#BJP की चुनावी मशीनरी उलझी!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनावी मंच सजा है. मंच पर दिल्ली बीजेपी के बड़े-बड़े नेता बैठे हैं. मोदी जी अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं में ऊर्जा से भरने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं. लेकिन मंच पर बैठे नेताओं के चेहरे पर उलझन साफ झलकती है. फिर एक बार दुनिया की सबसे बड़ी पॉलिटिकल पार्टी दम लगा रही है. सामने फिर वही देश ही नहीं दुनिया की सबसे सफल पॉलिटिकल स्टार्टअप पार्टी दांव पर दांव चल रही है. ऐसा लग रहा है मानो चुनावी जंग के मैदान में रूस और यूक्रेन आमने-सामने आ गए हों. सच्चाई तो यही है, बीजेपी के पास केजरीवाल मॉडल ऑफ पॉलिटिक्स की कोई काट नहीं है. दिल्ली बीजेपी नेताओं के हाव-भाव बता रहे हैं, किसी के पास जीत का कोई सटीक फॉर्मूला है ही नहीं.
मंच से मोदी जी दिल्ली को राजधानी का गौरव हासिल करवाने की बात कर रहे हैं. लेकिन क्या दिल्ली वाले बिजली-पानी का ज्यादा बिल देने को तैयार होंगे?
मोदी जी दिल्ली को विश्व स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर देने की बात कर रहे हैं. लेकिन क्या दिल्ली वाले बेहतर स्कूली शिक्षा का सपना छोड़ने को तैयार होंगे क्या?
मोदी जी बेहद गरीब लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवा देने की बात कर रहे हैं. लेकिन मोहल्ला क्लिनिक और दूसरी स्वास्थ्य सेवाएं तो हर दिल्ली वाले के लिए है. ऐसे में कोई किसी गरीब के लिए अपनी सुविधाओं को छोड़ सकता है क्या?
अब तो उससे भी बड़े-बड़े लोकलुभावने वादे सामने आ गए हैं. महिलाओं को 2100 रुपये मिलेंगे, पंडितों और ग्रंथियों को दान-दक्षिणा के साथ सैलरी देने जा रही है दिल्ली सरकार. किस-किस को समझा पाएगी बीजेपी? बेहतर दिल्ली या बटुए में पैसा?
इस तरह के तमाम विरोधाभासी सवाल हैं जिसका जवाब फिलहाल किसी भी बीजेपी नेता के पास नहीं हैं. और जब तक इन सवालों के जवाब नहीं मिल जाते, तब तक दिल्ली की चुनावी जीत का कारगर दांव नहीं खेला जा सकता!