंगामा होगा..शोर होगा तब जाकर सिस्टम की नींद खुलेगी. तभी जाकर कुछ काम होगा. देश की राजधानी है दिल्ली..ऐसा लगता है कि यहां के नेताओं और अधिकारियों ने शहर के इस गौरव को ही भुला दिया है. सड़क निर्माण हो..पुल निर्माण हो..नगर व्यवस्था से जुड़ा कोई भी काम हो..महीनों, सालों लग जाते हैं. राजधानी की व्यवस्था से जुड़े लोगों की सुस्ती हैरान करती है. दिल्ली वालों ने नाराज होकर सरकार तो बदल दी..लेकिन लगता नहीं कि व्यवस्था बदल रही है.
आंधी की मार से टूटे हुए जर्जर पुल से लटकता शख्स कोई भी हो सकता था. कोई भी दिल्ली का आम आदमी. इस इलाके में रहने वाला, इस इलाके से गुजरने वाला कोई भी..अमीर या गरीब, हिन्दू या मुसलमान..क्योंकि मुखर्जी नगर विस्तार के तहत आने वाला नेहरू विहार अपनी हर छोटी-बड़ी जरूरतो के लिए मुखर्जी नगर पर निर्भर है. किसी न किसी काम के लिए लोगों को इसी पुल से गुजरना होता है.
आप सोच रहे होंगे इसी पुल से क्यों? कम से कम आंधी-पानी के वक्त तो इस जर्जर पुल से गुजरने से परहेज करना चाहिए. यहीं पर बात व्यवस्था की आती है. पिछले करीब 6 महीने से इसी पुल से गुजरने के लिए स्थानीय लोग मजबूर हैं. क्योंकि एक दूसरा बड़ा पुल कई महीनों से बंद कर दिया गया है. इसलिए नहीं कि बड़े पुल पर कोई निर्माण हो रहा है..निर्माण साथ में एक और पुल का हो रहा है..वो भी बहुत ही धीमी रफ्तार में. ठेकेदार बताता है कि कभी पैसा रोक देता हैं..तो दिल्ली सरकार का फ्लड विभाग कभी नक्शा लटका देता है. यही तो सिस्टम की नासमझी और लापरवाही है. जब बड़े पुल पर कोई निर्माण नहीं हो रहा था..तो उसे जल्द से जल्द खोल देना चाहिए था. जब पता है कि काम में देरी हो रही है..पब्लिक परेशान हो रही है..तो अल्टरनेट व्यवस्था पर विचार करना चाहिए. जब आपने सभी पैदल चलने वालों, बाइक वालों..ठेला-ठेली वालों की आवाजाही छोटे पुल पर डायवर्ट कर दिया..तो कम से कम उसे दुरुस्त तो करवा देना चाहिए था. आज की तारीख में आप इतनी सी भी समझ की उम्मीद दिल्ली सरकार के अधिकारियों से नहीं कर सकते हैं. नेता तो अभी सत्ता में आए हैं..सिस्टम को समझ ही रहे हैं.
मुखर्जी नगर से नेहरू विहार को जोड़ने वाला छोटा पुल बुधवार को आई आंधी में टूटते-टूटते बचा. शाम के वक्त इस पर काफी भीड़ होती है. बड़ी संख्या में छात्र और स्थानीय निवासी इस पुल से आना जाना करते हैं. क्योंकि यही एक मात्रा रास्ता है. तेज आंधी में पुल के दोनों साइड लगी लोहे की जाली टूट गई. कई लोग इसकी चपेट में आए. बुरी तरह जख्मी हुए. नीचे नाले में गिरते-गिरते बचे. गनीमत रही कि पूल नहीं टूटा!