कोरोना महामारी है, इसमें किसी को कोई संशय कम से कम से अब तो नहीं होना चाहिए। दिल्ली की सड़कों पर, विशेषकर मुहल्लों और सोसाइटीज के अंदर जैसा सन्नाटा इस बार के लगातार बढ़ते लॉकडाउन में देखने को मिल रहा है वैसा पिछले बार बिल्कुल नहीं था। पिछले पच्चीस दिनों में दिल्ली ने जो देखा, झेला शायद सबसे बुरे दिन रहे। लगभग हर किसी ने किसी न किसी परिजन, दोस्त या जानकार को खोया। बस अभी-अभी हालात बस थोड़े से संभले नहीं, संभलते दिख रहे हैं। लेकिन जिस तरह की राजनीति पिछले दो दिनों में दिखने लगी, निराश करने वाली है।
जबकि सच्चाई यही है कि बस दस दिन पहले तक सबके सब नेताओं के हाथ पैर फूले थे। बड़ी मुश्किल से ही कोई किसी की बस थोड़ी बहुत मदद कर पा रहा था, चाहे वो ऑक्सीजन सिलेंडर हो या अस्पताल में बेड दिलवाना। दिल्ली की स्थिति को देखते हुए बेबाकी से कहा जा सकता है किसी भी दल का चाहे हो राष्ट्रीय स्तर का नेता हो या राज्य स्तर का सबकी स्थिति बराबर ही थी। अभी सोचना तो सारे राजनेताओं को ये चाहिए कि जब राजधानी में कोरोना की दूसरी लहर जाते-जाते इतना बुरा हाल कर गई तो गांवों में, दिल्ली के आस पास के इलाकों में कितना कोहराम मचा सकती है। जैसी कि खबरें आ भी रही हैं कि दिल्ली एनसीआर के गांव के हालात बिगड़ते जा रहे हैं। इसका असर फिर दिल्ली पर नहीं पड़ेगा, ये सोचना नासमझी ही कही जाएगी। बावजूद इसके किसी का भी ध्यान इस ओर जाता नहीं दिखता।
यहां राजनीति हो रही वैक्सीन पर, वैक्सीन की उपलब्धता पर। जबकि ये पूरा मामला ही तकनीकी सामर्थ्य से जुड़ा है। केंद्र और राज्य की सरकारें वैक्सीन की उपलब्धता को लेकर चिंतित दिखें, बात समझ में आती है। लेकिन ये क्या बात हुई जो वैक्सीन छोटे और जरूरतमंद देशों को मदद के तौर तब दी गईं जब यहां वैक्सीन को लेकर बिल्कुल भी सकारात्मक माहौल नहीं था। वैक्सीनेशन की रफ्तार काफी धीमी थी। विपक्ष के कुछ नेता तो बकायदा लोगों को वैक्सीन नहीं लेने की सलाह दे रहे थे। वैक्सीन सेंटर खाली रहते थे। अब कोरोना की दूसरी लहर आएगी और इसका ऐसा स्वरूप होगा इसका आकलन तो किसी को भी नहीं था। न ही केंद्र सरकार को, न ही राज्य सरकारों को और ना ही आम जनता को। इस बात को मानते हुए, आगे की तैयारी में जुटे रहने की बजाए, दिल्ली की राजनीति में वैक्सीन को लेकर सियासी दंगल चालू हो गया। रात के अंधेरे में पोस्टर लगवाए जा रहे हैं। जो देश आज दुनिया के छोटे छोटे देशों से मदद ले रहा है, उनके एहसानों तले दबा जा रहा है। वहां के नेता, देश ने जो मदद छोटे देशों को दी उस पर सवाल उठा रहे हैं। हद तो दिल्ली में देखने को मिल रही है। निगम स्तर के नेता प्रधानमंत्री पर सीधा हमला करने से परहेज नहीं कर रहे। आम आदमी पार्टी के निगम के प्रभारी नेता दुर्गेश पाठक बकायदा आप के दफ्तर में प्रेस कॉन्फेंस कर के देश के प्रधानमंत्री के निर्णय पर सवाल उठा रहे हैं। देश की विदेश नीति पर टिप्पणी कर रहे हैं। पूछ रहे हैं कि प्रधानमंत्री ने वैक्सीन क्यों विदेश भेज दी?
क्या दिल्ली के लोग नहीं समझ रहे कि विदेशों से जहाज भर-भर कर मदद आ रही है, जिससे उनकी जान बच रही है। पूरे देश को राहत देने वाली है, दुनिया भर के देशों से आ रही ये मदद। भारत के तब के प्रयास पर सवाल उठाना, अब के वैश्विक समाज के इस आचरण पर सवाल उठाने जैसा ही है।
विश्व की सियासत में आज की तारीख में सबसे बड़ी खींचतान वैक्सीन की उपलब्धता को लेकर है। बड़ी समस्या छोटे देशों को वैक्सीन की उपलब्धता को लेकर है। जितने भी बड़े ताकतवर देश हैं वे अपनी आबादी से अधिक वैक्सीन पर कब्जा जमाए बैठे हैं। जबकि सच्चाई यही है कि कोरोना वायरस अगर दुनिया के किसी भी देश में नुकसान पहुंचाता है तो उसके बुरे प्रभाव से दुनिया की अर्थव्यवस्था को नहीं बचाया जा सकता। भारत शुरू से ही चाहे वो छोटे देशों को वैक्सीन उपलब्ध करवाने का मसला रहा हो या फिर वैक्सीन को पेटेंट मुक्त करवाने का मामला, बढ़-चढ़ कर काम कर रहा है। अब तो अमेरिका भी भारत की बातों से सहमत होते हुए वैक्सीन को पेटेंट मुक्त करवाने की बात कहने लगा है। ये छोटी बात नहीं।
अब ऐसे बड़े और गंभीर में मसले पर दिल्ली के नए नवेले छोटे-छोटे नेता बिना मास्क के प्रेस कॉन्फ्रेंस करें और सीधे देश की विदेश नीति पर सवाल उठाने लगे तो ये अच्छा नहीं लगता। वो भी उस वक्त जब दिल्ली सांस थामें खड़ी है कि जल्दी कोरोना की इस दूसरी लहर का दंश कम हो और तीसरी लहर ना जाने कब दस्तक दे जाए !
अब ऐसे बड़े और गंभीर में मसले पर दिल्ली के नए नवेले छोटे-छोटे नेता बिना मास्क के लोगों के सामने आएं, प्रेस कॉन्फ्रेंस करें,दिल्ली की कमी या अपने काम के बारे में बात करने की बजाए सीधे देश की विदेश नीति पर सवाल उठाने लगे तो ये अच्छा नहीं लगता। वो भी उस वक्त जब दिल्ली सांस थामें खड़ी है कि जल्दी ये दूसरी लहर का दंश कम हो और तीसरी लहर ना जाने कब दस्तक दे जाए !