क्यों हार रहा भारत ?
दो बातें हैं दुनिया और भारत से जुड़ी जिस पर मंथन चल रहा है, जांच जारी है। सोचने वाली बात है कि अगर ये बातें सही साबित हो जाए तो क्या होगा..कितना बदल जाएगा विश्व और कितनी बदल जाएगी देश की सियासत, कितनी फजीहत होगी हमारे देश के उन नेताओं की जो उसी देश विरोधी एजेंडे का जाने अनजाने में हिस्सा बनते जा रहे हैं।
पहली तो आप जानते ही हैं..कोरोना की उत्पत्ति से जुड़ा है मामला। इस वक्त तकरीबन सारी दुनिया इस बात को मानने लगी है कि कोरोना की उत्पत्ति चीन के वुहान शहर के वारयोलॉजी इंस्टीट्यूट से हुई है। अभी तक कोई ठोस आधार नहीं है। इसीलिए सभी की आवाज धीमी है। लेकिन अमेरिका की खुफिया एजेंसियों को राष्ट्रपति बाइडन की तरफ से 90 दिनों का लक्ष्य दिया गया है। जिसमें तीन दिन बीत गए हैं। एजेंसियों को कोरोना के चाइना कनेक्शन का पता लगाना है। अमेरिका के अखबारों में लगातार कुछ न कुछ छप ही रहा है जो साबित करते हैं कि चीन ही इस महामारी के लिए जिम्मेदार है। इसमें सबसे बड़ा प्रमाण वहां की मीडिया सामने लेकर आई है कि चीन के वुहान लैब के तीन वैज्ञानिक नवंबर 2019 में बीमार पड़े थे जिनमें वही लक्षण थे जो कोरोना वायरस में अब देखे जा रहे हैं। इस बात को बकायदा चीन ने छिपाया इस बात के आधिकारिक प्रमाण उपलब्ध हैं। चीन साल 2015 से ही जैविक हथियार तैयार करने की कोशिश में जुटा हुआ था इस के भी ठोस प्रमाण मिल रहे हैं।
उधर WHO की भूमिका भी संदेह के दायरे में है। एक तरफ वो कहता है कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति चमगादड़ से हो सकती है। लेकिन चीन की भूमिका को लेकर गोल मोल जवाब देता है। चीन ने उसके जांच दल को पूरी छूट के साथ जांच नहीं करने दिया, लेकिन फिर भी उसके साथ खड़ा दिखता है।
दुनिया के कई देश WHO की जांच रिपोर्ट को खारिज कर रहे हैं। अब तो भारत सरकार ने भी इस मसले पर अपना पक्ष सामने रख दिया है कि WHO को आगे और जांच करने की आवश्यकता है।
कुल मिलाकर कहा जाए कि सारी दुनिया को लगता है कि चीन ही कोरोना की उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार है। सभी चाहते हैं कि इसका सच जल्द सामने आए।
अगर वैश्विक स्तर पर ऐसी स्थिति बन रही है तो क्यों ना हल्के से ही सही, इस दिशा में सोच कर चला जाए कि हम कोरोना महामारी नहीं बल्कि विश्व युद्ध का सामना कर रहे हैं। जाहिर सी बात है इसके साथ ही हमारा सारा नजरिया बदल जाएगा, देश को बचाने का विचार सर्वोपरि हो जाएगा। जो कि समय की मांग भी है। इस महामारी ने जब अमेरिका जैसे सुपरपावर की हालत खराब कर दी है। हमारे लिए तो और भी मुश्किल है इसके दुष्प्रभावों का सामना करना। स्वास्थ्य की चुनौती के साथ साथ अर्थव्यवस्था की स्थिति भी बेहद बिगड़ती जा रही है। युद्ध वाली स्थिति की तरह सारे देश को एकजुट होना होगा। सियासत को विराम देना होगा। संयम और सूझबूझ के साथ इस मुश्किल हालात का सामना करना होगा।
लेकिन ऐसा बिल्कुल भी हो नहीं रहा है। इस महामारी के दौर में जब देश की आम जनता अपनों को खोने के गम से उबरने में लगी है, एक अनिश्चितता का दौर है। कोई नहीं जानता, वायरस का अगला शिकार कौन होगा? क्या गरीब, क्या अमीर सारे के सारे व्यवस्था के सामने एकदम से लाचार खड़े नजर आने लगते हैं।
ऐसे मुश्किल हालात में निराशा और बढ़ जाती है जब राजनेता आपसी सहयोग की बजाए, सियासत साधते नजर आते हैं। सामान्य परिस्थितियों में इस बात की गंभीरता कम हो सकती है। लेकिन नहीं भूलना चाहिए इस वक्त विश्व एक बेहद असामान्य परिस्थिति से गुजर रहा है।
