कानून व्यवस्था पर कड़ा संदेश क्यों नहीं?
दिल्ली की बिगड़ती कानून-व्यवस्था मध्यम वर्ग की सबसे बड़ी चिंता बनती जा रही है. बहुत ज्यादा नहीं..15-20 साल पहले आप कल्पना नहीं कर सकते थे कि यहां मुंबई वाले हालात बन जाएंगे. गुंडे और गैंगस्टर यहां के कारोबारियों से हफ्ता वसूली करेंगे. पहले थोड़ी बहुत बदमाशी दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में हुआ करती थी. लेकिन आज तो हद हो गई है..बदमाश खुलेआम फायरिंग कर रहे हैं. पैसे मांग रहे हैं. पैसे नहीं देने पर जान से मारने की धमकी दे रहे हैं. अगर कोई पैतरेबाजी कर रहा है तो मार भी दे रहे हैं.
दिल्ली में बदमाशी कर रहे गुंडों की प्रोफाइल पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि ज्यादातर बदमाश हरियाणा या फिर यूपी के हैं. इनके लिए दिल्ली का कारोबारी सॉफ्ट टारगेट है, क्योंकि उसने पहले कभी इस तरह की बदमाशी देखी ही नहीं. ये छोटे बदमाश यहां जरा सी फायरिंग करके खुद को बड़ा साबित करने में सफल हो जाते हैं. वहीं दिल्ली पुलिस के बारे में आरोप तो यही है कि ये पूरी तरह से पॉलिटिकल हो चुकी है. रिस्पॉन्स टाइम काफी बढ़ गया है. किसी भी एक्शन के पॉलिटिकल रिएक्शन पर पुलिस के अधिकारी काफी मंथन कर रहे होते हैं. जिसमें काफी टाइम लगता है. तय है इसका फायदा आपराधिक प्रवृत्ति के लोगो तो उठाएंगे हीं.
दिल्ली के बिगड़ते कानून-व्यवस्था पर लोकल नेता भी ज्यादा मुखर नहीं हैं. हालात ऐसे हैं कि नेता अपने पाप छुपाए कि पब्लिक के मुद्दे पर पुलिस से पंगा लें.
वहीं मध्यम वर्ग मौन है. ऐसा लगता है मानो अपनी बारी का इंतजार कर रहा है. उसके साथ हुआ है मेरे साथ ऐसा नहीं हो सकता..बस यही मान कर चल रहा है. या फिर उसकी जो थोड़ी बहुत बातचीत पुलिस वालों या कुछ बदमाश टाइप के लोगों से है, उसी भरोसे दिल को समझा रहा है. बढ़ते अपराध को लेकर नेताओं की बयानबाजी तो वो सुन रहा है लेकिन ये नहीं सोच पा रहा है कि कोई इस मुद्दे को लेकर दिल्ली पुलिस के खिलाफ मोर्चा क्यों नहीं खोल रहा है. दूसरे सभी मामलों में मुखर एलजी इस मामले में चुप्पी क्यों साधे रहता है. कानून व्यवस्था के नाम पर गवर्नर हाउस का घेराव क्यों नहीं किया जाता. जबकि होना तो ये चाहिए..मध्यम वर्ग इस मसले पर ये साफ संदेश दे कि जब तक दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना नहीं बदले जाते..दिल्ली के बीजेपी समर्थक भी बीजेपी को वोट नहीं देंगे..!