आदेश ‘निर्देश’ है या ‘अनुरोध’..दरअसल इसी में उलझा है राजस्थान का सियासी रण..सुप्रीम कोर्ट में सिब्बल साहब कह रहे थे कि राजस्थान हाई कोर्ट ने विधान सभा अध्यक्ष की नोटिस पर जो स्टे दिया है उसमें से ‘निर्देश’ शब्द हटा दिया जाए…सुप्रीम कोर्ट ने समझाया कि हाईकोर्ट के आदेश को सम्मान के साथ ‘अनुरोध’ मानने में क्या दिक्कत है..कल तक इंतजार कर लीजिए..आप ‘निर्देश’ शब्द पर क्यों अटके हैं..?
इसी के साथ समझ में आता है राजस्थान के सियासी रण का सारा मर्म..अब तक जो हुआ..मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जो कुछ शासनादेश में ‘अनुरोध’ सचिन पायलट से करते रहे..सचिन उसे ‘निर्देश’ मान कर चिढ़ते रहे..वहीं..पायलट जो भी आदेश के लिफाफे में ‘निर्देश’ अपनी सरकार को भेजते रहे..गहलोत उसे ‘अनुरोध’ बता कर टालते रहे..हद तो तब हो गई जब..पायलट ने पार्टी हाई कमान को गहलोत को मुख्यमंत्री के पद से हटाने का ‘अनुरोध’ किया..लेकिन बात पार्टी हाई कमान को हर्ट कर बैठी..शीर्ष नेतृत्व को ‘निर्देश’ कैसे…मामले को बिना सुने-समझे सिरे से ही खारिज कर दिया..बताइए जरा ऐसे में मामला सुलझे तो सुलझे कैसे..ऐंठन है कि किसी की जाती नहीं…जबकि पता सबको है कि..रस्सी सबकी जल चुकी है..जहां जिसकी बची है वहां बीजेपी मशाल लिए खड़ी है..इंतजार ही करना होगा..सियासी उड़ान पर विराम कब लगता है..प्लेन का तेल कब खत्म होता है…पक्का है कि ‘पायलट’ को भी नहीं पता है..।