देश से जुड़ी ऐसी बातें सामने आने लगी हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह से भारत में बनी सबसे सस्ती वैक्सीन दुनिया के जरूरतमंद छोटे और गरीब देशों को देने लगे थे। इससे दुनिया के बड़े वैक्सीन निर्माता कंपनियां परेशान होने लगी थीं। भारत की पहल उनके पावरगेम को बिगाड़ रही थी, उनके करोड़ों के निवेश, और उससे होने वाले मुनाफे पर खतरा बन रही थी। आज की तारीख में जिस देश के पास वैक्सीन की जितनी ताकत है वह उसी लिहाज से उतना ही आगे है। सब अपने अपने हिसाब से अपनी धौंस दिखा रहे हैं। वैक्सीन कंपनियां अपने उल्टे सीधे नियम छोटे और मजबूर देशों पर थोप रही हैं। भारत की अकड़ और वैश्विक स्तर पर दखल उन्हें अखड़ गई।
अब जो थ्योरी सामने आ रही है, उसके अनुसार भारत पर अंकुश लगाने के लिए इन बड़े देश की बड़ी वैक्सीन कंपनियों ने देश में कोरोना की दूसरी लहर के दूसरे कोरोना वैरिएंट का पाशा फेंका, या कह सकते हैं कि प्रायोजित करवाया। प्राथमिकता के साथ प्रयोगशाला दिल्ली को बनाया गया। मकसद साफ था कि शोर सारी दुनिया सुन सके। जिसकी चपेट में उलझकर रह गया भारत। इसे अपना वैक्सीन अभियान तुरंत रोकना पड़ा। मतलब सबसे बड़ा टारगेट पूरा हो गया। विदेशों के जिन मीडिया हाउस की नीति कभी भी इस महामारी की भयानक तस्वीरें दिखाने की नहीं रही, उन्होंने जबरदस्त नकारात्मक कवरेज की। भारत पस्त और हारता दिखाया गया।
इसके साथ ही चर्चा इस बात की भी हो रही है कि इसके पीछे रूस की अग्रणी भूमिका रही। चीन साथ रहा। अब देखिए, स्पूतनिक को आनन फानन में सारी मान्यता मिल गई। जो परिस्थितियां बनी हैं देश में स्पूतनिक के टीके की उपलब्धता तेजी से बढ़ने वाली है। मतलब दूसरा टारगेट भी पूरा हो गया।
चीन को लेकर भारत सरकार सख्त रवैया अपनाए हुए थी। किसी ना किसी प्रकार से वहां से होने वाले आयात में अड़ंगा डालता रहा था। वैश्विक नीतियों की वजह से खुल कर रोक तो नहीं लगाया जा सकता। लेकिन पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से हालात तेजी से बदले, चीन से आयात में जबरदस्त तेजी आई। मतलब तीसरा टारगेट भी पूरा हुआ। भारत हारता चला गया। पता नहीं अब और कितना झुकेगा देश?
सवाल कई और सामने आ रहे हैं। जब देश में ऑक्सीजन का पर्याप्त उत्पादन हमेशा से रहा बावजूद इसके माहौल इतना कैसे बिगड़ा? देश की राजधानी में नेतृत्व करने वाले अधिकारियों और नेताओं को क्रायोजेनिक टैंकर की आवश्यकता की समझ होने में दस दिन से ज्यादा का वक्त कैसे लगा? किसने किसको गुमराह किया? केंद्र सरकार के विरोध में सबसे ज्यादा शोर वैक्सीन बाहर भेजने को लेकर ही क्यों है? जबकि सबको पता है करीब 6 करोड़ वैक्सीन बाहर भेजी गई जबकि देश में साढ़े आठ करोड़ वैक्सीन प्रतिमाह उत्पादन की क्षमता है। वो भी वैक्सीन जब बाहर भेजी जा रही थी, तब वैक्सीनेशन को लेकर तमाम तरह की भ्रांतियां फैलायी जा रही थी। वैक्सीनेशन की रफ्तार काफी धीमी थी।
भारत वैक्सीन बनाने वाले देशों में अपना स्थान बना पाया इस गौरव को बिल्कुल ही भुला दिया। वैज्ञानिकों की उपलब्धि को नकार दिया गया। ये सब तब हो रहा है जब ये सबको पता है कि वैक्सीन के बाद भी मास्क से मुक्ति नहीं मिलने जा रही। वैक्सीन के बावजूद संक्रमण के केस सामने आ ही रहे हैं। पूरी छूट तब भी संभव नहीं है। आम आदमी के साथ व्यवस्था को तब भी एलर्ट मोड में ही रहना होगा।
अब तो जिन अस्पतालों में लोगों की ऑक्सीजन से मौत हुई, उनके खिलाफ भी लोग अदालत जा पहुंचे हैं। जल्द जांच संभव है। उन्हें भी लगता है कुछ और बात है, जो बताया जा रहा है उसमें सच्चाई नहीं है।
मतलब, कोरोना से जुड़ी कुछ ऐसी अहम गोपनीय बातें हैं, जिन पर जांच जारी है, सच सामने आने पर बहुत कुछ बदल जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।