दिल्ली के उत्तरी सिरे पर यमुना के किनारे स्थित जगतपुर गांव सही मायनों में भारत की साझी संस्कृति की मिसाल है। महज 16 हिन्दु परिवार और 6-7 के करीब मुस्लिम परिवार साथ साथ यमुना नदी के और करीब तलहटी में पौराणिक वजीराबाद के किले के करीब बसा करता था। आज जहां वजीराबाद की ऐतिहासिक मस्जिद है, उसी के आस पास। वजीराबाद किले के अवशेष अब नही बचे हैं, जो कभी मौजूदा जलबोर्ड कॉलोनी के पास यमुना के किनारे हुआ करता था। वक्त के साथ यमुना के घटते बढ़ते जल स्तर ने उन्हें इस तरफ धकेल दिया, जहां आज ये गांव बसा है। यमुना की लहरों के थपेड़ों की वजह से वे बेशक अपनी जगह से दूर जा रहे थे लेकिन इस वजह से ही इनके बीच की दूरी खत्म होती जा रही थी। मतलब एक दुसरे के बेहद करीब आ गए। इस बात का एहसास तब हुआ जब देश विभाजन के समय यहां के मुस्लिम परिवार पाकिस्तान की तरफ कूच कर गए। यहां का हिन्दू समाज बैचेन हो गया। और लोग बताते हैं कि हिन्दू यहां से गए मुसलमान परिवारों को पाकिस्तान के लाहौर कैम्प से वापस हिन्दुस्तान खींच लाए, आपसी सौहार्द के साथ हमेशा साथ रहने के वादे के साथ। और उस बुरी परिस्थिति में एक ढ़ाल की तरह हिन्दू परिवार खड़े रहे। दोनों समुदायों का आपसी प्यार आज भी ठीक वैसे ही कायम है। कोई भी मसला आपस में मिल बैठ कर सुलझाते हैं। एक दूसरे के पर्व त्यौहार साथ मिलकर मनाते हैं। गांव के दोनों समुदायों का एक परिवार की तरह का आपसी व्यवहार आज एक मिसाल है।
हमारे गांव में हिन्दू मुस्लिम का फर्क कभी भी महसूस नही किया गया। आपसी रिश्तों की एक ऐतिहासिक मिसाल कायम की है हमारे गांव ने। पाकिस्तान गए मुस्लिम भाईयों को लौटा कर हमारे पूर्वजों ने प्यार की जिस नींव को रखा है, उसे सींचना हम अपना फर्ज मानते हैं।
गांव से जुड़ा कोई भी मसला हो हम सारे फैसले मिलजुल कर लेते हैं। पर्व त्योहारों में आपसी सौहार्द खुब देखने को मिलता है। रोजे चल रहे होते हैं तो हमारे हिन्दू मित्र बड़े श्रद्धा भाव से रोजा इफ्तार करवाते हैं।
हाजी जहीर अहमद, जगतपुर गांव
मेरी याद में कोई भी ऐसा वाक्या नही जब हमारे गांव में किसी तरह का मतभेद पनपा हो। आज यहां पूरे गांव में सौ के करीब मुस्लिम परिवार रहते हैं। सभी मिलजुल कर आपसी भाईचारे के साथ रहते हैं। शायद इसकी वजह सन सैंतालिस का वो मधुर अनुभव है, जिसकी मिठास आज भी कायम है।