हैदराबाद के निगम चुनाव पर सियासी चकल्लस जम कर जारी है। दिल्ली का हर छोटा से छोटा नेता बड़ी बातें कर रहा है। देश के एक सबसे बड़े नेता को बड़ा सियासी ज्ञान समझा रहा है। वजह वही..हैदराबाद में गृहमंत्री अमित शाह का रोडशो। जिसे दिल्ली के किसान आंदोलन से जोड़कर देखा जा रहा है। सबकी अपनी सोच, अपनी दलील। हालांकि अमित शाह ने अपनी तरफ से इतना ऐहतियात जरूर बरता..किसानों को बातचीत के लिए आंमत्रित करने का संदेश जारी करके ही हैदराबाद रवाना हुए। लेकिन उन्हें भी तो नहीं पता था कि रोड-शो हिट हो जाएगा। और विपक्ष इस तरह पीछे पड़ जाएगा। खैर, किसान के मसले पर बात तो होनी ही चाहिए। इस पर सवाल जरूर उठाया जाना चाहिए कि केंद्र सरकार की तरफ से किसानों से बात करने में देरी क्यों की जा रही है?
लेकिन निगम चुनाव की अहमियत को कम बताना और वो भी आम आदमी पार्टी की तरफ से दिल्ली वालों को थोड़ा असहज कर गया। दिल्ली की सत्ता में फिर बैठने के साथ ही आम आदमी पार्टी निगम चुनाव में जी जान से जुट गई। चुनाव में साल से अधिक का समय होने के बावजूद पार्टी जिस गंभीरता से तैयारी कर रही है, अच्छे परिणाम आने की संभावना भी बनती है। दिक्कत इससे बिल्कुल नहीं, लेकिन सियासी हित साधने के लिए जिस तरह से दिल्ली की जनता को परेशान किया जाता रहा है, उस पर तो सवाल बनते ही हैं..खास कर इस मौके पर जब आप दूसरों को जनहित के लिए निगम चुनाव को नजरअंदाज करने का ज्ञान दे रहे हैं।
दिल्ली देखती रही है कि किस तरह से कोरोना महामारी के महासंकट के दौर में भी डॉक्टर व अन्य स्वास्थ्यकर्मी, सफाई कर्मी और शिक्षक सब बारी बारी से सैलरी के लिए परेशान किए जाते रहे हैं। उन्हें अपनी जान जोखिम में डाल कर धरना प्रदर्शन करना पर रहा है। सब हो रहा है और उसके पीछे की सबसे बड़ी वजह निगम चुनाव ही है, इतनी समझ तो सब को है।
सबसे बड़ी परेशानी तिमारपुर के नेहरू विहार के लोग झेल रहे हैं। महज एक से डेढ़ किलोमीटर की सड़क नहीं बन रही है। बुरा हाल है इस महा प्रदूषण के दौर में सड़क से उड़ने वाली धूल सबकी परेशानी बढ़ा रही है। उसी सड़क पर बड़ा बस स्टैंड भी है। थोड़ी थोड़ी देर पर गुजरने वाली बसें पूरे वातावरण को धूल के गुबार से भर देती हैं। सड़क के किनारे जिनकी दूकानें हैं, मकान हैं उनका तो बुरा हाल है ही, इलाके की मुख्य सड़क होने की वजह से इसके प्रकोप से कोई भी स्थानीय निवासी बच नहीं सकता। प्रदूषण की दोहरी मार झेल रहे हैं दिल्ली के इस इलाके में रहने वाले लोग, जहां के विधायक हैं दिलीप पांडे।
बताया जाता है इस परेशानी की सबसे बड़ी वजह है कि यह सड़क निगम के तहत आती है। निगम के आर्थिक दिवालिएपन की कहानी कभी खत्म ही नहीं होती। समाधान के लिए इलाके के लोग विधायक और सांसद के आगे-पीछे सालों से निरंतर भाग ही रहे हैं। आम आदमी पार्टी के पिछले विधायक पंकज पुष्कर ने इस समस्या का समाधान आसानी से निकालने की बात कहते रहे, लेकिन वो इस आसान काम को कभी करवा नहीं पाए और जनता के साथ साथ अपनी पार्टी का भरोसा गंवाकर चले गए। फिर आए दिलीप पांडे। आम आदमी पार्टी के कद्दावर नेता। काफी उम्मीदें जग गई इलाके के लोगों की। लेकिन अब तक निराश ही हाथ लगी। पता यही चला कि सियासी पेच फंस गया है, निगम चुनाव का मोह बीच में आ गया।
चुनाव छोटा है या बड़ा यह मायने नहीं रखता, उसमें जीत का लालच नेताओं की चमड़ी मोटी कर देता है इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
बड़ी समस्या की जड़, इस छोटी सी सड़क के दोनों किनारों की सड़कें बिल्कुल नई कर दी गई हैं। एक तरफ मुखर्जी नगर की मुख्य सड़क है, दूसरी तरफ तिमारपुर की मुख्य सड़क। दोनों को ही बहुत बढ़िया तरीके से संवारा जा चुका है। लेकिन इन दोनों को जोड़ने वाले करीब आधे किलोमीटर की बाईपास सड़क को छोड़ दिया गया। स्थानीय निवासियों को इससे होने वाली परेशानी को नजरअंदाज किया गया।
आम आदमी पार्टी लाख कहे कि वो सियासत नहीं करती, लेकिन इस सड़क को देख कर पीछे की सियासत साफ झलकती है।
और तो और, इस तरह से पार्टी देश के युवाओं को भी नकारने का काम कर रही है। इलाके में हजारों की संख्या में देश के कोने कोने से छात्र आकर रहते हैं। पढ़ाई करते हैं, नौकरी की तैयारी करते हैं। यहां कि आबादी में बड़ी संख्या इन छात्रों की ही है। जाहिर है कि वे यहां के वोटर नहीं, और यही नेताओं की उदासीनता की एक बड़ी वजह भी दिखती है। यहां रहने वाला देश का युवा पीड़ित है। दिनभर धूल और धूएं को झेलने के लिए बाध्य है। मेट्रो स्टेशन तक जाने के लिए बैटरी रिक्शा पर बैठता है, तो सड़क की खराब हालत की वजह से रिक्शा पलट जाता है। कई हादसे हो चुके हैं। इस गंभीर खतरे के साथ जीने के लिए भी सभी बाध्य हैं। लेकिन नेताओं को चुनाव की पड़ी है।
मतलब आम आदमी पार्टी के स्थानीय विधायक दिलीप पांडे ने युवाओं की पीड़ा और निगम चुनाव में से, निगम चुनाव को चुन रखा है। विधायक का यह गैर जिम्मेदार रवैया भी भारतीय इतिहास में न सही, इन युवाओं के मानस पटल में जरूर दर्ज होगा। भविष्य में कहीं भी किसी भी भूमिका में ये यहां से निकल कर जाएंगे तो याद रखेंगे कि क्रांति की बात करने वाली पार्टी की इस जमीनी हकीकत को, किस तरह आप ने सियासत को जनता की पीड़ा पर हावी होने दिया।
युवा जरूर छला महसूस करेंगे, क्योंकि जिस आंदोलन की कोख से आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ, उसे उन्होंने ने भी जंतर-मंतर जा जा कर अपने खून पसीने से सींचा था। होना तो यही चाहिए कि विधायक महोदय युवाओं और स्थानीय नागरिकों की पीड़ा को समझते हुए बिना शर्त, बिना आगे-पीछे की सोचे, बिना निगम चुनाव की परवाह किए फौरन इस सड़क का निर्माण करवाएं।