दिल्ली चुनाव में ‘मध्यम वर्ग – चैप्टर 3

Delhi Traffic after GRAP-4

सब कुछ जनता पर थोपने की प्रवृत्ति

दिल्ली की मौजूदा व्यवस्था पर गौर करें तो आप पाएंगे कि जनता पर नियम कानूनों का बोझ बढ़ता जा रहा है. आए दिन कोई न कोई नया फरमान आ ही जाता है. कानूनों के नियमन के मामले में सरकारी संस्थाएं ऐसे पेश आती हैं मानों जनता नकारा और नालायक है उसे सख्ती से ही संभाला जा सकता है. समस्या कोई भी हो, नए-नए नियम जनता पर थोप दिए जाते हैं. जनता समस्या को भूल..उन्हीं नियम-कानूनों मे उलझ जाती है. दिल्ली की ब्यूरोक्रेसी इस कला में महारत हासिल किए हुए है.

आप का प्रदूषण की समस्या को ही ले लीजिए. दिल्ली में केन्द्र सरकार के पर्यावरण विभाग का मुख्यालय है. केंद्रीय मंत्री बैठते हैं. कई सारे कर्मचारी और अधिकारी हैं. दिल्ली सरकार का अपना भरा-पूरा पर्यावरण महकमा है. लेकिन सारे के सारे लोग साल भर काम क्या करते हैं..कोई समझ ही नहीं पाता. बस जाड़े के शुरुआत में जैसे ही प्रदूषण बढ़ता है. विभाग अपने होने का अहसास कराता है. सारे के सारे एक सुर में पराली की बात करने लग जाते हैं, पटाखों पर शोर मचाने लग जाते हैं. हिन्दू प्रधान देश में हिन्दुओं के एक सबसे बड़े त्योहार दिवाली को बदनाम करके रख दिया है. जबकि सबको पता है पटाखों के बिना दिवाली मनाने के लिए बच्चों को मनाना सबसे मुश्किल है. कोई नहीं पूछ रहा है कि सरकारों ने पटाखों या पराली के लिए वैज्ञानिकों से समाधान क्यों नहीं लिया? पराली के तो कई सारे समाधान हैं, फिर उन्हें लागू क्यों नहीं किया गया? अधिकारियों ने पहले से प्रदूषण पर गंभीरता से काम क्यों नहीं किया? दिल्ली से होकर बड़ी संख्या में गुजरने वाली गाड़ियों को तो आज तक नियंत्रित किया ही नहीं जा सका.

और तो और चोर-लूटेरों की तरह से आपकी पुरानी गाड़ियों को उठाकर, छीन कर ले जाकर कबाड़ियों के हाथों बेच दिया. दिल्ली परिवहन के सरकारी अधिकारी इस मामले में वसूली एजेंटों से कम नहीं नजर आते हैं.

सरकारों को खुद कुछ नहीं करना बस जनता के नाम से फरमान जारी कर दिया..दिवाली मत मनाओं, अपनी गाड़ी लेकर नहीं निकलो, बच्चों को स्कूल नहीं भेजो, हो सके तो घर से ही ऑफिस के काम निपटाओ.

और सुन लीजिए..पेट्रोल पंप तक पर कैमरे लगा दिए..आपने प्रदूषण चेक करवाने में जरा सी देरी की नहीं कि फोटो खींच कर दस हजार का चालान घर भेज देते हैं. सोचिए जनता को परेशान करने में कितना दिमाग चलता है अधिकारियों का..जरा से उनसे उनके काम के बारे में पूछ लीजिए..आपको  अपमानित करने लग जाएंगे. आपको फंसाने के तिकड़म लगाने लग जाएंगे. ये क्या है, ये जनता पर आपातकाल थोपने जैसा नहीं है तो और क्या है? जिसके पीछे की वजह प्रशासनिक अधिकारियों, नेताओं का नकारापन है..जो जनता को समाधान देने की जगह सख्ती थोपने की धारणा से काम करते हैं. निशाने पर सबसे ज्यादा मध्यम वर्ग आता है. क्योंकि नीचे वालों को परवाह नहीं, उपर वालों को फर्क नहीं पड़ता !