उसे पता तो है कि उसकी पूछ तभी है जब सूबे की सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था में जरा सी भी जान हो..जहां जान ही नहीं बची..वहां जलवा कैसे दिखेगा आपका..न सड़कों पर भागती-दौड़ती एंबुलेंस..न चमचमाती पीपीई किट..रंग-बिरंगे फेस मास्क..और तो और बिल्कुल स्क्रैच फ्री फेस गार्ड..अब ये सब जलवे वहां कहां..। जाने से पहले उसे दिल्ली के अस्पतालों के बाहर लगी लंबी लाइनों में खड़े मरीजों से ही पूछ लेना था..वहीं कन्फर्म हो जाता कि वहां जाना बेकार है। वहां तो वैसे ही कभी बाढ़..तो कभी बिजली बेवजह लोगों की जान लेती रहती है। आप इतनी बड़ी बीमारी..अमेरिका..रूस..ब्रिटेन जैसे बड़े-बड़े देश आपकी खौफ में सूखे पत्ते की तरह कांप रहे हैं..आपको बिहार जाने की क्या जरूरत आन पड़ी। वहां तो छोटी छोटी बीमारियां शानदार काम कर रही हैं। प्राइवेट हेल्थ प्रैक्टिस करने वाले हैं न वहां..जलवा और जान लेने में जबरदस्त बैलेंस बना कर चलते हैं..जिस रफ्तार से मरीज की जान निकलती है..ठीक उसी रफ्तार से उसके बैंक एकाउंट से पैसे निकलते रहते हैं..पैसा खत्म..मरीज खत्म..और जलवा बरकरार..। इन बाजीगरों से सांठ-गांठ करके जाते तो आपकी ख्याति और तेजी से फैलती और बिहार सरकार की भी इज्जत रह जाती। बीजेपी और जदयू वालों को चुनाव के टाइम इतनी फजीहत नहीं झेलनी पड़ती। लेकिन अफसोस ये तो पहले से ही फरार हैं क्योंकि इन्हें अपनी औकात अच्छे से पता है..इसलिए चांस ही नहीं लेना।गलती बिहार सरकार की नहीं लगती है..उन्हें इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि ऐसी भी कभी कोई बीमारी आएगी जिसके इलाज का जिम्मा सिर्फ सरकारी स्वास्थ्य सेवा के सिर होगा..नहीं तो वे अपनी चीज किसी माफिया के पास गिरवी क्यों रखते भला..अब माफिया फरार है..और मुहाने पर चुनाव है..।गलती गरीब..मजदूरों की तो है ही..आपको नहीं पता था कि आप पेट दर्द ठीक करवाने तो दिल्ली भागते हो..फिर कोरोना महामारी आई तो बिहार भागे। आप से बेहतर कौन जानता है कि इतने सालों में आपने कब अपना वोट शहर..गांव के अस्पताल..या फिर क्लिनिक के लिए दिया।बिहार के लोगों के लिए सच बात तो यही है कि..जात और जमात के नाम पर अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का व्यापार करने वालों को सरकारी सेवा सुख की कामना करने का कोई अधिकार ही नहीं।