रोहित सरदाना का चला जाना निसंदेह दुख का विषय है। देश के मीडिया जगत में शोक की लहर है। मेरी पहचान में कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने उनके साथ काम किया था। सब ने अपनी संवेदनाएं व्यक्त की। लेकिन कुछ अभिव्यक्ति पर खासा विवाद देखने को मिला। जिसमें सबसे मुख्य रही मुकेश जी की प्रतिक्रिया। उन्होंने बताया कि उन्होंने रोहित सरदाना को सहारा एमपी-सीजी चैनल में एंकरिंग का मौका दिया। उनके अच्छे बात व्यवहार के बारे में भी बताया। लेकिन उन्होंने सरदाना जी के उस पहचान पर हैरानी जाहिर की जिस पहचान के साथ वे पिछले कुछ सालों में उभरे। देश में हिन्दुत्व की मुखर आवाज बन कर उभरने को लेकर उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का पहले कभी भी अहसास नहीं हुआ। इस बात को जब मैंने पढ़ा तो मुझे कुछ भी अतिरेक सा नहीं लगा, लेकिन जब बाद में कुछ मित्रों का पोस्ट पढ़ा जिन्होंने मुकेश जी की इसी बात को लेकर जबरदस्त आपत्ति व्यक्त की हुई थी। बहुत ही बुरे लहजे का इस्तेमाल कर रहे हैं लोग। ये मुझे अच्छा नहीं लगा।
वैचारिक रूप से देखा जाए तो ये तो बहुत ही सामान्य सी प्रतिक्रिया है कि जब आप किसी व्यक्तित्व का जिक्र करते हैं तो आप उसकी उस बात को जरूर बताना चाहते हैं जिसका आभास आप उनके साथ रहते कभी महसूस कर पाए। आप उसे बुरा ही क्यों मान कर चल रहे हैं। मुकेश जी के साथ मैने लंबे समय तक काम किया है। वे विशेषकर टीवी के आम संपादकों से बहुत अलग हैं। अपनी सोच के अनुसार काम करते हैं। सबसे बड़ी बात है कि किसी के बताने पर नहीं जाते हैं। खुद से किसी को भी जज करते हैं। उसके लिए समय लेते हैं। हां, अच्छी या बुरी, एक बार उनकी धारणा बन गई तो वो जल्दी बदलती नहीं है। शायद यही बात लोगों को ज्यादा नागवार गुजरती है। हिन्दी न्यूज चैनल इंडस्ट्री पूरी तरह से पहचान आधारित है। आपको कितना काम आता है ये इस पर निर्भर करता है कि आप के बारे में कितने लोग अच्छा बोल रहे हैं। आपके ज्ञान पर नहीं, पीआर पर ही आपके काम को पहचान मिलती है, और उसी आधार पर आप पैसे पाते हैं।
इस भेड़ चाल में मुकेश जी बिल्कुल अलग हैं। उनके इस गुण का फायदा मेरे जैसे लोगों को बहुत मिला जिनकी इंडस्ट्री में तगड़ी पहचान नहीं रही। शायद इसी में से एक रोहित सरादाना भी थे। क्योंकि जिस समय की बात मुकेश जी बता रहे हैं, उस समय में स्क्रीन पर आ जाना, वो भी हरियाणा के कुरूक्षेत्र के एक सामान्य से लड़के का, बहुत बड़ी बात है, इस बात को भी समझना होगा। मुकेश जी ने ही सहारा एमपी-सीजी चैनल लॉन्च करवाया था। जाहिर है कमान उनके हाथ में ही होगी तभी सरदाना जी को उनके टैलेंट के दम पर ये मौका मिल सका होगा। नहीं तो यूपी बिहार के सामंती सोच वाले संपादकों और सीनियरों के रहते ये बहुत ही मुश्किल काम है, इसे भी समझना होगा।
ऐसे में मुकेश जी को पूरा हक है कि वो उस आदमी के बारे में अपनी निजी सोच साझा करें जो उनके दिल में है, जो उनका ऑबजर्बेशन रहा। ऐसा इसलिए भी मैं कह रहा हूं क्योंकि उस दौर में एंकर्स को इतनी छूट नहीं हुआ करती थी। उसे एक निर्धारित संपादकीय लाइन पर ही चलना होता था। जाहिर है सहारा के उस चैनल की लाइन सेक्यूलर ही रही होगी और उसकी कमान मुकेश जी के हाथों में ही रही होगी।
कुल मिलाकर मेरा कहना यही है कि किसी भी फील्ड में कोई किसी को बड़ा मौका देता है, विशेषकर बौद्धिक स्तर का कोई बड़ा काम, अपनी समझ के अनुसार, उसका उस आदमी के जीवन में बड़ा योगदान होता है। उस एक खास मौके को देने वाला व्यक्ति हमेशा उसके लिए आदरणीय होता है। जरा सोचें तो हम सब लोग, जो भी अपनी काबिलियत के दम पर कुछ बड़ा, कुछ बेहतर करने का सपना ले कर जी रहे हैं, इस बात को आसानी से समझ सकते हैं। ऐसे में मुकेश जी पर अभद्र टिप्पणी करने वाले लोग कहीं सरदाना जी की आत्मा को आहत करने का काम तो नहीं कर रहे हैं..?